लाल लंगोटा हाथ में सोटा,
चले पवन की चाल,
मेरा बजरंगबली ॥
माँ अंजनी का प्यारा है,
राम भगत मतवाला है,
राम भजन में मस्त रहे,
भक्तो का रखवाला है
भूत प्रेत को मार भगावे,
दुष्टो का है काल,
मेरा बजरंगबली ॥
जब जब राम ने हुकुम दिया,
पल में पूरा काम किया,
राम सहारा लेकर के,
पूरा पर्वत उठा दिया,
राम सुमीर कर गढ़ लंका में,
धरा रूप विकराल,
मेरा बजरंगबली ॥
राम तेरे मन वचन में है,
राम तेरे दर्शन में है,
रोम रोम में राम तेरे,
राम तेरे सुमिरन में है,
दर्श करा दे श्रीराम का,
हे अंजनी के लाल,
मेरा बजरंगबली ॥
मंगल और शनिवार के दिन,
तेरी पूजा भारी है,
सालासर मेहंदीपुर में,
तेरी महिमा न्यारी है,
ये ‘लख्खा’ अब तुझे मनाए,
काट मेरे जंजाल,
मेरा बजरंगबली ॥
लाल लंगोटा हाथ में सोटा,
चले पवन की चाल,
मेरा बजरंगबली ॥
शास्त्रों के अनुसार देव उठनी एकादशी भगवान् श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना के लिए श्रेष्ट दिन है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की तिथि को देव उठनी एकादशी मनाई जाती है।
पौराणिक मान्यता है कि देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जाग कर एक बार पुनः संसार के संचालन की कमान अपने हाथों में ले लेते हैं।
सनातन धर्म में सभी तिथि किसी ना किसी देवी-देवता को ही समर्पित है। इसी प्रकार से हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होती है।
“बोर भाजी आंवला, उठो देव सांवला।” ये कहावत तो हर किसी ने अपने घर में सुनी होगी। दरअसल, ये वही कहावत है जिसके द्वारा हर किसी के घर में देव उठनी ग्यारस के दिन भगवान का आह्वान होता है।