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भारत की खूबसूरती, संस्कृति और आध्यात्मिकता पूरी दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। यहां एक से बढ़कर एक अद्भुत और बहुत ही रहस्यमयी मंदिर है, जिन्हे देखने के लिए दूर- दूर से सैलानी पहुंचते हैं। आमतौर पर मंदिरों के नाम उनमें विराजमान भगवान के नाम पर ही रखते हैं, लेकिन भारत में एक ऐसा भी मंदिर है, जिसका नाम किसी भगवान के नाम पर न होकर उसे बनाने वाले के नाम पर रखा गया है। माना जाता है कि दुनिया में शायद इस तरह की विशेषता रखने वाले ये एकमात्र मंदिर है। इसे रामप्पा मंदिर के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर तेलंगाना में मुलुग जिले के वेंकटापुर मंडल के पालमपेट गांव में एक घाटी में स्थित है। बता दें कि इस मंदिर को 1213 ईस्वी में बनाया गया था। रामप्पा मंदिर में भगवान शिव विराजमान है, इसीलिए इसे 'रामलिंगेश्वर मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है।
रामप्पा मंदिर में भगवान शिव विराजमान है, इसलिए इसे 'रामलिंगेश्वर मंदिर' और 'रुद्रेश्वर मंदिर' के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का इतिहास काफी रोचक है। इतिहासकारों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण 1213 ईस्वी में काकतीय राजा गणपति देव द्वारा करवाया गया था। बता दें कि, गणपति देव एक महान योद्धा और कुशल प्रशासक थे जिन्होंने काकतीय साम्राज्य के विस्तार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निबाई और इस दौरान उन्होंने कई अन्य मंदिरों का निर्माण भी करवाया। आपकों बता दें कि रामप्पा मंदिर का निर्माण नामक कुशल शिल्पकार द्वारा किया गया और उन्हीं के नाम पर मंदिर का नाम रामप्पा मंदिर रखा गया। रामप्पा कलाकारी के लिए बहुत प्रसिद्ध थे और अपनी कलाकारी से उन्होंने मंदिर में कई सुंदर मूर्तियां और नक्काशीदारियां बनाईं। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर को बनाने में रामप्पा ने लगातार 40 साल तक काम किया था तब जाकर इसका भव्य निर्माण साकार हुआ।
रामप्पा मंदिर भीषण आपदाओं को झेलने के बाद भी आज तक सुरक्षित है। छह फीट ऊंचे प्लेटफॉर्म पर बने इस मंदिर की दीवारों पर महाभारत और रामायण के दृश्य उकेरे हुए हैं। मंदिर में भगवान शिव के वाहन नंदी की भी एक मूर्ति है, जिसकी ऊंचाई नौ फीट है। यह रामायण और महाभारत के दृश्य एक ही पत्थर पर उकेरे गए है, वह भी छेनी हथोड़े से। आज तक इस मंदिर में कोई क्षति नहीं हुई हैं, मंदिर के न टूटने की बात जब पुरातत्व विज्ञानियों को पता चली, तो उन्होंने मंदिर की जांच की। वैज्ञानिक अपनी जांच के दौरान काफी प्रयासों के बाद भी मंदिर के इस रहस्य का पता लगाने में सफल नहीं हुए। पुरातत्व विज्ञानियों ने मंदिर के पत्थर को काटा, तब पता चला कि ये पत्थर वजन में काफी हल्के हैं। उन्होंने पत्थर के टुकड़े को पानी में डाला, तब वह टुकड़ा पानी में तैरने लगा। पानी में तैरते पत्थर को देखकर मंदिर के रहस्य का पता चल गया। यहां तक की इस मंदिर में जो पत्थर मिले है, वह पत्थर के किसी कोने में नहीं मिले है, यह पत्थर कहां से लाए गए, आज तक इसका पता नहीं चल पाया है।
भारत के ऐतिहासिक स्थलों में से एक रामप्पा मंदिर अपनी कई खासियत के चलते 25 जुलाई 2021 को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रुप में मान्यता दी गई। ये निर्णय यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के 44वें सत्र में लिया गया। बता दें कि अभी तक भारत में कुल 42 विश्व धरोहर स्थल है जिसमें 33 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक स्थल और 1 मिश्रित्र विश्व विरासत स्थल है।
हवाई मार्ग - रामप्पा मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट हैदराबाद है। यहां ये आपको मंदिर तक के लिए टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हो जाएगी।
रेल मार्ग - वरांगल शहर विशाखापट्टनम और अन्य शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है इसलिए आपको विशाखापट्टनम से वरांगल जंक्शन के लिए सीधी ट्रेन मिल जाएगी।
सड़क मार्ग - विशाखापट्टनम से वरांगल की दूरी 500 किमी है और सड़क मार्ग द्वारा आपको पहुंचने में 11 घंटे का समय लगेगा।
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