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नरसिंह द्वादशी क्यों मनाई जाती है

Narasimha Dwadashi katha: होलिका दहन से पहले क्यों मनाई जाती है नरसिंह द्वादशी, भगवान विष्णु ने रौद्र रूप में लिया था अवतार



फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन नरसिंह द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन विष्णु जी के अवतार भगवान नरसिंह की पूजा की परंपरा है। भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार उनके 12 स्वरूपों में से एक है। यह ऐसा अवतार था जिसमें श्रीहरि विष्णु के शरीर का आधा हिस्सा मानव का और आधा हिस्सा शेर का था। ऐसा कहा जाता है कि जितना ही उनका स्वरूप रौद्र है, वे हृदय से उतने ही दयालु हैं। बता दें कि नरसिंह द्वादशी होली से 3 दिन पहले मनाई जाती है।


नरसिंह द्वादशी कब है?



शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन ही भगवान विष्णु 'नरसिंह स्वरूप' में अवतरित हुए थे। यानि हर वर्ष होली से लगभग 3-4 दिन पहले द्वादशी तिथि पर 'नरसिंह द्वादशी' मनाई जाती है। इस साल यह पर्व 10 मार्च 2025, फाल्गुन, शुक्ल द्वादशी को पड़ रहा है।


नरसिंह द्वादशी का धार्मिक महत्व



नरसिंह द्वादशी के दिन यह व्रत करने से परिवार के सभी संकट दूर होते हैं और खुशियां और बरकत आती है। ऐसी मान्यता है कि हिरण्यकश्यप के वध के बाद नरसिंह भगवान ने प्रहलाद को भी वरदान दिया था कि जो भी भक्त इस दिन उनका श्रद्धा और भक्ति के साथ स्मरण करेगा, उनका पूजन या व्रत करेगा, उसके जीवन के शोक, दुख, भय और रोग दूर होंगे। साथ ही उसकी हर मनोकामना पूरी होगी।


नरसिंह द्वादशी व्रत कथा



प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे एक वरदान मांगा कि उसे न कोई मनुष्य मार सके, न ही पशु, न ही वो दिन में मारा जाए और न ही रात में, न ही अस्त्र के प्रहार से और न ही शस्त्र से, न ही घर के अंदर मारा जा सके और न ही घर के बाहर। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वो स्वयं को अमर समझने लगा। मासूम लोगों को प्रताड़ित करने लगा और खुद को भगवान समझने लगा। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर रोक लगा दी, लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था। उसके कई बार रोकने पर भी प्रहलाद ने भगवान की पूजा करना नहीं छोड़ी।

इससे नाराज हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को बहुत प्रताड़ित किया। कई बार उसे मारने का प्रयास किया, लेकिन हर बार प्रहलाद बच गया। उसने अपनी बहन होलिका के साथ प्रहलाद को आग में भी बैठाया क्योंकि होलिका को आग से न जलने का वरदान प्राप्त था, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया और होलिका मर गई।


भगवान विष्णु ने रौद्र रूप में लिया था अवतार



अंतिम प्रयास में हिरण्यकश्यप ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर प्रहलाद को उसे गले लगाने को कहा। तभी उस खंभे को चीरते हुए नरसिंह भगवान का उग्र रूप प्रकट हुआ। उन्होंने हिरण्यकश्यप को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो न घर के बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, नरसिंह रूप जो न मनुष्य था, न पशु, भगवान नरसिंह ने अपने तेज नाखूनों, जो न शस्त्र थे, न अस्त्र, से उसका वध किया और प्रहलाद को जीवनदान दिया।

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