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श्रावण में महादेव को बेर चढ़ाने से होता है धनलाभ! (Shraavan mein Mahaadev ko Ber Chadhaane se hota hai Dhanalaabh!)

Jul 17 2024

जटाधारी भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है, उनमें से शिव का एक नाम भोलेनाथ भी है। देवताओं और अपने भक्तों के बीच भगवान शिव का ये नाम इसलिए प्रचलित है क्योंकि शिव एक दम सरल स्वाभव वाले देवता हैं। वे अपने भक्तों द्वारा चढ़ाई गई किसी भी चीज से प्रसन्न हो जाते हैं, फिर चाहे भला भक्त ने भांग ही क्यों अर्पित की हो। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त भी उन्हें कई तरह के पदार्थ अर्पित करते रहते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिव को कुछ पदार्थ और फल इतने प्रिय हैं कि उन्हें चढ़ाने से भगवान बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाओं को तुरंत पूरा कर देते हैं, तो आईए जानते हैं शिव के प्रिय फलों के बारे में विस्तार से………

 

बेर : शिवजी के सबसे प्रिय फलों में जो पहले स्थान पर आता है वो फल बेर है। माना जाता है कि बेर के पेड़ में लक्ष्मी का वास होता है और शिव को बेर अर्पित करने से भगवान शिव के साथ माता लक्ष्मी भी प्रसन्न हो जाती हैं। पुराणों के अनुसार बेर के पेड़ को स्वयं शिवलिंग का रूप भी माना गया है। एक मान्यता ऐसी भी है कि यदि कोई शादी शादीशुदा जीवन से परेशान है या उसे आर्थिक समस्याएं घेरे हुए हैं तो शिवलिंग पर बेर अर्पित करने से उसे अपने कष्टों से निजात मिल जातै है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि वह कौन सा फल है जो आपके सबसे ज्यादा प्रिय है, तो शिव ने कहा कि वे सब से ज्यादा प्रिय फल बेर को मानते हैं और ऐसा इसलिए क्योंकि बेर की पत्तियों से वाणी बड़ी में मिठास आती है। इसके अलावा जगह ये भी बताया गया है कि बेर के पेड़ में स्वयं शिव निवास करते हैं इसलिए ही बेर पर धागा बांधने की भी परंपरा है।

 

धतूरा: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने दुनिया को विनाश से बचाने के लिए समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया था। ऐसा कहा जाता है कि जिस समय भगवान शिव ने विष पिया था तब ही उनकी छाती से धतूरा निकला था। इसलिए शिव को धतूरा अत्याधिक प्रिय है। माना जाता है कि महादेव को धतूरे का फल चढ़ाने से समस्त नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। इसी वजह से भगवान शिव की पूजा में धतूरे का प्रयोग किया जाता है।

 

रुद्राक्ष: रुद्राक्ष शब्द दो शब्दों के मेल से बना है, जिसमें पहला शब्द है रुद्र है जो संस्कृत के रुदन शब्द से बना है और इसका अर्थ होता है रोना, जबकि इसमें दूसरा शब्द अक्ष है जिसे हिंदी में आंसू कहते हैं। रुद्राक्ष कि उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने अपने मन को वश मे कर दुनिया के कल्याण के लिए सैकड़ों सालों तक तप किया और एक दिन अचानक ही उनका मन दुःखी हो गया। दुःखी होने के बाद  जब उन्होंने अपनी आँखे खोलीं तो उनमें से उनकी आंसुओं की बूँदें गिर गयीं, इन्हीं आंसूं कि बूंदों से रुद्राक्ष नामक वृक्ष उत्पन्न हुआ जिसके फल को भगवन शिव के आँसुओं की बूंद माना जाता है। भगवान शिव का एक नाम रूद्र भी है जिसका उल्लेख ऋग्वेद में है। ऋग्वेद में कहा गया है "रुक् द्रव्यति इति रुद्र" यानी रुद्र दुःख के आँसुओं को आनंद के आँसुओं में बदल देता है, जिसे रुद्राक्ष द्वारा दर्शाया जाता है। रुद्राक्ष के 14 प्रकार के होते है जिसके अलग महत्व है।

 

मदार: मदार का पुष्प भगवान शिव के साथ साथ उनके पुत्र गणेश जी को काफी प्रिय है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव की पूजा में मदार का पुष्प उपयोग करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा वास्तु की दृष्टि से भी मदार का पौधा सुख-समृद्धि का कारक होता है। दुनिया के सबसे धार्मिक ग्रंथ महाभारत के आदि पर्व में भी मदार पुष्प की विशेष चर्चा की गई है। महाभारत के अनुसार ऋषि अयोद-दौम्य के शिष्य उपमन्यु ने मदार पुष्प खा लिया था जिसके चलते उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी।

 

बेल: भगवान शिव को बेल का फल इसलिए चढ़ाया जाता है क्योंकि बेल के पेड़ का इतिहास माता पार्वती से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि बेल के पेड़

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