मेरे सोये भाग जगा भी दो,
शिव डमरू वाले,
शंकर भोले भाले ।
मेरी बिगड़ी बात बना भी दो,
शिव डमरू वाले,
शंकर भोले भाले ।
तुमहे ने कैलाश पति,
लाखो को तारा ।
फिर क्यों न आया,
तुम को ध्यान तुम्हारा ।
खुशियों के फूल तुमने,
दुनिया को बांटे ।
झोली में हमारे क्या,
ये भर दिए कांटे ।
अब तो अपने दिन पलटा दो,
शिव डमरू वाले,
शंकर भोले भाले ।
मेरे सोये भाग जगा भी दो,
शिव डमरू वाले,
शंकर भोले भाले ।
मेरी बिगड़ी बात बना भी दो,
शिव डमरू वाले,
शंकर भोले भाले ।
तेरी तो जटाओ में है,
गंगा का पानी ।
पर न हमारी तुमने,
प्यास बुजाई ।
रावन को लंका देदी,
हे महादानी ।
अपने नसीबो में ये,
दुनिया पुरानी ।
कभी इस का भी चमका दो,
शिव डमरू वाले,
शंकर भोले भाले ।
मेरे सोये भाग जगा भी दो,
शिव डमरू वाले,
शंकर भोले भाले ।
मेरी बिगड़ी बात बना भी दो,
शिव डमरू वाले,
शंकर भोले भाले ।
मेहर का खजाना तेरे,
पास है विध्याता ।
उस में से थोडा बहुत,
मुझको भी दो दाता ।
कब से रोते है हँसा दो,
ओ शिव डमरू वाले,
शंकर भोले भाले ।
मेरे सोये भाग जगा भी दो,
शिव डमरू वाले,
शंकर भोले भाले ।
मेरी बिगड़ी बात बना भी दो,
शिव डमरू वाले,
शंकर भोले भाले ।
उदासीन संप्रदाय का निर्मल पंचायती अखाड़ा देश के प्रमुख अखाड़े में गिना जाता है। यह इकलौता अखाड़ा है , जहां हिंदू और सिख समुदाय का समागम देखने को मिलता है।
निर्मोही अखाड़ा वैष्णव संप्रदाय का एक प्रमुख अखाड़ा है।इसकी स्थापना 14वीं शताब्दी में वैष्णव संत और कवि रामानंद ने की थी। यहां के साधु-संत भगवान राम की पूजा करते हैं और अपना जीवन उन्हीं को समर्पित करते हैं।
प्रयागराज में कुंभ की शुरुआत होने में एक महीने से भी कम समय रह गया है। साधु-संतों के अखाड़े प्रयागराज पहुंच चुके हैं। वहीं लोग बड़ी संख्या में संगम पर स्नान करने आने वाले हैं। लेकिन इसके साथ ऐसे भी कुछ श्रद्धालु होंगे, जो कल्पवास के लिए प्रयाग पहुंचेंगे।
कल्पवास की परंपरा हिंदू संस्कृति का अहम हिस्सा है। इस पंरपरा के मुताबिक व्यक्ति को एक महीने तक गंगा किनारे रहकर अनुशासित जीवनशैली का पालन करना होता है। यह एक तरह का कठिन तप माना गया है।