Khole Ke Hanuman Ji Temple Jaipur: खोले के हनुमानजी मंदिर, जयपुर की पहाड़ियों में बसा आस्था और इतिहास का संगम; जहां चट्टान से प्रकट हुए हनुमानजी
जयपुर शहर की पूर्वी पहाड़ियों की गोद में बसे 'खोले के हनुमानजी मंदिर' की महत्ता सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि भावनात्मक भी है। अरावली की मनोरम वादियों में स्थित यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है। इसे साल 1960 में पंडित राधेलाल चौबे ने स्थापित किया था, जिन्होंने यहां भगवान की मूर्ति मिलने के बाद पूजा-अर्चना शुरू की और जीवन के अंतिम क्षण तक यहीं रहे।
मंदिर का नाम 'खोले' इसलिए पड़ा क्योंकि पहले यहां पानी एक खोले यानी घाटी के रूप में बहता था। तब यह इलाका काफी दुर्गम और निर्जन था। आज यह मंदिर न सिर्फ जयपुर, बल्कि देशभर के हनुमान भक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है।
यहां हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं, लेकिन मंगलवार और शनिवार को भीड़ सबसे अधिक होती है। मंदिर समिति के अनुसार, यहां सभी धर्मों और देशों के लोग दर्शन के लिए आते हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
यहां बंदरों की भी बड़ी संख्या है, जिन्हें अक्सर साधु-संत भोजन कराते दिखते हैं।
इतिहास और स्थापना
60 के दशक में जब यह इलाका वीरान था, तब पंडित राधेलाल चौबे को यहां भगवान हनुमान की नक्काशी वाली एक चट्टान मिली। उन्होंने इसे भगवान का संकेत मानकर यहां पूजा शुरू कर दी और 1961 में नरवर आश्रम सेवा समिति की स्थापना कर मंदिर निर्माण में जुट गए।
मंदिर शुरू में मात्र 100 वर्ग फीट में था, लेकिन आज यह कई एकड़ क्षेत्र में फैला है। परिसर में हरे-भरे बगीचे, रसोईघर, अतिथि गृह और विशाल भोजनालय हैं, जहां एक बार में 5000 लोगों को भोजन कराया जा सकता है।
वास्तुकला और परिसर की भव्यता
राजपूत और मुगल स्थापत्य शैली में बने इस मंदिर को धौलपुर बलुआ पत्थर और संगमरमर से सजाया गया है। जालीदार खिड़कियां, नक्काशीदार गुंबद और छतरियां इसकी भव्यता को बढ़ाते हैं। मुख्य गर्भगृह में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है, जो एक संगमरमर के पत्थर पर विराजमान है।
मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियां स्थापित हैं, जिनमें ठाकुरजी, गणेशजी, ऋषि वाल्मीकि, गायत्री माता और श्रीराम दरबार प्रमुख हैं। शिव मंदिर में 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृतियां भी बनाई गई हैं।
मुख्य प्रांगण में पंडित राधेलाल चौबे की संगमरमर से बनी समाधि भी है।
सवामणी की परंपरा
यहां हर दिन भंडारा होता है। सवामणी प्रसाद भक्तों द्वारा दिए गए कच्चे अन्न से बनता है, जिसमें 46 से 51 किलो तक सामग्री होती है। कोई भी भक्त सवामणी का आयोजन कर सकता है। मंदिर की 24 रसोईयों में से किसी एक को एक दिन के लिए किराए पर लिया जा सकता है। किराया मेनू और संख्या के अनुसार तय होता है।
आरती का समय
आरती का समय मंदिर की वेबसाइट पर अपडेट होता रहता है। सामान्य दिनों में आरती सुबह 9 बजे और शाम 8:30 बजे होती है। मंगलवार और शनिवार को भी यही समय है।
कैसे पहुंचें
मंदिर जयपुर-दिल्ली हाईवे से करीब 2 किलोमीटर, जौहरी बाजार से 7 किलोमीटर और रेलवे स्टेशन से 11 किलोमीटर दूर है। यहां बस, ऑटो, टुकटुक या टैक्सी के जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है।
जरूरी जानकारियां
- मंदिर सुबह 6 बजे से रात 8:30 बजे तक खुला रहता है।
- प्रवेश पूरी तरह निःशुल्क है।
- परिसर में तस्वीरें खींचने की अनुमति है।
- वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों के लिए पार्किंग से मंदिर तक बैटरी चालित गाड़ियां निःशुल्क चलती हैं।
- दाल-बाटी चूरमा, सवामणी और रोट-चूरमा जैसे प्रसाद प्रसिद्ध हैं।