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सूर्यमंदिर का नाम सुनते ही कोणार्क का प्राचीन सूर्यमंदिर का नाम सामने आता है। कोणार्क के प्राचीन सूर्यमंदिर से मिलता जुलता मंदिर ग्वालियर में भी है। इस मंदिर की खासियत है कि यहां सूर्य की पहली किरण से अंतिम किरण तक मंदिर में प्रतिष्ठित प्रतिमा तक पहुंचती है। इस मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मकर संक्राति पर यहां पूजा का का विशेष महत्व माना जाता है। कोणार्क के जैसा ही यहां भी उल्टे कमल की तरह मंदिर डोम बनाया गया है। इस मंदिर को भी रथ पर सवार सूर्य के आकार में ही बनाया गया है। इस सूर्यमंदिर में भी भगवान सूर्य सप्ताह के दिनों के प्रतीक सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं।
ग्वालियर में भी 530 ईश्वी से सूर्योपासना की परंपरा के अवशेष किले के सूरज कुंड के पास मिले सूर्यमंदिर से मिलते हैं। इसी परंपरा को बनाए रखने के लिए उद्योगपति घनश्यामदास बिड़ला ने कोणार्क की डिजाइन से ही प्रेरणा लेकर ग्वालियर में 1984 में सूर्य मंदिर बनवाया। 1988 में बंसंत कुमार बिड़ला ने इस मंदिर का औपचारिक लोकार्पण कराया।
इस सूर्यमंदिर में भगवान सूर्य सप्ताह के दिनों के प्रतीक सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं। साल के 12 महीनों के प्रतीक तौर पर रथ में 12-12 (कृष्ण पक्ष-शुक्ल पक्ष के प्रतीक) पहिए दोनों ओर लगाए गए हैं। प्रत्येक पहिए में आठ बड़े और आठ छोटे आरे हैं, जो दिन और रात के आठ प्रहरों के प्रतीक हैं।
गर्भगृह में भगवान सूर्य की प्रतिमा है। यहां खिड़कियां इस तरह बनाई गई हैं कि सूर्य की पहली किरण से शाम को आखिरी किरण तक भगवान सूर्य की प्रतिमा को रोशन रखती है। यह मंदिर 20500 वर्ग फीट क्षेत्रफल में फैला हुआ है। तथा मंदिर की उँचाई 76 फीट 1 इंच है। मंदिर के मुख्य हाल मैं तीन द्वारा हैं, प्रत्येक द्वार पर चार-चार स्तंभ है। इन स्तंभो पर नवग्रहों की 9-9 मूर्तियां प्रत्येक द्वार पर क्रमशः सूर्य, चंद्र, मंगल, गुरु, शुक्र, शनि व राहु एवं केतु की मूर्तियां एवं प्रत्येक द्वार पर चतुर्भुजी गणेश जी विराजमान हैं। इसके साथ ही मंदिर में कुल 373 मूर्तियां है।
मंदिर का पता रेजीडेंसी रोड, महावीर ग्वालियर मध्य प्रदेश है। मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन ग्वालियर है। आप यहां से मंदिर तक पहुंचने के लिए सवारी कर सकते हैं।
समय : सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे, दोपहर 1:00 बजे से शाम 6:30 बजे
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