मैं भोला पर्वत का - शिव भजन (Main Bhola Parvat Ka)

मैं भोला पर्वत का

रै तू राणी महला की

तेरी मेरी पार पड़ै ना

बेशक लिखी पहला की


तू भोला पर्वत का रे मैं रानी महला की

तेरी मेरी जोरी खूब जमे

या लिखी पहला की


किसे राजा तै ब्याह करवाले

मेरी गैल म रै पछतावैगी

तेरी काया पड़ज्या काली रै

तनै याद महल की आवैगी


मेरा काम्बल तक का ब्योंत नहीं

जाड़े म ठर ठर काम्बैगी

मैं आँख तीसरी आला सूं

मेरे छो नै क्यूँकर साम्भैगी


हठ छोड़ दे नै गौरी

मेरी रहण नै गैल्या की

मैं ज़िन्दगी ना दे सकता तन्नै

राजे छेल्यां की


मैं भोला पर्वत का

रै तू राणी महला की

तेरी मेरी पार पड़ै ना

बेशक लिखी पहला की


मैं भोला पर्वत का

रै तू राणी महला की

तेरी मेरी पार पड़ै ना

बेशक लिखी पहला की


---


तेरे हाथ म छाले पड़ ज्यांगे

जद भांग मेरी तू घोटैगी

मेरे प्यार के सर म खोकै तू

सब हसदे हसदे ओटैगी


मेरे भाग म लिखा कालकूट का

जहर पडैगा पीणा रै

तू देख देख कै रोवैगी

यो जीणा भी के जीणा रै


परिवार नहीं मेरा

यारी भूत और बैला की

क्यूँ छोड़ कै आवै सुख छोरी

तू राणी महला की


मैं भोला पर्वत का

रै तू राणी महला की

तेरी मेरी पार पड़ै ना

बेशक लिखी पहला की


मैं भोला पर्वत का

रै तू राणी महला की

तेरी मेरी पार पड़ै ना

बेशक लिखी पहला की

-----


गल नाग रहवै निर्भाग रहवै

मेरे चौथरफे कै आग रहवै

मेरा गुरु अंगीरा ऋषि होया

अलबेले तांडव राग रहवै


एक डमरू सै एक लौटा सै

अर एक यो कुण्डी सोटा सै

तू प्रीत लगावै कड़ै बता

मेरा भाग कसूता खोटा सै


मैं समझ सकू सारी

पीड़ा तेरे नैना की

क्यूँ भागी बणै इस जीवन म

तू काली रैना की


मैं भोला पर्वत का

रै तू राणी महला की

तेरी मेरी पार पड़ै ना

बेशक लिखी पहला की


मैं भोला पर्वत का

रै तू राणी महला की

तेरी मेरी पार पड़ै ना

बेशक लिखी पहला की

........................................................................................................
भोले की किरपा, जिस पर भी रहती है (Bhole Ki Kripa Jis Par Bhi Rahti Hai)

भोले की किरपा,
जिस पर भी रहती है,

मन में बसाकर तेरी मूर्ति(Mann Mai Basakar Teri Murti)

मन में बसाकर तेरी मूर्ति,
उतारू में गिरधर तेरी आरती ॥

वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व

वैकुंठ चतुर्दशी हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इसे कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है। यह कार्तिक पूर्णिमा के एक दिन पहले आता है और देव दिवाली से भी संबंधित है।

जगमग जगमग जोत जली है, आरती श्री राम जी (Jagmag Jyot Jali Hai Shri Ram Aarti)

जगमग जगमग जोत जली है।
राम आरती होन लगी है॥

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।