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कुरनूल भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश का एक जिला है। कुरनूल जिले की नल्लामाला पहाड़ियों में बसा अहोलिम, भगवान नरसिम्हा के नौ रूपों को समर्पित अपने नौं मंदिरों के लिए प्रसिद्ध हैं। मंदिरों का यह समूह, जिसे सामूहिक रुप से नव नरसिम्हा क्षेत्र के नाम से जाना जाता है, वैष्णवों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। मंदिर ऊपरी और निचले अहोबिलम में फैले हुए हैं और हरे-भरे जंगलो और प्राकृति- केंद्रित अनुभव दोनों बनाते हैं। अहोबिलम मंदिर भगवान लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी को समर्पित है। मंदिर परिसर में आदि लक्ष्मी देवी मंदिर और चेंचू लक्ष्मी देवी मंदिर हैं। ये मंदिर विजयनगर शैली की वास्तुकला के अनुसार बनाया गया था। पवित्र अहोबिलम मंदिर भगवान लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी के पदचिन्ह्न पर बनाया गया था, जिसकी माप 5 फीट 3 इंच थी। ऐसा माना जाता है कि यहां किया गया विवाह समारोह सुखी औक संतुष्टिदायक होता है। भगवान नरसिम्हा भगवान विष्णु का आधा पुरुष, आधा शेर का रुप हैं, जब वह अपने भक्त प्रह्लाद को उसके पिता से बचाने आए थे।
अहोबिलम मंदिर भगवान नरसिम्हा के नौ रूपों को समर्पित अपने नौं मंदिरों के लिए प्रसिद्ध हैं। ज्वाला नरसिम्हा, अहोबिला नरसिम्हा, मालोला नरसिम्हा, क्रोडा नरसिम्हा, करंजा नरसिम्हा, भार्गव नरसिम्हा, योगानंद नरसिम्हा, क्षत्रवत नरसिम्हा और पावना नरसिम्हा। इन देवताओं की पूजा अहोबिलम की पर्वत श्रंखलाओं के बीच स्थित उनके व्यक्तिगत मंदिरों में की जा सकती है। इनके अलावा प्रह्लाद वरद के रुप में नरस्मिहा की पूजा पहाड़ो के आधार पर जमीनी स्तर पर मुख्य मंदिर परिसर में की जा सकती है। सुरक्षा और अन्य कारणों से कई पहाड़ी मंदिरों के उत्सव देवताओं को भी यहां रखा गया है। वास्तुकला की द्रविड़ शैली में निर्मित मंदिरों की विस्तार, पुननिर्माण और नवीनीकरण मुख्य रुप से 15वीं और 16वीं शताब्दी ईस्वी में विजयनगर शासकों द्वारा किया गया था। ऊपर पहाड़ी क्षेत्र में विशाल चट्टान की दरार है, जो कुछ हद तक 2 भागों में विभाजित है। इसे उग्र स्तम्भम के नाम से जाना जाता है और माना जाता है कि यह राक्षस हिरण्य के महल का विशाल स्तंभ है, जिसे तोड़कर भगवान नरसिम्हा बाहर निकले थे। उग्र स्तंभम से कुछ ही दूरी पर एक गुफा में प्रह्लाद नरसिम्हा स्वामी के साथ प्रह्लाद की भी पूजा की जा सकती है। इस तीर्थस्थल को प्रह्लाद मेट्टु कहा जाता है। रक्त कुंडम यहां के कई जल निकायों में से सबसे पवित्र है। कहा जाता है कि हिरण्य को मारने के बाद नरसिम्हा ने अपने खून से सने हाथ इसी पानी में साफ किये थे यही कारण है कि आज भी इसके पानी का रंग लाल है।
ब्रह्मोत्सवम इस तीर्थस्थल का महत्वपूर्ण त्योहार है, जो फरवीर-मार्च के दौरान मनाया जाता है। इस 10 दिवसीय उत्सव के दौरान भगवान प्रह्लाद वरदा को भव्य जुलूसों में लाया जाता है। स्वाति नरसिम्हा का जन्म नक्षत्र है, और हर महीने के स्वीति तारा दिवस पर सभी 9 नरस्मिहा देवताओं को औपचारिक पवित्र स्नान कराया जाता है, जिसे थिरुमंजनम के नाम से जाना जाता है।
नरसिम्हा एक शक्तिशाली देवता है और अहोबिलम को उनका आगमन स्थान माना जाता है। कलयुग के वर्तमान कठिन समय के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए लोग उनकी शरण लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि वह भक्तों को ताकत हासिल करने में मदद करेंगे, उनकी ईमानदार इच्छाओं को पूरा करेंगे और उन्हें खुश, संतुष्ट जीवन का वरदान देंगे।
अहोबिलम मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक है जबकि पीक सीजन फरवरी से मई तक है। अहोबिलम मंदिर निचला सुबह 6 बजे से दोपहर 2:30 बजे तक और शाम को 5 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है। अन्य मंदिर सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक और दोपहर 3 बजे से शाम 5:30 बजे तक खुलता है।
हवाई मार्ग - अहोबिलम मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा हैदराबाद में स्थित है, जो लगभग 250 किलोमीटर दूर है। हवाई मार्ग से मंदिर तक पहुंचने के लिए आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या बस ले सकते हैं।
रेल मार्ग - अहोबिलम मंदिर पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन नंदयाल जंक्शन है। जंक्शन ने श्रद्धालु मंदिर तक पहुंचने के लिए टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या बस ले सकते हैं। जो लगभग 60 किलोमीटर दूर हैं।
सड़क मार्ग - हैदराबाद, विजयवाड़ा और कुरनूल जैसे प्रमुख शहरों से अहोबिलम मंदिर तक नियमिक बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
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