आ दरश दिखा दे मेरी माँ,
तुझे तेरे लाल बुलाते है,
तुझे रो रो पुकारे मेरे नैन,
तुझे रो रो पुकारे मेरे नैन,
तुझे तेरे लाल बुलाते है,
आ दरश दिखा दे मेरी मां,
तुझे तेरे लाल बुलाते है ॥
आँखों के आंसू सूख चुके माँ,
अब तू दरश दिखा दे,
कब से खड़ा माँ दर पे तेरे,
मन की तू प्यास बुझा दे,
तेरी लीला निराली मेरी माँ,
तुझे तेरे लाल बुलाते है,
आ दरश दिखा दे मेरी मां,
तुझे तेरे लाल बुलाते है ॥
बीच भंवर में नैया पड़ी माँ,
आकर तू पार लगादे,
तेरे सिवा माँ कोई नहीं है,
आकर तू गले से लगा ले,
क्यूँ देर लगावे मेरी माँ,
तुझे तेरे लाल बुलाते है,
आ दरश दिखा दे मेरी मां,
तुझे तेरे लाल बुलाते है ॥
डूब रहा है सुख का सूरज,
गम की बदरिया है छाई,
उजड़ गयी बगिया जीवन की,
मन की कलि मुरझाई,
करे विनती ये सेवक माँ,
तुझे तेरे लाल बुलाते है,
आ दरश दिखा दे मेरी मां,
तुझे तेरे लाल बुलाते है ॥
आ दरश दिखा दे मेरी माँ,
तुझे तेरे लाल बुलाते है,
तुझे रो रो पुकारे मेरे नैन,
तुझे रो रो पुकारे मेरे नैन,
तुझे तेरे लाल बुलाते है,
आ दरश दिखा दे मेरी मां,
तुझे तेरे लाल बुलाते है ॥
परशुराम जयंती, भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है, जिसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है और अक्षय तृतीया के साथ इसका संयोग इस दिन को और भी शुभ बनाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह की अमावस्या तिथि का विशेष धार्मिक महत्व है। यह तिथि पितरों की शांति के लिए विशेष मानी जाती है और इस दिन स्नान, दान, जप, और तर्पण करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
परशुराम जयंती सनातन धर्म के एक अत्यंत पावन और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह पर्व भगवान विष्णु के छठे अवतार, परशुराम जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है।
सनातन धर्म के परंपरा में अन्वाधान और इष्टि जैसे पर्व का विशेष महत्व है। ये दोनों वैष्णव संप्रदाय से जुड़े श्रद्धालुओं के अनुष्ठान हैं जो विशेष रूप से अमावस्या, पूर्णिमा और शुभ मुहूर्तों पर किए जाते हैं।