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सनातन धर्म में भाद्रपद माह को सभी माह में विशेष माना जाता है। इस माह को भगवान कृष्ण के जन्म से जोड़ा गया है। पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर कन्हैया का जन्मोत्सव मनाया जाता है। उनका जन्म इस तिथि पर रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है। ऐसे में लड्डू गोपाल की पूजा करने से विशेष कृपा की प्राप्ति होती है। इसी कड़ी में आइए, जन्माष्टमी पूजा विधि के बारे में विस्तार से जान लेते हैं।
ओम अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोअपि वा।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
वसुदेव सुतं देव कंस चाणूर मर्दनम्।
देवकी परमानंदं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।
इस मंत्र का जप कर भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें और फूल उनके चरणों में अर्पित करें।
‘यथोपलब्ध पूजनसामग्रीभिः कार्य सिद्धयर्थं कलशाधिष्ठित देवता सहित, श्रीजन्माष्टमी पूजनं अहं करिष्ये।’
हाथ में पान का पत्ता, कम से कम एक रुपये का सिक्का, जल, अक्षत, फूल, फल लेकर इस संकल्प मंत्र का उच्चारण करें, फिर हाथ में रखी हुई सामग्री भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित करें।
अनादिमाद्यं पुरुषोत्तमोत्तमं श्रीकृष्णचन्द्रं निजभक्तवत्सलम्।
स्वयं त्वसंख्याण्डपतिं परात्परं राधापतिं त्वां शरणं व्रजाम्यहम्।।
बिना आवाहन किए भगवान की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। आवाहन का अर्थ भगवान को बुलाना होता है। जब हम भगवान को बुलाते हैं, तभी वे पूजा को स्वीकार करते हैं। इसलिए पूजन से पहले आवाहन करना आवश्यक है।
इस प्रकार विधि-विधान से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है, और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।