भजहु रे मन श्री नंद नंदन
अभय-चरणार्विन्द रे
दुर्लभ मानव-जन्म सत-संगे
तारो ए भव-सिंधु रे
भजहु रे मन श्री नंद नंदन
अभय-चरणार्विन्द रे
शीत तप बात बरिशन
ए दिन जामिन जगी रे
बिफले सेविनु कृपन दुरजन
चपल सुख लभ लागी रे
भजहु रे मन श्री नंद नंदन
अभय-चरणार्विन्द रे
ए धन यौवन पुत्र परिजन
इथे की आचे पारतित रे
कमल-दल-जल, जीवन तलमल
भजू हरि-पद नीत रे
भजहु रे मन श्री नंद नंदन
अभय-चरणार्विन्द रे
श्रवण कीर्तन स्मरण वंदन
पद सेवन दास्य रे
पूजन, सखी-जन, आत्म-निवेदन
गोविंद-दास-अभिलाषा रे
भजहु रे मन श्री नंद नंदन
अभय-चरणार्विन्द रे
दुर्लभ मानव-जन्म सत-संगे
तारो ए भव-सिंधु रे
जय जय श्री शनिदेव, भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु, छाया महतारी॥
ऊँ जय यक्ष कुबेर हरे, स्वामी जय यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े भगतों के, भण्डार कुबेर भरे॥
जय धन्वन्तरि देवा, जय धन्वन्तरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा॥
प्रभु श्री विश्वकर्मा घर, आवो प्रभु विश्वकर्मा।
सुदामा की विनय सुनी और कंचन महल बनाये।