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जगन्नाथ मंदिर, रांची, झारखंड (Jagannath Temple, Ranchi, Jharkhand)


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दर्शन समय

7 AM - 1 PM | 4 PM - 9 PM

पुरी के मंदिर से मिलता है रांची के जगन्नाथ मंदिर का स्वरूप, मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं पहरेदारी 


रांची की हरी भरी पहाड़ी पर बना जगन्नाथ मंदिर सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। लोग दूर-दूर से यहां पर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आते हैं। खासकर यहां का रथ मेला आकर्षण का केंद्र है। पुरी की तरह भगवान जगन्नाथ का रथ यहां भी खींचा जाता है। 15 दिनों तक मेला लगता है, जहां झारखंड की संस्कृति और परंपरा देखने को मिलती है। इस मंदिर की आकृति भी ओडिशा के पुरी स्थित मंदिर की तरह ही है।



नागवंशियों ने मंदिर की स्थापना की थी 


रांची के जगन्नाथ मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। 17वीं शताब्दी में नागवंशी राजा ने इस मंदिर निर्माण कराया था। भगवान जगन्नाथ को विष्णु का अवतार माना गया है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्रा और भैया बलराम के साथ विराजमान है। जगन्नाथपुर मंदिर के संस्थापक के उत्तराधिकारी लाल प्रवीर नाथ शाहदेव के अनुसार, 1961 में बड़का गढ़ में नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने रांची में धुर्वा के पास भगवान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था। जगन्नाथ मंदिर में कई प्रकार के नवीनीकरण और विस्तार हुए हैं, जिसकी वजह से ये अब और भव्य हो गया है। मंदिर का निर्माण एक छोटी पहाड़ी पर किया गया है। जिसकी ऊंचाई लगभग 85-90 मीटर है।



जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की कहानी


इस मंदिर के निर्माण की कहानी बहुत रोचक है। इस मंदिर का निर्माण 1691 में हुआ था। तब बड़का गढ़ नाम के एक क्षेत्र में नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव का शासन हुआ करता था। एक दिन राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने ओडिशा के पुरी शहर जाने का मन बनाया। वह एक नौकर और कर्मचारियों के साथ पुरी चल पड़े। पुरी पहुंचकर उन्होंने भगवान जगन्नाथ की कहानी सुनी। नौकर भगवान जगन्नाथ का भक्त हो गया। 


सोते-जागते उसकी जुबान पर महाप्रभु का नाम रहता था। कहते है कि एक रात जब राजा समेत सभी कर्मचारी सो रहे थे, तब राजा ठाकुर के नौकर को भूख लगी। भूख से व्याकुल नौकर को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। ऐसे में उसने भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना की भगवान आप ही मेरी भूख मिटाइए। कहते हैं कि महाप्रभु जगन्नाथ भेष बदलकर नौकर के पास आए। अपनी भोग थाली में भोजन लाकर उसे दिया। इस तरह से नौकर की भूख मिटी और उसका मन शांत हुआ।


सुबह उठकर नौकर ने यह कहानी राजा को सुनाई। राजा को नौकर की बात सुनकर बड़ी हैरानी हुई। फिर रात में भगवान जगन्नाथ राजा एनी नाथ के सपने में आए। भगवान ने राजा के कहा कि, हे राजन यहां से लौटने के बाद तुम अपने राज्य में भी मेरे विग्रह की स्थापना कर पूजा-अर्चना करो। इसके बाद राजा ने संकल्प लिया कि ओडिशा से लौटते ही वह अपने राज्य में भगवान जगन्नाथ के मंदिर की स्थापना करेंगे।



मंदिर की वास्तुकला में उड़िया और राजस्थानी शैली का मिश्रण


मंदिर की वास्तुकला पारंपरिक उड़िया और राजस्थानी शैलियों का सहज मिश्रण है, जो संस्कृतियों के सामंजस्यपूर्ण मिश्रण को दर्शाता है। भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियों वाला गर्भगृह दिव्य पवित्रता की आभा बिखेरता है, जो भक्तों को प्रार्थना और चिंतन में डूबने के लिए आमंत्रित करता है।



15 दिन का वार्षिक रथयात्रा उत्सव 



पूरे साल जगन्नाथ मंदिर धार्मिक उत्सवों और अनुष्ठानों के उत्साह से गूंजता रहता है। वार्षिक रथ यात्रा, जो पुरी की तरह ही होती है। जन्माष्टमी, दीवाली और कार्तिक पूर्णिमा जैसे त्योहारों के दौरान भक्त आशीर्वाद और आध्यात्मिक शांति पाने के लिए मंदिर में आते हैं।



हिंदू-मुस्लिम सब करते हैं मंदिर की सेवा 



इस मंदिर और यहां कि रथयात्रा का सबसे अनूठा पक्ष है इसकी व्यवस्था और आयोजन में सभी धर्म के लोगों की भागीदारी। राजपरिवार के वंशजों में एक लाल प्रवीर नाथ शाहदेव बताते है कि मंदिर की स्थापना के साथ ही हर वर्ग के लोगों को इसकी व्यवस्था से जोड़ा गया। सामाजिक समरसता और सर्वधर्म समभाव की एक ऐसी परंपरा शुरू की गई, जिसमें हर वर्ग के लोगों को बसाया गया था। उरांव परिवार को मंदिर की घंटी देने की जिम्मेदारी मिली, तो तेल व भोग की सामग्री का इंतजाम भी उन्हें ही करने को कहा गया। बंधन उरांव और विमल उरांव आज भी इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं। 


मंदिर पर झंडा फहराने, पगड़ी देने और वार्षिक पूजा की व्यवस्था करने के लिए मुंडा परिवार को कहा गया।रजवार और अहीर जाति को लोगों को भगवान जगन्नाथ को मुख्य मंदिर से गर्भगृह तक ले जाने की जिम्मेदारी दी गई। बढ़ई परिवार को रंग-रोगन की जिम्मेदारी सौंपी गई। लोहरा परिवार को रथ की मरम्मत और कुम्हार परिवार को मिट्टी के बर्तन उपलब्ध कराने के लिए कहा गया। मंदिर की पहरेदारी की बड़ी जिम्मेदारी मुस्लिम समुदाय को सौंपी गई थी। सैकड़ों वर्षों तक उन्होंने इस परंपरा का निर्वाह किया लेकिन पिछले कुछ सालों से मंदिर की सुरक्षा का इंतजाम ट्रस्ट के जिम्मे है।


जगन्नाथ मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - बिरसा मुंडा एयरपोर्ट रांची में स्थित है और शहर के केंद्र से लगभग 7-8 किमी दूर है। एयरपोर्ट से आप टैक्सी या ऑटो-रिक्शा के द्वारा सीधे जगन्नाथ मंदिर तक पहुंच सकते हैं। 


रेल मार्ग - रांची रेलवे स्टेशन एक प्रमुख स्टेशन है और देश के विभिन्न हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से आप टैक्सी या ऑटो रिक्शा से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।


सड़क मार्ग - यदि आप सड़क मार्ग से यात्रा कर रहे है तो, रांची शहर के प्रमुख मार्गों पर अच्छी सड़कें हैं। 


मंदिर का समय -  सुबह 7 बजे से लेकर 1 बजे तक, शाम को 4 बजे से 9 बजे तक। 


डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।