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पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। देवी रुक्मिणी मां लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं और भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थीं। रुक्मिणी अष्टमी के दिन देवी की पूजा से धन-धान्य की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख का प्रसार होता है। द्वापर युग में गोपियों ने पौष अष्टमी पर 'कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरू ते नमः' इस मंत्र का जाप किया था। अतः अष्टमी का व्रत रख रहे भक्तों को आज के दिन इस मंत्र का अधिक से अधिक जाप करना चाहिए। आइए जानते हैं रुक्मिणी अष्टमी की कथा और इसके महत्व के बारे में।
पंचांग के अनुसार, इस साल पौष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 22 दिसंबर को दोपहर 02 बजकर 31 मिनट से हो रहा है, जो अगले दिन 23 दिसंबर को शाम 05 बजकर 07 मिनट तक जारी रहेगी। ऐसे में इस साल 22 दिसंबर को रुक्मिणी अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा और उदया तिथि के अनुसार रुक्मिणी अष्टमी का व्रत 23 दिसंबर को रखा जाएगा।
रुक्मिणी अष्टमी प्रतिवर्ष पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व देवी रुक्मिणी के जन्म और विवाह की कथा से जुड़ा हुआ है। देवी रुक्मिणी विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं और भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थीं। देवी रुक्मिणी की कथा के अनुसार, उनके भाई उनका विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे।
लेकिन देवी रुक्मिणी श्री कृष्ण की भक्त थीं और उन्हें अपना सब कुछ मान चुकी थीं। जब शिशुपाल से उनका विवाह होने वाला था, तो देवी रुक्मिणी ने मंदिर में पूजा की और श्री कृष्ण को अपने रथ में बिठाकर द्वारका की ओर प्रस्थान कर गए और उनके साथ विवाह किया। इस प्रकार रुक्मिणी अष्टमी देवी रुक्मिणी के जन्म और विवाह की कथा को याद करने का दिन है। इस दिन देवी रुक्मिणी की पूजा की जाती है और उनके आशीर्वाद की कामना की जाती है।
रुक्मिणी अष्टमी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार का महत्व इस प्रकार है: