जरा चल के अयोध्या जी में देखो,
राम सरयू नहाते मिलेंगे ॥
जन्मभूमि पे मंदिर बनेगा,
जिसके रखवाले बजरंगबली है,
अंजनीलाल अपनी गदा से,
पापियों को मिटाते मिलेंगे,
जरा चलके अयोध्या जी में देखों,
राम सरयू नहाते मिलेंगे ॥
रामजी पर उठाते जो उंगली,
खुद ही उठ जाएँगे इस धरा से,
राम के है जो है राम उनके,
शबरी सा बेर खाते मिलेंगे,
जरा चलके अयोध्या जी में देखों,
राम सरयू नहाते मिलेंगे ॥
वीर सुग्रीव है मित्र जिनके,
जिनकी सेना में नल नील अंगद,
अपने बाणों से धर्म ध्वजा को,
राक्षसों से बचाते मिलेंगे,
जरा चलके अयोध्या जी में देखों,
राम सरयू नहाते मिलेंगे ॥
माँ कौशल्या की आँखों के तारे,
राजा दशरथ को प्राणों से प्यारे,
भरत भैया लखन शत्रुघ्न संग,
भक्तो को आते जाते मिलेंगे,
जरा चलके अयोध्या जी में देखों,
राम सरयू नहाते मिलेंगे ॥
जो है राघव की प्रिय राजधानी,
राम राजा जहाँ सिता रानी,
‘देवेन्द्र’ ‘कुलदीप’ पर राम किरपा,
भक्त भक्ति लुटाते मिलेंगे,
जरा चलके अयोध्या जी में देखों,
राम सरयू नहाते मिलेंगे ॥
जरा चल के अयोध्या जी में देखो,
राम सरयू नहाते मिलेंगे ॥
सांख्य शास्त्र को आमतौर पर सांख्य दर्शन के नाम से जाना जाता है। ये प्राचीन काल में बहुत अधिक लोकप्रिय रहा है।
वैशेषिक दर्शन शास्त्रों में चतुर्थ नंबर का स्थान रखता है, इस शास्त्र की रचना महर्षि कणाद द्वारा की गई है।
वेदान्त शास्त्र को महर्षि वेदव्यास द्वारा रचा गया है। इस शास्त्र में महर्षि वेदव्यास ने ब्रह्मासूत्र को मूल ग्रंथ माना है।
जैमिनी ऋषि द्वारा रचित मीमांसा शास्त्र में वैदिक यज्ञों में प्रयुक्त होने वाले मंत्रों के विभाग और यज्ञ प्रक्रिया का वर्णन किया गया है।