भगवान मेरी नैया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना ॥
हम दीन दुखी निर्बल,
नित नाम रहे प्रतिपल,
यह सोच दरश दोगे,
प्रभु आज नही तो कल,
जो बाग़ लगाया है,
फूलों से सजा देना,
भगवान मेरी नईया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना ॥
तुम शांति सुधाकर हो,
तुम ज्ञान दिवाकर हो,
मम हँस चुगे मोती,
तुम मान सरोवर हो,
दो बूंद सुधारस की,
हमको भी पिला देना,
भगवान मेरी नईया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना ॥
रोकोगे भला कबतक,
दर्शन को मुझे तुमसे,
चरणों से लिपट जाऊं,
वृक्षों से लता जैसे,
अब द्वार खड़ी तेरे,
मुझे राह दिखा देना,
भगवान मेरी नईया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना ॥
मजधार पड़ी नैया,
डगमग डोले भव में,
आओ त्रिशला नंदन,
हम ध्यान धरे मन में,
अब ‘तनवर’ करे विनती,
मुझे अपना बना लेना,
भगवान मेरी नईया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना ॥
भगवान मेरी नैया,
उस पार लगा देना,
अब तक तो निभाया है,
आगे भी निभा देना ॥
कलश स्थापना को शुभता और मंगल का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, कलश में जल को ब्रह्मांड की सभी सकारात्मक ऊर्जाओं का स्रोत माना गया है।
सनातन परंपरा में नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहला चैत्र के महीने में, जिससे हिंदू नव वर्ष की भी शुरुआत होती है, जिसे चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। दूसरा, आश्विन माह में आता है, जिसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं।
चैत्र नवरात्रि हिंदू नव वर्ष के साथ आती है और इसे विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है। पंचांग के अनुसार, 2025 में चैत्र नवरात्र 30 मार्च से शुरू होकर 7 अप्रैल तक चलेगी।
शारदीय नवरात्रि में नौ देवियों की पूजा की जाती है और यह शक्ति साधना का पर्व है। इस दौरान भक्तजन उपवास रखते हैं और विजयादशमी पर उत्सव मनाया जाता है।