जो भजे हरि को सदा,
जो भजे हरि को सदा,
सोहि परम पद पायेगा
सोहि परम पद पायेगा
देह के माला,
तिलक और भस्म,
नहिं कुछ काम के
प्रेम भक्ति के बिना नहिं नाथ के मन भायेगा
सोहि परम पद पायेगा
सोहि परम पद पायेगा
जो भजे हरि को सदा,
जो भजे हरि को सदा,
सोहि परम पद पायेगा
सोहि परम पद पायेगा
दिल के दर्पण को,
सफ़ा कर,
दूर कर अभिमान को
खाक हो,
गुरु के चरण की,
तो प्रभु मिल जायेगा
सोहि परम पद पायेगा
सोहि परम पद पायेगा
जो भजे हरि को सदा,
जो भजे हरि को सदा,
सोहि परम पद पायेगा
सोहि परम पद पायेगा
छोड़ दुनिया के,
मज़े और बैठ,
कर एकांत में
ध्यान धर,
हरि के चरण का,
फिर जनम नहीं पायेगा
सोहि परम पद पायेगा
सोहि परम पद पायेगा
जो भजे हरि को सदा,
जो भजे हरि को सदा,
सोहि परम पद पायेगा
सोहि परम पद पायेगा
दृढ़ भरोसा,
मन में रख कर,
जो भजे हरि नाम को
कहत ब्रह्मानंद,
ब्रह्मानंद में ही समायेगा
सोहि परम पद पायेगा
सोहि परम पद पायेगा
जो भजे हरि को सदा,
जो भजे हरि को सदा,
सोहि परम पद पायेगा
सोहि परम पद पायेगा
हमारा देश धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का देश है। हमारी उत्सवप्रियता और उत्सव धर्मिता के सबसे श्रेष्ठतम उदाहरणों में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का अपना महत्व है।
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देव शयनी एकादशी को भगवान नारायण विष्णु योग मुद्रा यानी शयन मुद्रा में चार माह के लिए चले जाते हैं।
देव उठनी एकादशी पर सनातन धर्म में तुलसी विवाह का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु का विवाह गन्ने के मंडप में होता है। इसकी भी अलग ही मान्यता है और इससे संबंधित कथाएं भी हैं।
कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी के दिन से सभी मंगल कार्य आरंभ करने की परंपरा है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं और उनके जागते ही चातुर्मास भी समाप्त होता है।