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सनातन धर्म में इंद्रदेव को देवों के राजा और आकाश, वर्षा, बिजली और युद्ध के देवता के रूप में पूजा जाता है। इंद्रदेव के आशीर्वाद से पृथ्वी पर वर्षा होती है, जो कृषि और जीवन के लिए आवश्यक है। वे वर्षा के देवता के रूप में प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखते हैं। इतना ही नहीं, इंद्रदेव को व्रजधारी भी कहा जाता है, क्योंकि उनके पास वज्र नामक एक शक्तिशाली अस्त्र था, जो उन्हें असुरों और राक्षसों से युद्ध में विजय दिलाने के लिए विशेष रूप से दिया गया था। वज्र को आकाश में बिजली के रूप में दर्शाया जाता है।
इंद्रदेव के बारे में ऋग्वेद में विस्तार से उल्लेख किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि सभी यज्ञों और संस्कारों में इंद्रदेव का भी आह्वान किया जाता है। इंद्रदेव की पूजा विशेष रूप से किसानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। अब ऐसे में अगर आप इंद्रदेव की पूजा कर रहे हैं, तो उनकी पूजा किस विधि से करने से लाभ हो सकता है और इंद्रदेव की पूजा कब करनी चाहिए। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य त्रिपाठी जी द्वारा बताई गए जानकारी साझा कर रहे हैं। इसलिए आप इस लेख को विस्तार से पढ़ें।
अगर आप इंद्रदेव की पूजा करने जा रहे हैं। तो विधि के बारे में जान लें।
पूजा के बाद जमीन पर थोड़ा जल गिराकर उसे अपने मस्तक पर लगाकर तीन बार इंद्रदेव को नमस्कार करना चाहिए। इसके लिए सूक्ति कही जाती है, जैसे कि 'इन्द्राय नमः, शक्राय नमः' आदि। इसके अलावा आप पंडित जी से भी पूछ सकते हैं।
अगर आप इंद्रदेव की पूजा करना चाहते हैं, तो वर्षा ऋतु सबसे शुभ माना जाता है। इसके अलावा आप पंडित से भी जानकारी लेकर पूजा करवा सकते हैं।
इंद्रदेव को वर्षा के देवता माना जाता है। इसलिए, सूखे या अकाल की स्थिति में उनकी पूजा करने से वर्षा की कामना की जाती है। इंद्रदेव को देवताओं का राजा और युद्ध के देवता भी माना जाता है। इसलिए, किसी भी कठिन कार्य या युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा कर सकते हैं। इंद्रदेव को ऐश्वर्य और धन-दौलत के देवता भी माना जाता है। इसलिए, उनकी पूजा करने से धन और वैभव की प्राप्ति होती है।