देकर शरण अपनी अपने में समा लेना(Dekar Sharan Apani Apne Mein Sama Lena)

बरपा है केहर भोले आकर के बचा लेना,

देकर शरण अपनी अपने में समा लेना ॥


कही धरती डोले है कही अंबर है बरसे,

तुमसे मिलने को भोले मिलने ना दे करते,

मुश्किल बड़ी राहें है रस्ता भी दिखा देना,

बरपा है केहर भोले आकर के बचा लेना,

देकर शरण अपनी अपने में समा लेना ॥


दर दर क्यों भटकु मैं कुछ मुझमे कमी होगी,

अपनी सेवक रखलो कदमो में जमीन होगी,

हलातों से लड़ लड़कर जीना भी सीखा देना,

बरपा है केहर भोले आकर के बचा लेना,

देकर शरण अपनी अपने में समा लेना ॥


जब भी पुकारू मैं तुमको तुम्हे आना ही होगा,

इतनी विनती है मेरी तुम्हे पार लगाना होगा,

जैसी हु तेरी हु चरणों में जगह देना,

बरपा है केहर भोले आकर के बचा लेना,

देकर शरण अपनी अपने में समा लेना ॥

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साल में दो दिन क्यों मनाई जाती है जन्माष्टमी, जानिए स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के बारे में जो मनाते हैं अलग-अलग जन्माष्टमी?

जन्माष्टमी का त्योहार दो दिन मनाने के पीछे देश के दो संप्रदाय हैं जिनमें पहला नाम स्मार्त संप्रदाय जबकि दूसरा नाम वैष्णव संप्रदाय का है।

तकदीर मुझे ले चल, मैय्या जी की बस्ती में

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सर को झुकालो, शेरावाली को मानलो(Sar Ko Jhukalo Sherawali Ko Manalo)

सर को झुकालो,
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सनातन हिंदू धर्म में नवरात्रि के पर्व को नारी शक्ति और देवी दुर्गा का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा को समर्पित है।

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