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सागर जिले की रहली तहसील के पास रानगिर में माता हरसिद्धि का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर लोगों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर रानगिर में देहार नदी के किनारे पर पहाड़ पर स्थित मां हरसिद्धि के मंदिर चैत्र नवरात्रि में लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। कभी दुर्गम क्षेत्र में स्थित यह मंदिर अब लोगों के लिए काफी सुगम होता जा रहा है।
मंदिर के इतिहास और वैभव को लेकर कई तरह की किवदंतिया भी प्रचलित है। रानगिर हरसिद्धि माता मंदिर को स्थानीय लोग 52 शक्ति पीठों में से एक मानते हैं। माना जाता है कि इस स्थान पर माता की रान ( जांघ ) गिरी थी इसलिए इस स्थान का नाम रानगिर पड़ा। माता के मंदिर का निर्माण कब और किसने किया था इसकी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। रानगिर हरसिद्धि माता का मंदिर घने जंगलों से घिरा है और मंदिर के पास से ही देहार नदी बहती है जो मंदिर के वातावरण और शांत एवं इस स्थान की सुंन्दरता को कई गुना बढ़ा देती है।
हरसिद्धि माता का मंदिर बहुत बड़ा है जिसके चारों तरफ गलियारा है और बीच में माता रानी का भव्य मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह में माता की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के दरवाजों पर सुंन्दर नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर के पास कुछ छोटे मंदिर भी हैं। रानगिर मंदिर में हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है। मंदिर के बाहर प्रसाद की दुकानें हैं। इन दुकानों से नारियल, चुनरी और प्रसाद लिया जा सकता है। मंदिर के सामने से देहार नदी बहती है। नवरात्री में यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है। चैत्र नवरात्री में यहां विशाल मेला भी लगता है। माना जाता है कि, यहां भक्तों की सभी मन्नतें पूरी होती हैं।
रानगिर स्थित मां हरसिद्धि के मंदिर को लेकर कई तरह की किवदंतिया हैं, जो अलग-अलग तरीके से प्रचलित है। हरसिद्धि माता मंदिर के बारे में कहा जाता है कि, दक्ष प्रजापति के अपमान से दुखी सती ने योग बल से शरीर त्याग दिया था। इस बात से क्रोधित देवों के देव महादेव ने सती के शव को लेकर विकराल तांडव किया था। भगवान शिव के कोप से संसार में हाहाकार मच गया। इसे रोकने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वो भगवान शिव के क्रोध को शांत करें।
भगवान विष्णु ने सती के शव को अपने चक्र से अंगों में बांटा और यह अंग जहां-जहां गिरे, वहां शक्ति पीठ स्थापित हैं। कहा जाता है कि, सती माता की राग ( जांघ ) यहीं गिरी थी इसलिए ये इलाका रानगिर कहलाया। रानगिर का यह मंदिर लगभग 1100 वर्ष पुराना है। इस स्थान के विषय में कहा जाता है कि, यह मंदिर पहले रानगिर में नहीं था, नदी के उस पार देवी जी रहती थीं।
एक अन्य कथा के अनुसार, इस स्थान पर एक तरवाहा था उसकी लड़की थी जिसके साथ माता हरसिद्धि प्रतिदिन खेलने आती थी और आते-जाते चरवाहे की कन्या को चांदी का सिक्का देकर जाती थी। चरवाहा यह जानना चाहता था कि, उसकी पुत्री को चांदी का सिक्का कौन देकर जाता है, इसलिए एक दिन उसने छुपकर माता के कन्या रूप को देख लिया। जब माता को यह पता चला तो वह उसी समय पाषाण में बदल गई। इसके बाद चरवाहे ने उस स्थान पर चबूतरा बना कर माता की स्थापनी की।
मां हरसिद्धि स्वयं प्रकट होने के साथ ही, सभी की मनोकामना पूर्ण करने के लिए विख्यात है। मनोकामना पूर्ण करने के कारण ही उन्हें हरसिद्धि कहा जाता है। मान्यता है कि, मां हरसिद्धि एक दिन में तीन रूप में लोगों को दर्शन देती है। सुबह बालिका रूप में, दोपहर में युवती के रूप में और शाम के समय वृद्धा के रूप में मां हरसिद्धि की प्रतिमा के दर्शन होते है। वर्तमान में नया भव्य मंदिर बना है, जबकि इसके पूर्व एक किले (गढ़) के रूप में था।
माता हरसिद्धि का प्राचीन मंदिर बूढी रानगिर में स्थित है, बाद में माता को नए मंदिर में विराजमान किया गया था। देहार नदी के दूसरी तरफ बूढी रानगिर माता है। बूढी रानगिर मंदिर जाने के लिए देहार नदी को पार करके जंगल के रास्ते मंदिर तक जाया जा सकता है। यह रास्ता उबड़-खाबड़ है और रास्ते में बंदर भी मिलते हैं। बूढी माता का मंदिर बहुत प्राचीन है। यह मंदिर छोटी है जिसके गर्भ गृह में बूढी रानगिर माता विराजमान है।
रानगिर हरसिद्धि माता मंदिर सागर जिले के रानगिर नामक स्थान पर घने जंगलों के बीच स्थित है। सागर से रानगिर जाने के दो रास्ते है। पहला रास्ता सागार-नरसिंहपुर मार्ग पर सुरखी नामक स्थान से कुछ आगे मुख्य मार्ग से हटकर तकरीबन 10 किलीमीटर जाना पड़ता है। वहीं दूसरा रास्ता जबलपुर सागर मार्ग से रहली होते हुए जाना पड़ता है, जिसमें 5 मील नामक स्थान से मुख्य सड़क से हटकर रानगिर जाया जा सकता है। दोनों तरफ से रानगिर जाने के लिए पक्की सड़के हैं।
हवाई मार्ग- निकटतम एयरपोर्ट जबलपुर है जो लगभग 180 किलोमीटर है। भोपाल एयरपोर्ट लगभग 200 किलोमीटर है।
ट्रेन मार्ग - रानगिर हरसिद्धि माता मंदिर पहुंचने के लिए निकटतम रेल्वे स्टेशन सागर है।
सड़क मार्ग- रानगिर हरसिद्धि माता मंदिर सड़क मार्ग से सागर, जबलपुर, नरसिंहपुर से अच्छी तरह से जुड़ी हुआ है। यहां विशेष अवसरों पर सागर और रहली से बस चलती हैं किन्तु अपने साधन से जाना ज्यादा सुविधाजनक है।
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