गणपति आयो बापा,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गजानंद आयो,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गणपति आयों बापा,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गजानंद आयो,
रिद्धि सिद्धि लायो ॥
शिव जी नो बाल आयो,
उमिया नो लाल आयो,
आयो रे आयो बाबो,
लम्बोदर आयो,
गणपति आयो बाबो,
रिद्धि सिद्धि लायो,
निर्भय वाला थे तो,
नाम सुणायो,
गजानंद आयो,
एकदन्त आयो,
गजानंद आयो,
एकदन्त आयो,
गणपति आयों बापा,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गजानंद आयो,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गजानंद आयो,
रिद्धि सिद्धि लायो ॥
मोटी सूंडालो आयो,
देव महाकाय आयो,
आयो रे आयो बाबो,
सूर्पकर्ण आयो,
गजानंद आयो बाबो,
रिद्धि सिद्धि लायो,
निर्भय वाला थे तो,
माथे मुकुट बाबा,
मोतिन लगायो,
गजानंद आयो,
एकदन्त आयो,
गणपति आयों बापा,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गजानंद आयो,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गजानंद आयो,
रिद्धि सिद्धि लायो ॥
काज सुधारवा आयो,
फुलड़ा में लई बधायो,
आयो रे आयो बाबा,
चतुर्भुज आयो,
गणपति आयो बाबो,
रिद्धि सिद्धि लायो,
जिमवा पधारो बाबा,
थाल धरायो,
गजानंद आयो बाबा,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गणपति आयो बापा,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गजानंद आयो,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गजानंद आयो,
रिद्धि सिद्धि लायो ॥
आरती उतारवा आयो,
धुप गूगल ने लायो,
लायो रे लायो हूँ तो,
फूल माला लायो,
गजानंद आयो बाबो,
रिद्धि सिद्धि लायो,
देवो मा तू देव छे मोटो,
सौ मा सवायो,
गजानंद आयो बाबा,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गणपति आयो बाबा,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गजानंद आयो,
रिद्धि सिद्धि लायो,
गजानंद आयो,
रिद्धि सिद्धि लायो ॥
प्रयागराज में कुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से हो रही है। अखाड़ों का आना भी शुरू हो गया है। महर्षि आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में इनकी स्थापना की थी।
हिंदू धर्म में पंचामृत का विशेष महत्व है। यह एक पवित्र मिश्रण है जिसे पूजा-पाठ में और विशेष अवसरों पर भगवान को अर्पित किया जाता है। पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद और शक्कर शामिल होते हैं। इन पांच पवित्र पदार्थों को मिलाकर बनाया गया पंचामृत भगवान को प्रसन्न करने और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है।
ईश्वर से जुड़ने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अपने खास तरीके हैं। हिंदू धर्म में, प्रार्थना करते समय आंखें बंद कर लेना और हाथ जोड़कर खड़े होते हैं। हाथ जोड़ना सिर्फ एक नमस्कार नहीं है, बल्कि यह विनम्रता, सम्मान और आभार का प्रतीक है।
हिंदू धर्म में मंदिर, घर या किसी भी पवित्र स्थान पर पूजा करते समय सिर को ढकने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह माना जाता है कि पूजा के दौरान सिर ढकने से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ मिलता है। महिलाएं आमतौर पर साड़ी का पल्लू या दुपट्टा और पुरुष रूमाल का उपयोग करते हैं।