मेरी मैया चली,
असुवन धारा बही,
नौ दिन मैया ने,
बेटो की विपदा हरी,
मेरी मैया चलीं,
असुवन धारा बही ॥
सारे जगत की है महारानी,
भक्तों की श्रद्धा माता ने जानी,
दिल में है खलबली,
असुवन धारा बही,
मेरी मैया चलीं,
असुवन धारा बही ॥
मैया अतिथि बन कर आई,
जगमग दीपक ज्योत जलाई,
सब की बिगड़ी बनी,
असुवन धारा बही,
मेरी मैया चलीं,
असुवन धारा बही ॥
आज विदाई मैया की आई,
भक्तो ने महिमा मैया की गाई,
मन में ज्योत जली,
असुवन धारा बही,
मेरी मैया चलीं,
असुवन धारा बही ॥
दास की विनती सुनलो
सब की अर्जी माँ पूरी करदो,
रेवा के तीर चली,
असुवन धारा बही,
मेरी मैया चलीं,
असुवन धारा बही ॥
मेरी मैया चली,
असुवन धारा बही,
नौ दिन मैया ने,
बेटो की विपदा हरी,
मेरी मैया चलीं,
असुवन धारा बही ॥
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
कैलाशपर्वते रम्ये शम्भुं चन्द्रार्धशेखरम्।
षडाम्नायसमायुक्तं पप्रच्छ नगकन्यका॥
ॐ अस्य श्रीऋणविमोचनमहागणपति-स्तोत्रमन्त्रस्य
शुक्राचार्य ऋषिः ऋणविमोचनमहागणपतिर्देवता
प्रणम्य शिरसा देवंगौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मेरनित्यमाय्ःकामार्थसिद्धये॥