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परशुराम जयंती हर साल भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम की जयंती के रूप में अक्षय तृतीया की शुभ तिथि पर मनाई जाती है। इस साल यह पर्व 29 अप्रैल को पड़ रहा है। भगवान परशुराम को एक तेजस्वी योद्धा के रूप में जाना जाता है, उन्होंने अधर्म, अन्याय और अत्याचार के खिलाफ अनेक युद्ध लड़े थे। परशुराम जयंती के अवसर पर उनकी पांच प्रसिद्ध कथाओं और उनसे जुड़ी रोचक घटनाओं को जानना एक शुभ और धार्मिक अनुभव है, इसलिए आपको ये कहानियां निश्चित रूप से जाननी चाहिए।
भगवान परशुराम का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था। उनके जन्म का उद्देश्य धर्म की पुनः स्थापना था। साथ ही, ऐसा कहा जाता है कि वे भगवान विष्णु के उन अवतारों में से एक हैं जो चिरंजीवी माने जाते हैं और आज भी जीवित हैं।
धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, युवा अवस्था में भगवान परशुराम ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें परशु यानि ‘कुल्हाड़ी’ भेंट में दी थी, जो एक दिव्य अस्त्र था। तभी से उनका नाम परशुराम पड़ा अर्थात ‘परशु धारण करने वाले राम’।
एक बार परशुराम भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत पहुंचे। उस समय भगवान गणेश द्वारपाल के रूप में उपस्थित थे और उन्होंने भगवान परशुराम को रोक दिया। इस पर क्रोधित होकर उन्होंने अपने परशु से गणेश जी पर प्रहार कर दिया, जिससे उनका एक दांत टूट गया। इस घटना के बाद से ही गणेश जी को 'एकदंत' कहा जाने लगा। यह प्रसंग गणेश जी के सहनशील स्वभाव और भगवान परशुराम के तेजस्वी चरित्र को दर्शाता है।
भगवान परशुराम चिरंजीवी हैं इसलिए उनकी द्वापर तथा त्रेता युग दोनों में कहानियां मिलती हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, रामायण में भगवान परशुराम उस समय प्रकट होते हैं जब भगवान राम ने शिव धनुष तोड़ा था। परशुराम इसे चुनौती मानकर भगवान राम से युद्ध करने आते हैं, लेकिन भगवान राम की शांति, संयम और बल को देखकर उन्हें पहचान जाते हैं और उनका सम्मान करते हैं। साथ ही, महाभारत में वे भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धाओं के गुरु थे।
एक कथा के अनुसार, भगवान परशुराम ने भगवान कृष्ण को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। यह चक्र विष्णु का शक्तिशाली अस्त्र माना जाता है, जो अधर्म का अंत करता है। अपने समय के बाद भगवान कृष्ण ने यह चक्र उन्हें लौटा दिया, जिससे वह हर युग में धर्म की रक्षा कर सकें।