मैं हार गया जग से,
अब तुमको पुकारा है,
दुनिया से सुना है तू,
हारे का सहारा है,
हारे का सहारा है,
मै हार गया जग से,
अब तुमको पुकारा है ॥
मैं रात अमावस की,
तुम सुख का सवेरा हो,
तेरे बिन सुनता नहीं,
कोई दुःख मेरा हो,
कोई दुःख मेरा हो,
तू सुनता है सबकी,
मुझसे क्यों किनारा है,
दुनिया से सुना है तू,
हारे का सहारा है,
हारे का सहारा है,
मै हार गया जग से,
अब तुमको पुकारा है ॥
ये कैसा बंधन है,
ये कैसा नाता है,
हर पल तू यादों में,
आता और जाता है,
आता और जाता है,
तेरी सांवरी सूरत को,
अब मन में उतारा है,
दुनिया से सुना है तू,
हारे का सहारा है,
हारे का सहारा है,
मै हार गया जग से,
अब तुमको पुकारा है ॥
दुनिया की खा ठोकर,
दर तेरे आया हूँ,
सर पर अब हाथ धरो,
मैं बहुत सताया हूँ,
मैं बहुत सताया हूँ,
‘प्रवीण’ का तेरे बिन,
पलभर ना गुज़ारा है,
दुनिया से सुना है तू,
हारे का सहारा है,
हारे का सहारा है,
मै हार गया जग से,
अब तुमको पुकारा है ॥
मैं हार गया जग से,
अब तुमको पुकारा है,
दुनिया से सुना है तू,
हारे का सहारा है,
हारे का सहारा है,
मै हार गया जग से,
अब तुमको पुकारा है ॥
झण्डा ऊँचा रहे हमारा
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक पवित्र व्रत है, जो हर महीने शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। जो शिव भक्तों के लिए विशेष रूप से फलदायी माना गया है।
गुरु प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और जीवन की समस्याओं से छुटकारा पाने का एक अत्यंत शुभ अवसर है।
राम बिना नर ऐसे जैसे,
अश्व लगाम बिना ।