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श्री वराह लक्ष्मी नरसिंह मंदिर, जिसे सिंहाचलम मंदिर भी कहा जाता है, भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के विशाखापटनम महानगर के समीप पूर्वी घाट की सिंहाचलम पहाड़ियों में स्थित एक हिंदू मंदिर है। यह 300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और भगवान विष्णु के "वराह नरसिंह" रुप को समर्पित है। केवल अक्षय तृतीया को छेड़कर बाकी दिन ये मूर्ति मंदन से ढकी रहती है जिससे ये मूर्ति शिवलिंग जैसी प्रतीत होती है। भगवान विष्णु के सबसे उग्र अवतारों में से एक है नरसिंह अवतार। जैसा कि गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि जब-जब धर्म की हनी होती है और अर्धम का प्रभाव बढ़ता है, तो वो इस धरती पर अधर्म के नाश के लिए अवतार लेते हैं। भगवान ने नरसिंह अवतार, हिरण्यकश्यप रूपी अधर्म के नाश के लिए और धर्म रुप प्रह्लाद की रक्षा के लिए लिया था। श्री हरि के इन्ही चौछे अवतार भगवान नरसिंह को समर्पित है आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टन में स्थित सिंहाचलम मंदिर। वैसे तो भगवान नरसिंह के कई मंदिर है। लेकिन इस मंदिर को उनका निवास स्थान माना जाता है और यह कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वंम प्रह्लाद ने करवाया था।
सिंहाचलम मंदिर, सिंहाचल पर्वत पर स्थित है। सिंहाचल का अर्थ, शेर का पर्वत। जब प्रह्लाद की नारायण भक्ति से महाशक्तिशाली राक्षस उसके पिता हरिण्यकश्यप के अहंकार को ठेस पहुंची तो उसने अपने ही बेटे को बहुत कष्ट दिए और उसे मारने के लिए कई उपाय किए। लेकिन प्रभु की कृपा से प्रह्लाद पूरी तरह से सुरक्षित रह गया। अंतत: जब हिरण्यकश्यप का अत्याचार हद से अधिक बढ़ गया तो भगवान विष्णु ने उसका संहार करने के लिए नरसिंह अवतार लिया। भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध किया और अपने अनन्य भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। इसके बाद ही सिंहाचल पर्वत पर प्रह्लाद ने ही भगवान नरसिंह को समर्पित मंदिर की स्थापना की। यह युगों पुरानी घटना है इसलिए मंदिर की स्थापना के संबंध में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। समय बीतता गया और अंतत: ये मंदिर मानवीय लापरवाही का शिकार हो गया। रखरखाव के आभाव में मंदिर अपनी स्थापना के सदियों बाद धरती में समा गया। इस मंदिर को दोबार अस्तित्व में आने की घटना का वर्णन स्थल पुराण में है। लुनार वंश के राजा पुरुरवा अपनी पत्नी उर्वशी के साथ अपने विमान में बैठकर कहीं जा रहे थे। लेकिन किसी अदृश्य शक्ति के प्रभाव में आकर उनका विमान सिंहाचल पर्वत पर पहुंच गया और देववाणी से प्रेरित होकर उन्होंने धरती के अंदर से भगवान नरसिंह की यह प्रतिमा बाहर निकाली और देववाणी के आदेशानुसार उस प्रतिमा को चंदन के लेप से ढंक कर पुन: स्थापित कराया। उसी देववाणी के द्वारा यह आदेश किया गया कि साल में एक ही बार ये चंदन के लेप भगवान नरसिंह की प्रतिमा से हटाया जाएगा।
इसके बाद वर्तमान मंदिर से प्राप्त कई शिलालेखों से मंदिर के निर्माण और जीर्णोद्धार कराने वालों की जानकारी प्राप्त होती है। इन शिलालेखों में सबसे पहले सन् 1098-99 के दौरान चोल राजा कुलोत्तुगा प्रथम के द्वारा मंदिर में निर्माण की जानकारी सामने आती है। इसके बाद सन् 1137-1156 के दौरान वेलनंदू की महारानी के द्वारा मंदिर में स्थापित प्रतिमा को सोने से ढंकने की जानकारी प्राप्त होती है। इसके अलावा एक अन्य शिलालेख में विजयनगर साम्राज्य के राजा श्री कृष्ण देवराय और उनकी रानी के द्वारा मंदिर में 991 मोतियों की एक माला और अन्य बहुमूल्य रत्न समर्पित किए जाने के बारे में बताया गया है।
मंदिर का निर्माण द्रविड़ वास्तुकला के अनुसार हुआ हैं। मंदिर में एक गोपुरम है और उसके बाद एक 16 स्तंभों वाला एक मंडप है जिसे मुखमंडपन कहा जाता है। इससे जुड़ा हुआ एक बरामदा है जो काले ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। इसके बरामदे में पत्थर पर पुराणों की घटनाओं पर आधारित नक्काशी की गई है और यह नक्काशी अपने आप में अद्वितीय है जो सिर्फ सिंहाचलम मंदिर में ही देखने को मिलती है। इसके बाद मंदिर में उत्तरी हिस्से में नाट्यमंडपम है जो 96 स्तंभों से मिलकर बना है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां भगवान नरसिंह के साथ माता लक्ष्मी भी विराजमान है।
इस मंदिर में शनिवार और रविवार को हजारों संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। साथ ही यहां दर्शन करने के लिए सबसे उपयुक्त समय अप्रैल से जून तक का होता है। यहां पर मनाए जाने वाले मुख्य पर्व वार्षिक कल्याणम (चैत्र शुद्ध एकादशी) और चंदन यात्रा (वैशाख माह का तीसरा दिन)।
श्रद्धालुओं के लिए मंदिर खुलने का समय सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक है, और यह शाम को 6 बजे फिर से खुलता है और रात 9 बजे बंद हो जाता है। कुछ विशेष मौको पर समय बदल सकता है।
हवाई मार्ग - ये जगह हैदराबाद, चैन्नई, कोलकाता, नई दिल्ली और भुवनेश्वर से वायु मार्ग द्वारा सीधे जुड़ा हुआ है। इंडियन एयरलाइन्स की फ्लाइट इस जगह के लिए सप्ताह में पांच दिन चैन्नई, नई दिल्ली और कोलकाता से उपलब्ध है।
रेल मार्ग - विशाखापटनम चैन्नई-कोलाकात रेल लाइन मुख्य स्टेशन माना जाता है। साथ ही ये नई दिल्ली, चैन्नई, कोलकाता और हैदराबाद से सीधे जुड़ा हुआ हैं।
सड़क मार्ग - विशाखापटनम, हैदराबाद से 650 और विजयवाड़ा से 350 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान के लिए नियमित रुप से हैदराबाद, विजयवाड़ा, भुवनेश्वर, चैन्नई और तिरुपति से बस सेवा उपलब्ध है।
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