नवीनतम लेख
बरपा है केहर भोले आकर के बचा लेना,
देकर शरण अपनी अपने में समा लेना ॥
कही धरती डोले है कही अंबर है बरसे,
तुमसे मिलने को भोले मिलने ना दे करते,
मुश्किल बड़ी राहें है रस्ता भी दिखा देना,
बरपा है केहर भोले आकर के बचा लेना,
देकर शरण अपनी अपने में समा लेना ॥
दर दर क्यों भटकु मैं कुछ मुझमे कमी होगी,
अपनी सेवक रखलो कदमो में जमीन होगी,
हलातों से लड़ लड़कर जीना भी सीखा देना,
बरपा है केहर भोले आकर के बचा लेना,
देकर शरण अपनी अपने में समा लेना ॥
जब भी पुकारू मैं तुमको तुम्हे आना ही होगा,
इतनी विनती है मेरी तुम्हे पार लगाना होगा,
जैसी हु तेरी हु चरणों में जगह देना,
बरपा है केहर भोले आकर के बचा लेना,
देकर शरण अपनी अपने में समा लेना ॥
........................................................................................................'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।