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आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में मौजूद वेंकटेश्वर मंदिर यानी तिरुपति बालाजी मंदिर सबसे पवित्र और फेमस मंदिरो में से एक हैं। यहां पर हर साल लाखों भक्तों की भीड़ पहुंचती है। तिरुमाला के सात पर्वतों में से एक वेंकटाद्रि पर बना श्री वेंकटेश्वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र हैं। इसीलिए इसे सात पर्वतों के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर जाने से पहले सबके मन में ये बात आती है कि हम मंदिर कैसे जाये, तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास, मंदिर का रहश्य, मंदिर कैसे पहुंचे। तो आइये जानते है इस मंदिर के बारे में..
तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर भगवान विष्णु के एक रुप वेंकटेश्वर को समर्पित है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे मानव जाति को कलियुग की परीक्षाओं से बचाने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। इसलिए इस जगह का नाम कलियुग वैकुंठ भी पड़ा है और यहां के देवता को कलियुग प्रत्यक्ष दैवम कहा जाता है। इस मंदिर को तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर, तिरुपति मंदिर, श्रीनिवासा परमानन्द तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर, श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर, तिरुपति वेंकटाद्रि मंदिर जैसे नामों से भी जाना जाता है। कई शताब्दी पूर्व बने इस मंदिर की सबसे खास बात इसकी दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का अद्भुत संगम है।
तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर का इतिहास बहुत विशाल है और यह भारतीय धार्मिक संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस मंदिर का निर्माण और विकास कई सम्राटों, राजा-महाराजों, और धार्मिक गुरुओं के योगदान से हुआ है। यहां इसका इतिहास कुछ मुख्य घटनाओं में समाहित है। तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर का इतिहास वेदिक काल में भी उल्लेखित है, जब यह स्थल सिद्धिपर्वत के रूप में जाना जाता था। इसके स्थल पर धार्मिक और तपस्या के कई दर्शनीय पुनर्जन्मों का वर्णन होता है। भगवान राम के काल में, तिरुमला पर्वत पर भगवान राम ने अपनी भक्ति प्रकट की थी। इसके बाद से ही इस स्थल की महिमा में वृद्धि हुई। इसके बाद, तिरुमला पर्वत पर एक छोटा सा श्रीनिवास पुरी मंदिर बना जिसमें श्रीनिवास स्वामी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इसे बाद में विश्वकर्मा भ्रमाणणम् कहा गया। यह मंदिर बारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जिसके पट सभी धर्मनुयायियों के लिए खुले हुए हैं। एक लाख से ज्यादा श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन के लिए यहां आते हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर के चारों ओर कई रहस्य हैं, जो इसे एक अद्वितीय और प्राचीन स्थल बनाते हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण रहस्यों के बारे में बताया जा रहा है।
तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की मूल प्रतिमा, जो कि श्रीनिवास स्वामी के रूप में जानी जाती है, एक स्वयंभू प्रतिमा मानी जाती है। इस प्रतिमा का मूल रूप और उसके उत्पत्ति का विवरण बहुत ही गोपनीय रहा है।
मंदिर के प्रांगण में स्थित है जिसे भाग्य स्थान कहा जाता है। यहां पर श्रद्धालुओं का माना जाता है कि इस स्थान से होने वाली प्रार्थनाओं का विशेष महत्व होता है।
इस मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति को असली बालों से सजाया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस देवता के बात मुलायम रहते हैं और कभी उलझते नहीं हैं, जो असली बालों के रुप में इसकी प्रमाणिकता का प्रमाण है।
मंदिर के गर्भगृह में एक दीपक जलता है और ये जानकार हैरान हो जाएंगे कि ये दिया कई सालों से बिना तेज के जल रहा है। ये तथ्य बेहद हैरान करने वाला है और लोगों को ये आश्चर्य होता है कि ऐसा क्यों है। आज तक, इस अलौकिक घटना का कोई निश्चित उत्तर किसी के पास नहीं है।
मुख्यद्वार के दाएं बालरुप में बालाजी को ठोड़ी से रक्त आया था, उसी समय बालाजी की ठोड़ी पर चंदन लगाने की प्रथा शुरु हुई।
जब आप पूजा के लिए इस मंदिर में जाते हैं और अपना ध्यान मुख्य देवता की ओर केंद्रित करते हैं, तो आप एक अनूठी पोशाक व्यवस्था देखेंगे। मूर्ति को नीचे धोती और ऊपर साड़ी से सजाया गया है। यह प्रथा इस विश्वास पर आधारित है कि भगवान वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ यहां निवास करते हैं। देवी पद्मावती की उपस्थिति का प्रतीक करने के लिए, साड़ी को मूर्ति के ऊपर पहनाई जाता है।
मान्यताओं के अनुसार, जिन भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, वो भक्त इस मंदिर में आकर वेंकटेश्वर स्वामी को अपने बाल दान करते हैं। दक्षिण में होने के बावजूद इस मंदिर से पूरे देश की आस्था जुड़ी हुई हैं। यह प्रथा आज से नहीं बल्कि शताब्दियों से चली आ रही है, जिसे आज भी भक्तों द्वारा मनाया जाता है। इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां न सिर्फ पुरुष अपने बाल दान करते है बल्कि महिलाएं व युवतियां भी भक्ति-भाव से अपने बालों का दान करती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्रचीन समय में भगवान तिरुपति बालाजी की मूर्ति पर चीटियों ने बांबी बना ली थी, जिसके कारण वह किसी को दिखाई नहीं देती थी। ऐसे में वहां रोज एक गाय आती और अपने दूध से मूर्ति का जल-अभिषेक कर चली जाती। जब इस बात का पता गाय के मालिक को लगा तो उसने गाय को मार दिया, जिसके बाद मूर्ति के सिर से खून बहने लगा। इस पर एक महिला ने अपने बाल काटकर बालाजी के सिर पर रख दिए। इसके बाद भगवान प्रकट हुए और महिला से कहा, यहां आकर जो भी मेरे लिए अपने बालों का त्याग करेगा, उसकी हर इच्छा पूरी होगी। तभी से ये केश दान करने की परंपरा चली आ रही है।
तिरुपति मंदिर में दर्श का समय सुबह 3:00 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक है और फिर दोपहर 2:30 बजे से 9:30 बजे तक है। हालांकि शुक्रवार और शनिवार को मंदिर 24 घंटे खुला रहता है। बता दें कि मंदिर के अंदर होने वाले अनुष्ठानों की वजह से मंदिर का समय बदल सकता है।
हवाई मार्ग - यहां से सबसे पास का हवाई अड्डा तिरुपति है जो कि मंदिर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तिरुपति शहर के अंदर यह हवाई अड्डा देश भर के अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं और दिल्ली, मुबंई कोलकाता सहित मार्गों से उड़ाने नियमित रुप से यहां आती है। एयरपोर्ट के बाहर आपको टैक्सी सेवाएं आसानी से उपलब्ध हो जाएगी।
सड़क मार्ग- राष्ट्रीय राजमार्ग 71 तिरुपति से निकलता है, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों से तिरुपति तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। दूर पहाड़ियों के बीच स्थित तिरुपति बालाजी के मुख्य मंदिर तक इसी राजमार्ग से पहुंचा जा सकता है। इन पहाड़ियों को तिरुमाला के नाम से जाना जाता है और ये शहर से सिर्फ 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग - यहां से नजदीकी रेनिगुंटा रेलवे स्टेशन एक प्रमुख केंद्र है जो तिरुपति बालाजी मंदिर से लगभग 32 किलोमीटर दूर स्थित है। ये रेलवे स्टेशन कई प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से कनेक्टेड है।
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