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हिंदू संस्कृति में मनुष्य के जीवन के अलग अलग पड़ावों को संस्कारों के साथ पवित्र बनाया जाता है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण संस्कार है विद्यारंभ संस्कार । यह संस्कार बच्चों के जीवन में शिक्षा की शुरुआत का प्रतीक है। इसका आयोजन बच्चे के 3 से 5 साल के होने पर किया जाता है। विद्यारंभ संस्कार में माता-पिता गुरु या विद्वान पंडित की उपस्थिति में विशेष पूजा-अर्चना करके बच्चे को पहली बार अक्षर लेखन करवाते हैं। ये संस्कार बच्चों के उज्जवल भविष्य की नींव रखने का कार्य करता है और उन्हें ज्ञान की तरफ प्रेरित करता है। दक्षिण भारत में इसे अक्षराभ्यास और बंगाल में हाटे खोरी के नाम से जाना जाता है। चलिए आपको इस संस्कार की पूजा विधि के बारे में विस्तार से बताते हैं।
विद्यारंभ संस्कार लिए शुभ मुहूर्त करना आवश्यक होता है। शुभ मुहूर्त निकालने से काम पूजा शुभ योग में होती है। जिसका अच्छा असर बच्चे पर होता है। आमतौर पर विद्यारंभ संस्कार बसंत पंचमी, अक्षय तृतीया, विजयादशमी (दशहरा) या किसी अन्य शुभ दिन किया जाता है।
विद्यारंभ संस्कार का मकसद बच्चों को ज्ञान और शिक्षा के महत्व के बारे में बताना होता है। यह उन्हें शिक्षा के पथ पर आगे बढ़ाता है। साथ ही इस संस्कार के जरिए उन्हें भारतीय संस्कृति और मूल्यों की समझ होती है। इसके अलावा यह संस्कार गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना विकसित करता है।