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बड़ी देर भई नंदलाला (Badi Der Bhai Nandlala)

बड़ी देर भई नंदलाला (Badi Der Bhai Nandlala)

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥


बड़ी देर भई नंदलाला,

तेरी राह तके बृजबाला ।

बड़ी देर भई नंदलाला,

तेरी राह तके बृजबाला ।


ग्वाल-बाल इक-इक से पूछे

कहाँ है मुरली वाला रे

बड़ी देर भई नंदलाला,

तेरी राह तके बृजबाला ।


कोई ना जाए कुञ्ज गलिन में,

तुझ बिन कलियाँ चुनने को ।

तुझ बिन कलियाँ चुनने को ।


तरस रहे हैं..

तरस रहे हैं जमुना के तट,

धुन मुरली की सुनने को ।

अब तो दरस दिखा दे नटखट,

क्यों दुविधा में डाला रे ।


बड़ी देर भई नंदलाला,

तेरी राह तके बृजबाला ।

बड़ी देर भई नंदलाला,

तेरी राह तके बृजबाला ।


संकट में है आज वो धरती,

जिस पर तूने जनम लिया ।

जिस पर तूने जनम लिया ।


पूरा कर दे...

पूरा कर दे आज वचन वो,

गीता में जो तूने दिया ।

कोई नहीं है तुझ बिन मोहन,

भारत का रखवाला रे ।


बड़ी देर भई नंदलाला,

तेरी राह तके बृजबाला ।

बड़ी देर भई नंदलाला,

तेरी राह तके बृजबाला ।


ग्वाल-बाल इक-इक से पूछे

कहाँ है मुरली वाला रे ।


बड़ी देर भई नंदलाला,

तेरी राह तके बृजबाला ।

बड़ी देर भई नंदलाला,

तेरी राह तके बृजबाला ।

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पूजा में क्यों करते हैं अक्षत का प्रयोग

अक्षत यानी कि पीले चावल। हिंदू धर्म में अक्षत को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इसे पूजा-पाठ में मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है। बिना खंडित हुए चावल को अक्षत कहते हैं। यह पूजा में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पवित्रता, समृद्धि और अखंडता का प्रतीक माना जाता है। पूजा-पाठ अक्षत के बिना अधूरा माना जाता है। यह पूजा का विशेष सामग्री है।

शनिवार को तेल दान क्यों किया जाता है?

हिंदू धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है और उनकी कृपा पाने के लिए भक्त विभिन्न प्रकार के उपाय करते हैं। इनमें से एक प्रमुख उपाय है शनिवार के दिन शनिदेव को तेल चढ़ाना है।

घर में मोर पंख क्यों रखा जाता है?

हिंदू धर्म में मोर पंख का सबसे प्रसिद्ध संबंध भगवान श्री कृष्ण से है। श्री कृष्ण के मुकुट में मोर पंख सजे होते थे। इसे उनके सौंदर्य और दिव्यत्व का प्रतीक माना जाता है। कुछ शास्त्रों के अनुसार, मोर पंख भगवान कृष्ण के साथ जुड़ा हुआ है क्योंकि वह मोर के प्रिय हैं और मोरपंख उनके संगीत और नृत्य के प्रतीक के रूप में दिखता है।

क्या महिलाएं भी नागा साधु बन सकती हैं

महाकुंभ की शुरुआत अगले महीने से होने जा रही है। साधु-संत के अखाड़े प्रयागराज पहुंच चुके हैं। पहला शाही स्नान 13 जनवरी को होने वाला है। अब जब शाही स्नान की बात आ ही गई हैं, तो आपके दिमाग में नागा साधुओं का नाम जरूर आया होगा। भगवान शिव के उपासक और शैव संप्रदाय के ताल्लुक रखने वाले नागा साधु शाही स्नान के कारण चर्चा में रहते हैं।

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