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नया घर, दुकान, बिजनेस या फिर शादी-ब्याह जैसे तमाम मौकों पर हवन और यज्ञ जरूर किया जाता है। हमारे देश में हवन की परंपरा बहुत पुरानी है। हवन के दौरान अगर आपने कभी ध्यान दिया हो तो देखा होगा कि मंत्र के बाद स्वाहा शब्द जरूर बोला जाता है। इसके बाद ही आहुति दी जाती है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि आखिर प्रत्येक आहुति पर “स्वाहा” शब्द क्यों बोला जाता है और इसे बोलना क्यों जरूरी माना जाता है? तो आइए इस आलेख में इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
ऐसा माना जाता है कि हवन करने से जहां एक तरफ घर की शुद्धि होती है वहीं मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। यह अनुष्ठान आमतौर पर किसी पंडित के द्वारा या घर के सदस्यों के द्वारा संपन्न होता है। अक्सर आपने देखा होगा कि हवन के समय लोग अग्नि प्रज्वलित करके इसमें आहुति देते हैं।हिंदू धर्म में हवन का विशेष महत्व बताया गया है। यूं कहा जाए कि कई ऐसे अनुष्ठान हैं जिनमें हवन के बिना पूजा अधूरी ही मानी जाती है। नवरात्रि के व्रत हों या सत्यनारायण की कथा, बिना हवन के पूजा का संपूर्ण फल नहीं मिलता है।
अगर हम स्वाहा शब्द की बात करें तो इसका मतलब है सही रीति से पहुंचाना या अच्छी तरह से कहा गया। वास्तव में स्वाहा अग्नि देव की पत्नी हैं। इसलिए, हवन करते वक्त प्रत्येक मंत्र के समापन पर उनके नाम का उच्चारण करने से अग्नि देव प्रसन्न होते हैं और इससे आहुति को संपूर्ण माना जाता है।
स्वाहा कहते हुए मंत्र पाठ करने से और हवन सामग्री अर्पित करने से यह ईश्वर को समर्पित भी मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जाता है जब तक हवन सामग्री अग्नि देवता को स्वीकार्य ना हो जाए और यह बिना स्वाहा बोले हुए पूर्ण नहीं मानी जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। इनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया। ऐसा माना जाता है कि अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हवन ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से पूर्ण आह्वान जिन देवता के लिए पूजन होता है उन्हें प्राप्त होता है।
इसके अलावा दूसरी कथा के अनुसार, प्रकृति की एक कला के रूप में स्वाहा का जन्म हुआ था। भगवान कृष्ण ने स्वाहा को वरदान दिया था कि उनके नाम से ही देवता हविष्य (आहूति देने की सामग्री) ग्रहण करेंगे। यही कारण है कि हवन के दौरान स्वाहा जरूर बोला जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार देवताओं के पास अकाल पड़ गया, उनके पास खाने-पीने की चीजों की कमी पड़ने लगी। ऐसे में ब्रह्मा जी ने उपाय निकाला कि धरती पर ब्राह्मणों द्वारा खाद्य-सामग्री देवताओं तक पहुंचाई जाए। इसके लिए अग्निदेव को चुना गया, क्योंकि अग्नि में जाने के बाद कोई भी चीज पवित्र हो जाती है। लेकिन, अग्निदेव पास उस समय भस्म करने की क्षमता नहीं हुआ करती थी, इसीलिए, स्वाहा की उत्पत्ति हुई। इसके बाद जब भी कोई चीज अग्निदेव को समर्पित की जाती थी तो स्वाहा उसे भस्म कर देवताओं तक पहुंचा देती थीं। तब से स्वाहा हमेशा अग्निदेव के साथ रहती हैं। जब भी कोई धार्मिक कार्य होता है तो स्वाहा बोलने से अर्पित की गई चीज को स्वाहा देवताओं तक पहुंचाती हैं।
ऋग्वेद के मुताबिक हवन का संबंध अग्नि देव से है और स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थीं। जिनका विवाह अग्निदेव से हुआ था। ऐसा माना जाता है कि उनका विवाह देवताओं के आग्रह के कारण हुआ था। चूंकि स्वाहा को कृष्ण जी से वरदान प्राप्त था इसलिए हवन के समय उनका नाम लेना अत्यंत शुभ माना जाता है। हवन के दौरान स्वाहा बोलते हुए अग्नि में हवन सामग्री और समिधा डाली जाती है ताकि वो देवताओं तक पहुंच सके। ज्योतिष की मानें तो कोई भी यज्ञ और हवन तब तक पूरा नहीं होता है जब तक स्वाहा शब्द का इस्तेमाल ना किया जाए।
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