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द्वापर युग की बात हैं भगवान कृष्ण के अवतार के समय भगवान ने गोवर्धन पर्वत का उद्धार और इंद्र के अभिमान का नाश भी किया था। एक समय की बात हैं ब्रज में इंद्र यज्ञ का आयोजन हो रहा था। भगवान श्री कृष्ण ने ऐसा होते देख नन्द बाबा से पूछा कि “यह आप किसकी पूजा कर रहे हैं और क्यों?” तब नन्द बाबा ने बताया की “हम भगवान इंद्र की पूजा कर रहे हैं। ताकि इंद्र हमारे लिए अच्छी वर्षा करें और हमें अन्न और धन से परिपूर्ण करें।”
नन्द बाबा की यह बात सुन कर भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा से कहा कि “वर्षा करना तो इंद्र का कर्तव्य हैं। और इंद्र भी भगवान श्री हरी विष्णु की आज्ञा के बिना कुछ नहीं करते इसलिए हमें इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि, यह गोवर्धन पर्वत ही हमारे लिए सब कुछ करता है। हमारी गौऐं इसी पर उगी हुई घास खाती हैं। हमारे घरों में आनेवाले फल अदि सभी वस्तु भी गोवर्धन से ही आते हैं। अतः हमें गोवर्धन पर्वत की ही पूजा करनी चाहिए।”
तब नन्द बाबा के साथ सभी ब्रज मंडल के लोगो ने भी कृष्ण की बात को सही माना और गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे जब इंद्र को इस बात का पता लगा तब इंद्र ने क्रोधित हो कर सामन्तक नामक मेघो को जो की प्रलय काल में वर्षा करते हैं उन्हें इंद्र की आज्ञा से ब्रजमंडल में भयानक वर्षा की झड़ी लगा दी। जिससे पुरे ब्रज में हाहाकार मच गया और सभी लोग कृष्ण के पास गए और कहा कि हमने तुम्हारे कहने पर ही इंद्र के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा की और अब इंद्र का कोप हम पर बरस रहा है।
तब श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को आपने बांए हाथ की छोटी ऊँगली पर उठा लिया और 7 दिन और 7 रात्रि तक गोवर्धन को उठाये रखा।
तब जाकर इंद्र का मान भांग हुआ और इंद्र ने भगवान की शरण में आकर उनसे क्षमा मांगी। तब भगवान ने इंद्र को क्षमा कर दिया और पुरे गोकुल को भगवान की आज्ञा से पहले जैसे अवस्था में कर दिया। वह दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का था। तभी से उस दिन को गोवर्धन पूजन के रूप में विश्व में मनाया जाने लगा।