मोरे गणपति गणेश करो किरपा ॥
दोहा – मेरा मुझ में कुछ नहीं,
जो कुछ है सब तोय,
तेरा तुझको सौंप दूँ,
प्रभु क्या लागे है मोय ॥
मोरे गणपति गणेश करो किरपा,
मोरे राजा महाराजा करो किरपा,
किरपा करो महाराज गजानन,
माँ गौरा के लाल,
गजानन किरपा,
मोरे गणपति गणेश करों किरपा
मोरे राजा महाराजा करो किरपा ॥
माँ गौरा के लाल हो प्यारे,
शंकर जी की आंखों के तारे,
सबसे पहले तुम को मनाएं,
तुम जो मानो तो गजब हुई जाए,
करो किरपा,
मोरे गणपति गणेश करों किरपा,
मोरे राजा महाराजा करो किरपा ॥
लाल सिंदूर चढ़े गजमुख को,
मूषक की है सवारी,
तेरे दर्शन करने बाबा,
ये दुनिया सब आई,
सब लाए फूलों की माला,
सब लाए फूलों की माला,
मैं आया हूँ खाली बाबा मेरे,
करो किरपा,
मोरे गणपति गणेश करों किरपा,
मोरे राजा महाराजा करो किरपा ॥
मैं नहीं जानू पूजा तेरी,
सुन लेना ओ बाबा मेरी,
बार ही बार करूँ मैं विनती,
सुन लेना एक बार ओ बाबा मेरी,
करो किरपा,
मोरे गणपति गणेश करों किरपा,
मोरे राजा महाराजा करो किरपा ॥
मोरे गणपति गणेश करों किरपा,
मोरे राजा महाराजा करो किरपा,
किरपा करो महाराज गजानन,
माँ गौरा के लाल,
गजानन किरपा,
मोरे गणपति गणेश करों किरपा
मोरे राजा महाराजा करो किरपा ॥
(यह व्रत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को आरम्भ करके आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को समापन किया जाता है।)
छठ व्रत कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाने के 6 दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष को मनाए जाने के कारण इसे छठ कहा जाता है।
एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चौत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है?
एक समय श्री महादेवजी पार्वती के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक में अमरावती नगरी में आए। वहां के राजा ने शिव मंदिर बनवाया था, जो कि अत्यंत भव्य एवं रमणीक तथा मन को शांति पहुंचाने वाला था। भ्रमण करते सम शिव-पार्वती भी वहां ठहर गए।