श्री रामायण प्रारम्भ स्तुति,
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन ॥
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ॥ 1 ॥
मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन ॥
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन ॥ 2 ॥
नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन ॥
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन ॥ 3 ॥
कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन ॥
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन ॥ 4 ॥
बंदउ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि ॥
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर ॥ 5 ॥
राममन्दिरगीतम्
कोटिकण्ठगीतमिदं राष्ट्रमन्दिरं
पार ना लगोगे श्री राम के बिना,
राम ना मिलेगे हनुमान के बिना।
पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी का व्रत रखा जाता है। सनातन धर्म में एकादशी तिथि का काफ़ी महत्व होता है।
साल में 24 एकादशी का व्रत रखा जाता है। ये सभी भगवान विष्णु को समर्पित होते है। एकादशी व्रत हर महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर रखा जाता है, जो प्रत्येक माह में दो बार आती है।