अजब हैरान हूं भगवन!
तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं ।
कोई वस्तु नहीं ऐसी,
जिसे सेवा में लाऊं मैं ॥
करें किस तौर आवाहन कि,
तुम मौजूद हो हर जां ।
निरादर है बुलाने को,
अगर घंटी बजाऊं मैं ॥
तुम्हीं हो मूर्ति में भी,
तुम्हीं व्यापक हो फूलों में ।
भला भगवान पर,
भगवान को कैसे चढाऊं मैं ॥
लगाना भोग कुछ तुमको,
यह एक अपमान करना है ।
खिलाता है जो सब जग को,
उसे कैसे खिलाऊं मैं ॥
तुम्हारी ज्योति से रोशन हैं,
सूरज-चांद और तारे ।
महा अन्धेर है कैसे तुम्हें,
दीपक दिखाऊं मैं ॥
भुजाएं हैं। न गर्दन है,
न सीना है न पेशानी ।
तुम हो निर्लेप नारायण,
कहां चंदन लगाऊँ मैं ॥
बड़े नादान है वे जन,
जो गढ़ते आपकी मूरत ।
बनाता है जो सब जग को,
उसे कैसे बनाऊँ मैं ॥
अजब हैरान हूं भगवन!
तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं ।
कोई वस्तु नहीं ऐसी,
जिसे सेवा में लाऊं मैं ॥
अजब हैरान हूं भगवन!
तुम्हें कैसे रिझाऊं मैं ।
कोई वस्तु नहीं ऐसी,
जिसे सेवा में लाऊं मैं ॥
अप्रैल का महीना वसंत ऋतु की सुंदरता और त्योहारों की धूमधाम के साथ एक विशेष महत्व रखता है। यह माह प्रकृति के रंग-बिरंगे रूप को दर्शाता है। इस समय कई धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व मनाए जाते हैं जो हमारी संस्कृति और परंपराओं को दर्शाते हैं।
पापमोचनी एकादशी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है, और मोक्ष की प्राप्ति करता है।
पापमोचनी एकादशी भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित है जो चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह उपवास सभी पापों से छुटकारा पाने और मोक्ष प्राप्त करने के लिये रखा जाता है।
पापमोचनी एकादशी व्रत पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, और इसे पापों से मुक्ति दिलाने वाला व्रत माना गया है। पापमोचनी एकादशी व्रत का वर्णन स्कंद पुराण में किया गया है, जहां इस बात की चर्चा की गई है, की इस व्रत का पालन करने से मनुष्य अपने पिछले जन्मों के दोषों से भी मुक्त हो सकता है।