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सोमवती अमावस्या व्रत कथा

क्या है सोमवती अमावस्या की व्रत कथा, इसके द्वारा होती पितरों की पूजा 


अमावस्या का हिंदू धर्म में खास महत्व होता है। सोमवार को पड़ने की वजह से इस अमावस्या को सोमवती अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दौरान पितरों की पूजा होती है। दिसंबर माह में सोमवती अमावस्या सोमवार, 30 दिसंबर 2024 को है। ये इस साल की आखिरी अमावस्या है। जो लोग इस दिन व्रत रखते हैं और इसकी व्रत कथा की महिमा का गुणगान करते हैं उन्हें सौभाग्य का वरदान मिलता है।  तो आइए इस लेख में सोमवती अमावस्या की पूरी व्रत कथा को विस्तार से जानते हैं। 



क्या है सोमवती अमावस्या की व्रत कथा? 


एक साहूकार के सात बेटे और सात बहुओं के साथ एक बेटी भी थी। साहूकार के घर एक दिन एक साधु आया जिसे साहूकार की बहू में भिक्षा दिया। तब साधु ने उनकी सभी बहुओं  को सदा सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्रदान किया। पर साधु को जब साहूकार की बेटी भिक्षा देने गई तो उसने उस लड़की से भिक्षा नहीं लिया और बोला कि तेरे भाग्य में सुहाग की जगह दुहाग लिखा है। 


लड़की को उस साधु की यह बात बहुत बुरी लगी पर वो चुप ही रही। कुछ दिन बाद उसने अपनी माँ से साधु के द्वारा कही हुई वो बात बताई। सारी बात सुनकर उसकी माँ ने कहा है कि “कल जब साधु आएगा तब मैं सुनती हूँ कि वह क्या कहता है और क्यूँ कहता है।”


अगले दिन फिर साधु आया तो साहूकारनी छिपकर बैठ गई है और लड़की को भिक्षा देने भेजा। साधु ने फिर उससे भिक्षा नहीं लिया और फिर वही बात दोहराया कि “तेरे भाग्य में सुहाग की बजाय दुहाग लिखा है।” तब तुरंत ही लड़की की माँ बाहर निकल कर आई और साधु से कहा कि “ महाराज आपने सातों बहुओं को सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया पर हमारी एकमात्र पुत्री को ऐसा आशीर्वाद क्यों नहीं दिया?” तब साधु ने जवाब दिया कि “जो बात सच है मैं बस वही कह रहा हूँ। इसके भाग्य में जो लिखा है मैं वही बता रहा हूँ। दरअसल, इसको वैधव्य लिखा हुआ है।” 


सारी बातें सुनने पर लड़की की माँ कहती है कि जब आपको सारी बात पता है तो इससे बचने का उपाय भी पता होगा। इसलिए, कृपया वह भी बताइए। साधु ने तब बताया कि “सात समंदर पार एक धोबन रहती है जिसका नाम सोमा है। वह सोमवती अमावस्या का व्रत करती है, अगर वह आकर इसे आशीर्वाद दे दे तब ही इसका दुहाग टल सकता है। नहीं तो विवाह के समय ही  सर्प काटने से इसके पति की मृत्यु हो जाएगी। सारी बात सुनकर लड़की की माँ रोने लगी फिर सोमा धोबिन की तलाश में निकल गई।


चलते-चलते रास्ते में तेज धूप पड़ने लगी। धूप से बचने के लिए साहूकारनी एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गई। उसी वृक्ष पर गरुड़ के बच्चे भी अपने घोसलें में बैठे थे। तभी एक साँप आया और गरुड़ के बच्चों को खाने के लिए लपका लेकिन साहूकारनी ने उस साँप को मारकर बच्चों की रक्षा की। कुछ देर बाद गरुड़नी आई और सब जगह खून देखकर साहूकारनी को चोंच से मारने लगी। साहूकारनी बोली कि एक तो मैंने तेरे बच्चों को साँप से बचाया और तू मुझे ही मार रही है। सारी बातें जानने पर गरुड़नी बोली कि तूने मेरे बच्चों की रक्षा की है इसलिए माँग जो चाहती है।


साहूकारनी गरुड़नी से कहती है कि मुझे सात समंदर पार सोमा धोबिन के यहाँ छोड़ दे। इतना सुनना था कि गरुड़नी ने साहूकारनी को अपनी पीठ पर बैठाया और उड़ चली। साहूकारनी सात समंदर पार पहुंच तो गई। लेकिन, सोचने लगी कि इसे कैसे मनाऊं? सोमा धोबिन की भी सात बहुएँ थी लेकिन घर के काम को करने के लिए सदा आपस में ही लड़ती-झगड़ती रहती थी। रात को जब सब सो जाते तो साहूकारनी आती और चुपके से सारा काम कर उजाला होने से पहले चली भी जाती। सारी बहुएँ भी आपस में यही सोचती कि कौन सी बहू है जो सारा काम कर देती है। लेकिन, एक-दूसरे से पूछने की हिम्मत किसी की भी नहीं होती।


सोमा धोबिन ने भी देखा कि आजकल बहुएँ लड़ती भी नहीं है और सारा काम भी हो जाता है। तब सोमा धोबिन ने सारी बहुओं को बुलाया और उसने पूछा कि “आजकल तुम लड़ती भी नहीं हो और घर का सारा काम कौन करता है?” बहुएँ सास से झूठ कहने लगीं कि “लड़ाई करने से क्या फायदा है हम मिलकर काम कर लेती हैं।” सोमा धोबिन को अपनी बहुओं की बात पर विश्वास नहीं हुआ। इसलिए, वह रात में जागकर स्वयं देखना लगी कि आखिर कौन काम करता है! 


रात होने पर सोमा धोबिन छिपकर बैठ जाती है कि देखूँ कौन सी बहू काम करती है। रात हुई तो वह देखती है कि एक औरत चुपके से घर में घुस रही है। वह देखती है कि उसने घर का सारा काम कर दिया है और जाने की तैयारी में है। जैसे ही साहूकारनी जाने लगती है तो सोमा धोबिन उसे रोकती है और पूछती है कि तुम कौन हो़? और क्या चाहती हो? साहूकारनी कहती है कि पहले तुम वचन दो तब बताऊँगी। वह वचन देती है। तब साहूकारनी कहती है कि मेरी बेटी के भाग्य में दुहाग लिखा है लेकिन तुम सोमवती अमावस्या करती हो तो मेरे साथ चलकर उसे सुहाग दे दो।


सोमा धोबिन वचन से बँधी थी तो वह साहूकारनी के साथ चलने को तैयार हो जाती है। जाते हुए सोमा धोबिन अपने बेटों व बहुओं से कहती है कि “मैं इस औरत के साथ इसकी बेटी को सुहाग देने जा रही हूँ लेकिन अगर मेरे पीछे से तुम्हारे पिताजी मर जाएँ तो उन्हें तेल के कूपे में डालकर रख देना।” धोबिन साहूकारनी के घर पहुँच जाती है। साहूकरनी अपनी बेटी का विवाह करती है तो फेरों के समय सोमा धोबिन कच्चा करवा, दूध तथा तार लेकर बैठ जाती है। कुछ समय बाद साँप आता है और दूल्हे को डसने लगता है। तब सोमा धोबिन करवा आगे कर तार से साँप को बाँध देती है और साँप मर जाता है। अब सोमा धोबिन ने लड़की को सुहाग दे दिया और कहा कि जितनी अमावस्याएँ मैने की हैं उन सभी का फल साहूकार की इस लड़की को मिलेगा। और अब से आगे जो अमावस्याएँ मैं करुँगी उनका फल मेरे पति व बेटों को मिलेगा।


सभी लोग सोमवती अमावस्या की जय-जयकार करने लगते हैं। सोमा धोबिन अपने घर वापिस जाने को तैयार हुई तो साहूकारनी ने कहा कि तुमने मेरे जमाई को जीवनदान दिया है। इसलिए, तुम जो चाहो माँग लो। सोमा धोबिन बोली कि मुझे कुछ नहीं चाहिए और वह चली गई। रास्ते में चलते हुए फिर से सोमवती अमावस्या आ गई उसने पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर कहानी कही, व्रत रखा और पीपल के पेड़ की 108 बार परिक्रमा की।


पीपल के पेड़ की पूजा के बाद वह घर जाती है तो देखती है कि उसका पति मरा पड़ा है। अब रास्ते में जो सोमवती अमावस्या उसने की थी उसका फल अपने पति को दे दिया जिसके प्रभाव से वह पुन: जीवित हो उठा। सब कहने लगे कि तूने ऐसा क्या किया जिससे तेरा पति जिन्दा हो गया? तब सोमा कहती है कि “मैंने तो ऎसा कुछ नहीं किया है बस रास्ते में सोमवती अमावस्या आ गई थी जिसका मैने व्रत किया, कहानी कही और पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की।”


तब सारी नगरी में ढिंढोरा पिटवा दिया गया कि हर कोई सोमवती अमावस्या करेगा, पूजा करेगा, व्रत रखेगा, कहानी कहेगा और पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करेगा। और कहेगा कि “हे सोमवती ! जैसा आपने साहूकार की बेटी को सुहाग प्रदान किया वैसे ही सबको देना।” 


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