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जैन मंदिर फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश (Jain Mandir Firozabad, Uttar Pradesh)


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माली को आया स्वप्न और यमुना से निकाली गई प्रतिमा, जानिए फिरोजाबाद के जैन मंदिर की कहानी 


उत्तर प्रदेश के विभिन्न कस्बों और शहर में कई मंदिर हैं, सबकी एक विशेष मान्यता है। ऐसा ही एक जैन मंदिर फिरोजाबाद में भी है। फिरोजाबाद में सदर बाजार के निकट स्थित चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर का इतिहास काफी गौरवमयी है। इसमें विराजमान भगवान चंद्रप्रभु की क्वार्ट्ज धातु की बनी हुई है। ऐसी मान्यता है कि इस अद्भुत प्रतिमा के दर्शन करने से पाप धुल जाता है। इस मंदिर पर मुहम्मद गौरी ने आक्रमण भी किया था। तो आइए, इस आर्टिकल में फिरोजाबाद में स्थित इस अनोखे जैन मंदिर के इतिहास और महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं। 


इस मंदिर से जुड़ी हैं कई कहानियां 


इतिहास के अनुसार करीब 300 वर्ष पहले स्थापित की गई भगवान चंद्रप्रभु की प्रतिमा से कई चमत्कार और किवदंतियां जुड़ी हुई हैं। फिरोजाबाद शहर के बसने से पूर्व यमुना किनारे स्थित चंद्रवाड़ मुख्य शहर हुआ करता था। यहां के राजा चंद्रसेन जैन धर्म के अनुयायी थे। आज भी ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने मात्र से व्यक्ति के अनजाने में किए गए पापों का नाश हो जाता है।  


गौरी ने किया था चंद्रवाड़ पर आक्रमण 


इतिहास में दर्ज है कि 14वीं सदी में मुगल शासक मुहम्मद गौरी की सेना ने  चंद्रवाड़ पर हमला किया था। आक्रमण करते हुए जब मुगल सैनिकों ने मंदिरों को तहस-नहस करना शुरू कर दिया था तो राजा ने भगवान चंद्रप्रभु की प्रतिमा बचाने के लिए उसे यमुना नदी में प्रवाहित कर दिया था। प्रतिमा प्रवाहित करने के कई साल बाद एक माली को स्वप्न आया कि यमुना नदी में भगवान चंद्रप्रभु की प्रतिमा है। तब माली ने अपने स्वप्न की जानकारी जैन समाज को दी। इसके बाद यमुना नदी में प्रतिमा की खोज की गई। हालांकि, ये करना इतना आसान नहीं था। तब माली को अगली बार स्वप्न आया कि नदी में फूल डालो तो अपने आप पता चलेगा। माली ने टोकरी भरकर पुष्प यमुना के जल में छोड़े। फूल एक स्थान पर ठहर गए और उतनी जगह पानी घट गया। इसके बाद नदी से यह प्रतिमा निकालकर मंदिर में स्थापित कराई गई।


प्रसिद्ध संतों का वर्षायोग


विभिन्न ख्यातिप्राप्त संतों ने इस मंदिर में वर्षायोग कर इसे पवित्र और विशेष बनाया है। 1933 में आचार्य शांतिसागर महाराज, 1956 में आचार्य महावीर कीर्ति, 1965 में आचार्य विद्यानंद, 1975 में आचार्य विद्यासागर और 1986 में आचार्य विमलसागर जैसे महान संतों ने यहां वर्षायोग किया। इन संतों की उपस्थिति ने मंदिर की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्ता को और बढ़ा दिया है। बता दें कि जैन धर्म में चातुर्मास को सामूहिक वर्षायोग या चौमासा के रूप में भी जाना जाता है। 


जानिए यहां की दुर्लभ प्रतिमा की विशेषता


मंदिर समिति से जुड़े स्थानीय लोगों की माने तो आचार्य शांतिसागर महाराज ने इस नगर को धन्य बताया था। इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा अपनी तरह की एकमात्र ऐसी प्रतिमा है, जिसकी दूसरी मिसाल पूरे भारत में कहीं नहीं मिलती। साथ ही यह प्रतिमा बहुत समय तक पानी के अंदर ही रही। इन सभी कारणों से यह मंदिर अपनी विशिष्टता और धार्मिक महत्व के कारण अद्वितीय बन जाता है।


ऐसे पहुंच सकते हैं मंदिर 


यह जगह आगरा में स्थित निकटतम हवाई अड्डे से लगभग 40 किमी दूरी पर स्थित है। वहीं, यहां से निकटतम रेलवे स्टेशन फिरोज़ाबाद रेलवे स्टेशन है जो दिल्ली-हावड़ा मार्ग पर है और इस जगह से केवल 1 किमी दूर है। जबकि, यह मंदिर फिरोज़ाबाद बस स्टैंड से मात्र 100 मीटर की दूरी पर स्थित है।


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