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मां दुर्गा पूजा विधि

पहले बतलाये नियम के अनुसार आसनपर प्राङ्घख बैठ जाय। जल से प्रोक्षणकर शिखा बाँधे । तिलक लगाकर आचमन एवं प्राणायाम करे। संकल्प करे। हाथ में फूल लेकर अञ्जलि बाँधकर दुर्गाजी का ध्यान को। (ध्यान का मन्त्र पञ्चदेवपूजा (पृष्ठ-सं०१२३) में आ चुका है। यदि प्रतिष्ठित प्रतिमा हो तो आवाहनकी जगह पुष्पाञ्जलि दे, नहीं तो दुर्गाजी का आवाहन करे ।)

पुष्पांजलि समर्पण करे

रत्नमय आसन या फूल समर्पित करे

जल चढ़ाये

चन्दन, पुष्प, अक्षतयुक्त अर्घ्य समर्पण करे

कर्पूरसे सुवासित शीतल जल चढ़ाये  

गंगा जल चढ़ाये

आचमन के लिये जल चढ़ाये

गोदुग्ध से स्नान कराये 

गोदधिसे स्नान कराये

गोघृत से स्नान कराये

मधुसे स्नान कराये

शक्करसे स्नान कराये 

अपात्र में पृथक् निर्मित पञ्चामृतसे स्नान कराये

केसरको चन्दनसे घिसकर पीला द्रव्य बना ले और उस गन्धोदकसे स्नान कराये

शुद्ध जलसे स्नान कराये

आचमनके लिये जल दे  

धौतवस्त्र,उपवस्त्र, और कंचुकी निवेदित करे

आचमनके लिये जल दे  

सौभाग्यसूत्र चढाये

मलयचन्दन लगाये 

हल्दी का चूर्ण चढाये

कुंकुम चढाये 

सिन्दूर चढाये

काजल चढाये

दूब चढाये 

बिल्बपत्र चढाये 

आभूषण चढाये 

पुष्प एवं पुष्माला चढाये 

अबीर, गुलाल, हल्दीका चूर्ण चढ़ाये 

सौभाग्यपेटिका समर्पण करे

धूप दिखाये

घी की बत्ती दिखाये, हाथ धो ले

नैवेद्य निवेदित करे

आचमनीसे जल दे

ऋतुफल समर्पण करे

इलायची, लौंग, पूगीफलके साथ पान निवेदित करे

दक्षिणा चढ़ाये

कर्पूर की आरती करे 

प्रदक्षिणा करे

पुष्पांजलि  समर्पित करे

नमस्कार करे, इसके बाद चरणोदक सिरपर चढ़ाये 

क्षमा-याचना करे 

अर्पण - ॐ तत्सद् ब्रह्मार्पणमस्तु । विष्णवे नमः, विष्णवे नमः, विष्णवे नमः ।

विशिष्ट पूजा-प्रकरण

किसी भी यज्ञादि महोत्सवों, पूजा-अनुष्ठानों अथवा नवरात्र- पूजन, शिवरात्रिमें शिव-पूजन, पार्थिव पूजन, रुद्राभिषेक, सत्यनारायाण- पूजन, दीपावली-पूजन आदि कौमें प्रारम्भमें स्वस्तिवाचन, पुण्याहवाचन, गणेश-कलश-नवग्रह तथा रक्षा-विधान आदि कर्म सम्पन्न किये जाते हैं, इसके अनन्तर प्रधान-पूजा की जाती है। अतः यहाँ भी वह पूजा-विधान दिया गया है। नान्दीमुख श्राद्ध तथा विशेष अनुष्ठानोंक प्रधान देवताका पूजन-विधान यहाँ नहीं दिया गया है, अन्य पद्धतियोंको देखकर करना चाहिये ।

देव पूजन में वेद-करायेंं, फिर आगम-करायेंं और बाद में नाम-मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है। यहाँ इसी क्रम का आधार लिया गया है। जिन्हें वेद-मन्त्र न आता हो, उन्हें आगम-मन्त्रों का प्रयोग करना चाहिये और जो इनका भी शुद्ध उच्चारण न कर सकें, उनको नाम-मंत्रों से पूजन करना चाहिये।

पूजा से पहले पात्रों को क्रम से यथास्थान रखकर पूर्व दिशाकी ओर मुख करके आसन पर बैठ कर तीन बार आचमन करना चाहिये- आचमन

ॐ केशवाय नमः । ॐ नारायणाय नमः । ॐ माधवाय नमः 

आचमन के पश्चात् दाहिने हाथ के अँगूठे के मूल भाग से ॐ हृषीकेशाय नमः, ॐगोविन्दाय नमः कहकर ओठोंको पोंछकर हाथ घो लेना चाहिये । तत्पश्चात् निम्नलिखित मन्त्रसे पवित्री धारण करे-

आचमन के पश्चात दाहिने हाथ के अँगूठे के मूल भाग से ॐ हृषीकेशाय नमः, ॐ गोविन्दाय नमः कह कर ओठों को पोंछकर हाथ धो लेना चाहिये । तत्पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र  से पवित्री धारण करें

पवित्री धारण करने के पश्चात् प्राणायाम करें।

इसके बाद बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से अपने ऊपर और पूजा-

सामग्री पर छिड़क ले

तदनन्तर पात्र में अष्टदल कमल बनाकर यदि गणेश-अम्बिका की मूर्ति न हो तो सुपारीमें मौली लपेटकर अक्षत पर स्थापित कर देनेके बाद हाथ में अक्षत और पुष्प ले कर स्वस्त्ययन पढ़ना चाहिये।

हाथ में लिये अक्षत-पुष्पको गणेशाम्बिकापर चढ़ा दे। इसके बाद दाहिने हाथ में जल, अक्षत और द्रव्य लेकर संकल्प करें

यदि सकाम पूजा करनी हो तो कामना-विशेषका नाम लेना चाहिये या संकल्प करना चाहिये-

संकल्पके पश्चात् न्यास करें । मन्त्र बोलते हुए दाहिने हाथसे कोष्ठमें निर्दिष्ट अल्लोका स्पर्श करें।

गणपति और गौरी की पूजा

पूजा में जो वस्तु विद्यमान न हो उसके लिये श्मनसा परिकल्य समर्पयामिश् कहे। जैसे, आभूषण के लिये श्आभूषणं मनसा परिकल्य समर्पयामि

हाथ में अक्षत लेकर ध्यान करें -

भगवान् गणेश का ध्यान -

भगवती गौरी का ध्यान -

भगवान् गणेश का आवाहन

भगवती गौरी का आवाहन -

हाथ के अक्षत गणेशजी पर चढ़ा दे। फिर अक्षत लेकर गणेशजी को दाहिनी ओर गौरी जी का आवाहन करें ।

आसनके लिये अक्षत समर्पित करें

एतानि पाद्यार्थ्याचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः । (इतना कहकर जल चढ़ा दे) 

दूध से स्नान कराये 

दधि से स्नान कराये

घृत से स्नान कराये

मधु से स्नान कराये

शर्करा से स्नान कराये

पञ्चामृत से स्नान कराये

गन्धोदकसे स्नान कराये

शुद्ध जलसे स्नान कराये

आचमनके लिये जल दे

वस्त्र समर्पित करें

आचमनके लिये जल दे

उपवस्त्र समर्पित करें

आचमनके लिये जल दे

यज्ञोपवीत समर्पित करें 

आचमन के लिये जल दे 

चन्दन अर्पित करें

अक्षत चढ़ाये

पुष्पमाला समर्पित करें

दूर्वाङ्कर चढ़ाये 

सिन्दूर अर्पित करें

अबीर आदि चढ़ाये

सुगन्धित द्रव्य अर्पण करें

धूप दिखाये

नैवेद्य - नैवेद्यको प्रोक्षित कर गन्ध-पुष्पसे आच्छादित करें। तदनन्तर जलसे चतुष्कोण घेरा लगाकर भगवान्के आगे रखे 

नैवेद्य निवेदित करें

जल समर्पित करें

ऋतुफल अर्पित करें

आचमनीय जल अर्पित करें

जल दे

मलयचन्दन समर्पित करें

इलायची, लौंग-सुपारीके साथ ताम्बूल अर्पित करें

गणपति और गौरीकी पूजा

द्रव्य दक्षिणा समर्पित करें

कर्पूरकी आरती करें, आरतीके बाद जल गिरा दे

पुष्पांजलि अर्पित करें

प्रदक्षिणा करें

विशेषार्घ्य - ताम्रपात्र में जल, चन्दन, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा और दक्षिणा रखकर अर्घ्यपात्र को हाथ में लेकर ध्यान करें

विशेषार्घ्य दे 

साष्टाङ्ग नमस्कार करें 

गणेश पूजन कर्म यन्यूनमधिकं कृतम् । तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽस्तु सदा मम॥

अनया पूजया गणेशाम्बिके प्रीयेताम् न मम।(ऐसा कहकर समस्त पूजनकर्म भगवान्को  समर्पित कर दे) ’ तथा पुनः नमस्कार करें।

कलश-स्थापन

कलश में रोली से स्वस्तिकका चिह्न बना कर गले में तीन धागावाली मौली लपेटे और कलश को एक ओर रख ले। कलश स्थापित किये जानेवाली भूमि अथवा पाटे पर कुङ्कम या रोलीसे अष्टदलकमल बनाकर निम्न मन्त्रसे भूमिका स्पर्श करें-


भूमिका स्पर्श - ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य

भुवनस्य धर्ती। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ ह पृथिवीं मा हि सीः ॥

निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर पूजित भूमिपर सप्तधान्यश् अथवा गेहूँ, चावल या जौ रख दे -

इस धान्यपर कलश की स्थापना करें-

चन्दन छोड़े 

सर्वोषधि छोड़ दे

दूब छोड़े

पञ्चपल्लव रख दे

कुश छोड़ दे

सप्तमृत्तिका छोड़े

सुपारी छोड़े

पञ्चरत्न छोड़े

द्रव्य छोड़े

कलश को वस्त्र से अलंकृत करें

चावल से भरे पूर्णपात्र को कलश पर स्थापित करें और उस पर लाल कपड़ा लपेटे हुए नारियल को रखे 

अब कलश में देवी-देवता ओं का आवाहन करना चाहिये। सबसे पहले हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण का आवाहन करें-

कलश में वरुण का ध्यान और आवाहन -

अक्षत-पुष्प कलशपर छोड़ दे।

फिर हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर चारों वेद एवं अन्य देवी-देवताओं का आवाहन करें -

कलश में देवी-देवताओं का आवाहन -

इस तरह जलाधिपति वरुण देव तथा वेदों, तीर्थों, नदियों, सागरों, देवियों एवं देवताओं के आवाहन के बाद हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर कलश की प्रतिष्ठा करें- 

प्रतिष्ठा - 

अक्षत- पुष्प कलश के पास छोड़ दे।

ध्यान - पुष्प समर्पित करें

आसन - अक्षत रखे 

पाद्य - जल चढ़ाये

अर्घ्य - जल चढ़ाये

स्नानीय जल -  स्नानीय जल चढ़ाये 

स्नानाङ्ग आचमन - आचमनीय जल चढ़ाये

पञ्चामृतस्नान - पञ्चामृतसे स्नान कराये

गन्धोदक-स्नान – जल में मलय चन्दन मिला कर स्नान कराये

शुद्धोदक-स्नान- शुद्ध जल से स्नान कराये

आचमन - आचमन के लिये जल चढ़ाये

वस्त्र - वस्त्र चढ़ाये

आचमन – आचमन के लिये जल चढ़ाये

यज्ञोपवीत -यज्ञोपवीत चढ़ाये

उप वस्त्र - उप वस्त्र चढ़ाये

आचमन - आचमन के लिये जल चढ़ाये

चन्दन - चन्दन लगाये

अक्षत - अक्षत समर्पित करें

पुष्प (पुष्प माला) - पुष्प और पुष्प माला चढ़ाये

नानापरिमल-द्रव्य -विविध परिमल द्रव्य समर्पित करें

सुगन्धित द्रव्य - सुगन्धित द्रव्य (इत्र आदि) चढ़ाये

धूप- धूप आघ्रापित कराये 

दीप -  दीप दिखाये 

हस्तप्रक्षालन - दीप दिखाकर हाथ धो ले।

नैवेद्य -  नैवेद्य निवेदित करें  

आचमन आदि - आचमनीय एवं पानीय तथा मुख और हस्त- प्रक्षालनके लिये जल चढ़ाये  

करोद्वर्तन - करोद्वर्तनके लिये गन्ध समर्पित करें 

ताम्बूल - सुपारी, इलायची, लौंगसहित पान चढ़ाये

दक्षिणा - द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये 

आरती - आरती करें 

पुष्पाञ्जलि - पुष्पाञ्जलि समर्पित करें 

प्रदक्षिणा - प्रदक्षिणा करें हाथ में पुष्प लेकर इस प्रकार प्रार्थना करें -

प्रार्थना- हाथ जोड कर प्रार्थना करें

नमस्कार पूर्वक पुष्प समर्पित करें

अब हाथ में जल लेकर जल कलश के पास छोड़ते हुए समस्त पूजन-कर्म भगवान् वरुणदेव को निवेदित करें ।

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