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हे मुरलीधर छलिया मोहन (Hey Muralidhar Chhaliya Mohan)

हे मुरलीधर छलिया मोहन (Hey Muralidhar Chhaliya Mohan)

हे मुरलीधर छलिया मोहन,

हम भी तुमको दिल दे बैठे,

गम पहले से ही कम तो ना थे,

एक और मुसीबत ले बैठे,

हे मुरलिधर छलिया मोहन,

हम भी तुमको दिल दे बैठे ॥


दिल कहता है तुम सुन्दर हो,

आँखे कहती है दिखलाओ,

तुम मिलते नही हो आकर के,

हम कैसे कहे देखो ये बैठे,

हे मुरलिधर छलिया मोहन,

हम भी तुमको दिल दे बैठे ॥


महिमा सुनके हैरान है हम,

तुम मिल जाओ तो चैन मिले,

मन खोज के भी तुम्हे पाता नही,

तुम हो की उसी मन में बैठे,

हे मुरलिधर छलिया मोहन,

हम भी तुमको दिल दे बैठे ॥


राजेश्वर राजाराम तुम्ही,

प्रभु योगेशेवर घनश्याम तुम्ही,

धनुधारी बने कभी मुरली बजा,

यमुना तट निज जन में बैठे,

हे मुरलिधर छलिया मोहन,

हम भी तुमको दिल दे बैठे ॥


हे मुरलीधर छलिया मोहन,

हम भी तुमको दिल दे बैठे,

गम पहले से ही कम तो ना थे,

एक और मुसीबत ले बैठे,

हे मुरलिधर छलिया मोहन,

हम भी तुमको दिल दे बैठे ॥


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सिंहस्थ कुंभ कहां लगेगा

फिलहाल, जोर-शोर से महाकुंभ चल रहा है। इसमें नागा साधु के अलावा विभिन्न प्रकार के साधु-संन्यासी लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। देश के कोने-कोने से यहां साधु-संत पहुंचे हैं।

नागा साधु क्यों नहीं नहाते

नागा साधु एक विशेष प्रकार के संन्यासी होते हैं, जो अपनी साधना और तपस्या के लिए कठोर जीवनशैली अपनाते हैं। जबकि वे कुंभ मेले जैसे विशेष अवसरों पर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, सामान्य साधु की तरह वे रोज नहाने पर विश्वास नहीं करते।

संन्यास और वैराग्य में क्या अंतर है

संन्यास और वैराग्य, दोनों ही आध्यात्मिक साधना के प्रमुख मार्ग हैं। परंतु, जब भी लोग किसी संन्यासी को देखते हैं तो अक्सर उन्हें वैरागी समझ लिया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दोनों ही उच्च आध्यात्मिक साधना और ईश्वर की भक्ति से जुड़े होते हैं।

नागा साधुओं के अंतिम संस्कार कैसे होता है

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 में अखाड़े और साधु-संत आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इनमें से सबसे अलग और अद्भुत दिखने वाले नागा साधु हैं। भस्म लगाए और अपने विशिष्ट स्वरूप में नागा साधु हर किसी का ध्यान खींचते हैं।

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