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संकष्टी चतुर्थी को हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ तिथि मानी जाती है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि के दाता भी कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी पर भक्त गणेश जी का व्रत रखते हैं और विधिवत रूप से पूजा कर फिर प्रार्थना करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
गणेश पुराण के अनुसार, एक साहूकार और उसकी पत्नी को लंबे समय तक संतान नहीं हो रहा था, तो उन्होंने संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा और भगवान गणेश की पूजा की। फिर उनकी श्रद्धा और आस्था से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें पुत्र का वरदान दिया। इससे दोनों पति-पत्नी बहुत खुश हुए और भगवान गणेश को बहुत धन्यवाद दिया। यह कथा हमें दर्शाती है कि बप्पा अपने भक्तों की प्रार्थनाएं अवश्य सुनते हैं।
स्कंद पुराण के गणेश खंड के अनुसार, एक बार सभी देवता एक भीषण संकट में फंस गए थे, जिसके बाद उन्होंने भगवान शिव से सहायता मांगी। फिर शिवजी ने गणेश जी को संकट से उबारने के लिए भेजा और गणेश जी ने अपनी बुद्धि तथा रणनीति से देवताओं की रक्षा की और उन्हें मुसीबत से बाहर निकाला। इस कहानी से यह सिद्ध होता है कि भगवान गणेश संकटमोचन भी हैं।
गणेश पुराण के अनुसार, एक बार भगवान शिव और मां पार्वती चौपड़ खेल रहे थे और निर्णय देने के लिए उन्होंने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें प्राण डाला, जो एक बाल बन गया। फिर उस बालक ने भूलवश माता पार्वती को हार मान लिया, जिससे मां पार्वती क्रोधित हो गईं और उस बालक को श्राप दे दिया। तब उस बालक ने संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया और भगवान गणेश की कृपा से उसे श्राप से मुक्ति मिल गई। यह कहानी हमें सिखाती है कि भगवान गणेश सभी को क्षमा कर पापों से मुक्ति करते हैं।