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श्रावण में करें भगवान शिव के इन दुर्लभ मंदिरों के दर्शन, जीवन में होगा चमत्कार (Shraavan mein karen Bhagavaan Shiv ke in Durlabh Mandiron ke Darshan, Jeevan mein hoga Chamatkaar)

Jul 17 2024

1. बिजली महादेव मंदिर (हिमांचल प्रदेश)

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में भगवान शिव का एक चमत्कारी और रहस्यमयी मंदिर है, जिसका नाम  बिजली महादेव है। इस मंदिर पर हर 12 साल में एक बार आकाशीय बिजली गिरती है, बिजली गिरने से मंदिर को कोई नुकसान नहीं होता बस वहां स्थापित शिवलिंग दो टुकड़ों में टूट जाता है और उसके पास की दीवारों में भी बिजली गिरने के निशान दिखाई देते हैं। हर 12 साल में बिजली गिरने की वजह से ही इस मंदिर को बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है। शिवलिंग के टुकड़े हो जाने के बाद यहां पुजारी सभी टुकड़ों को इकट्ठा करके नाज, दाल के आटे और मक्खन से शिवलिंग को दोबारा जोड़ते हैं जो विनाश और पुनर्स्थापना के शाश्वत चक्र और दिव्य ऊर्जा की निरंतर उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।

महादेव के इस मंदिर के पीछे की कहानी है कि एक अजगर जैसे दिखने वाले कुलांत नाम के एक दैत्य ने कुल्लू के निवासियों को खत्म करने के लिए व्यास नदी में कुंटा गाड़कर बैठ गया था। उसने कुल्लू की तरफ जाने वाले पानी को रोक दिया था। इसकी खबर जब भगवान शिव को लगी तो उन्होंने अपने त्रिशूल से दैत्य का वध तो कर दिया लेकिन दैत्य के शरीर पहाड़ की चोटियों में बदल गया जिससे स्थानीय लोग डर गए। इस दुविधा से छुटकारा पाने के लिए महादेव, कुलांत के माथे पर यानि पहाड़ की छोटी पर ही बस गए और बारिश के देव इंद्र को ये आदेश दिया कि कुल्लू वासियों पर आने वाले सभी संकटों को बिजली के रूप में शिव के ऊपर ही गिरा दें।

2. स्तंभेश्वर महादेव मंदिर (गुजरात)  

गुजरात की राजधानी गांधीनगर से करीब 193 किलोमीटर की दूर पर कवी कंबोई नाम की जगह है। यहां अरब सागर की खंभात की खाड़ी पर स्तंभेश्वर महादेव मंदिर नाम का प्राचीन शिव मंदिर है। ये मंदिर दिन में दो बार समुद्र की लहरों में पूरी तरह से डूब जाता है। स्थानिय नागरिकों के अनुसार दिन में दो बार सुबह और शाम समुद्र में ज्वार भाटा आने की वजह से समुद्र की लहरें मंदिर को पूरी तरह से ढ़क लेती हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को दर्शन से पहले पर्चे बांटे जाते हैं जिसमें समुद्र में ज्वार-भाटा आने का समय लिखा होता है, इस पर्चों की मदद से श्रद्धालु मंदिर के दर्शन करने और ज्वार भाटा के समय का ध्यान रखते हैं।

जानकारी के मुताबिक इस मंदिर की खोज आज से लगभग 150 साल पहले हुई थी। शिव महा पुराण के रुद्र संहिता भाग-2, अध्याय 11 और पेज नं. 358 में भी इस मंदिर का वर्णन मिलात है। शिव पुराण के अनुसार यहां ताड़कासुर नाम के असुर ने भगवान शिव को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर लिया था। ताड़कासुर ने भोले बाबा से वरदान मांगा कि उसे 6 दिन की आयु वाले शिव पुत्र के अलावा और कोई नहीं मार सकता। भोले बाबा से वरदान मिलने के बाद, ताड़कासुर ने हर तरफ त्राहि मचा दी और नरसंहार करना शुरू कर दिया जिसे देख समस्त देवताओं और ऋषि मुनियों ने भोले बाबा से प्रार्थना कि की इस असुर से उनकी रक्षा करें। तब शिव के आशीर्वाद से श्वेत पर्वत कुंड से 6 दिन के कार्तिकेय ने जन्म लिया। ताड़कासुर का वध करने के बाद जब कार्तिकेय को ये पता चला कि उसने एक शिव भक्त का वध किया है तो उन्हें बहुत दुःख हुआ। जिसके बाद भगवान श्री विष्णु ने इसका प्रायश्चित करने के लिए उन्हें उसी जगह पर शिवलिंग की स्थापना करने के लिया कहा जहाँ उन्होंने ताड़कासुर को मारा था। इसके बाद कार्तिकेय ने यहां एक शिवलिंग की स्थापना की जिसका नाम भगवान श्री विष्णु ने स्तंभेश्वर रखा। तभी से ये मंदिर यहां स्थापित है।

3. अचलेश्वर महादेव मंदिर (राजस्थान)

राजस्थान के सिरोही जिले में अंचलगढ़ की पहाड़ियों के बीच माउंट आबू के जंगलो में भगवान शिव का ऐसा रहस्यमयी मंदिर है जहाँ भगवान शिव के अंगूठे की पूजा की जाती है। यहां अंगूठेनुमा एक गोल भूरे पत्थर को पूजा जाता है, जो गर्भगृह के एक कुंड से निकला है। स्थानियों के अनुसार, गर्भगृह की जिस गोल खाई से ये पत्थर निकला है उसका कोई अंत नहीं है। इस मंदिर का उल्लेख स्कन्द पुराण के अर्बुद खंड में मिलता है। कथा के अनुसार माउंटआबू के अचलगढ़ में एक गहरी और विशाल ब्रह्म खाई हुआ करती थी, जिसमें एक बार ऋषि वसिष्ठ की गाय गिर गई, इसके बाद देवताओं के आग्रह पर खाई के पाटने के लिए अर्बुद नाग ने पर्वत को अपनी पीठ पर उठा लिया और गाय को बाहर निकाला गया। पर्वत को उठाने के बाद अर्बुद नाग का इस बात का घमंड हो गया जिसे तोड़ने के लिए काशी विश्वनाथ ने अपने अंगूठे पर अर्बुदांचल पर्वत को उठाकर स्थिर कर लिया। जिसके बाद से यहां अचलेश्वर महादेव के रूप में शिव के अंगूठे की पूजा अर्चना की जाती है।


4. गुप्तेश्वर धाम (मध्यप्रदेश)

मध्यप्रदेश की संस्कारधानी यानि जबलपुर में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है जिसके शिवलिंग की स्थापना खुद श्री राम ने की थी। इस शिवलिंग को तमिलनाडु के रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का उपलिंग भी माना जाता है। एक क्षेत्रिय कथा है कि जब भगवान राम वनवास काल के दौरान उत्तर से दक्षिण की ओर जा रहे थे, तब उन्होंने जबलपुर में एक गुफा के अंदर गुप्त स्थान पर बालू के शिवलिंग का निर्माण किया और उसकी पूजा की थी। मंदिर के पुजारी के अनुसार, भगवान राम वनवास के दौरान जब भी चित्रकूट आए तो यहां उनसे मिलने के लिए आसपास के सभी साधु संत पहुंचते थे, जिसमें जाबालि ऋषि भी शामिल थे। जाबालि ऋषि ने रघुनन्दन को  जबलपुर आने का आमंत्रण दिया था। फिर श्री राम जबलपुर आए और उन्होंने गुप्तेश्वर की उसी पहाड़ी जहां जाबालि ऋषि तपस्या किया करते थे, वह की गुफा में रेत से शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की आराधना की थी। इस बात का प्रमाण वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है जहां प्रभु श्री राम रामेश्वरम के शिवलिंग को बनाते हुए बताते है कि उन्होंने ऐसे ही एक शिवलिंग माँ नर्मदा के किनारे भी बनाया है।

5. दक्षेश्वर महादेव मंदिर (उत्तराखंड)

देवभूमि उत्तराखंड की मायापुरी यानि हरद्वार की कनखल नगरी में स्थित एक रहस्यमयी, प्राचीन और स्वयंभू शिवलिंग जो दक्षेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्द है। यहाँ का शिवलिंग, पाताल मुखी शिवलिंग है। स्थानीय लोगों और मंदिर के पुजारी के अनुसार इस मंदिर का नाम भगवान शिव की पत्नी माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति के नाम पर रखा गया है। आपको माता सती के  शक्तिपीठ की कहानी तो पता होगी कि कैसे दक्ष द्वारा एक महायज्ञ के दौरान माता सती के सामने भगवान शिव का अपमान किये जाने के बाद माता उन्होंने अग्निस्नान कर लिया और इसके बाद भगवान शिव ने क्रोध में आकर वीरभद्र को दक्ष सर काटने के लिए भेजा था। बताया जाता है कि यह पूरा प्रकरण उसी जगह पर हुआ था जहां यह मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में एक हवन कुंड भी है जहां माता सती ने अग्निस्नान किया था और जहां वीरभद्र ने दक्ष का सर काटकर फेंका था। मंदिर में भगवान विष्णु के पाँव के निशान बने है।

6. टिटिलागढ़ शिव मंदिर (ओडिशा)

उड़ीसा के टिटलागढ़ की कुम्हड़ा पहाड़ी पर एक चमत्कारी मंदिर है जहां मंदिर के बाहर और गर्भगृह के तापमान में बहुत बड़ा अंतर रहता है। कुम्हड़ा पहाड़ की पथरीली चट्टानों पर इस मंदिर की खास बात यह है कि बाहर चाहे जितनी भी गर्मी हो ये मंदिर अंदर से हमेशा ठंडा ही रहता है। जानकारी के मुताबिक यहां बाहर का तापमान 50 डिग्री सेल्सियल तक पहुंच जाता है लेकिन मंदिर के भीतर का हिस्सा 10 डिग्री सेल्सियस ही बना रहता है। पुरोहितों और पंडितों के अनुसार मंदिर के भीतर रखी शिव और पार्वती की मूर्ती से ठंडी हवा निकलती है जिस कारण से ये मंदिर का बेहद ठंडा बना रहता है। इसके अलावा पहाड़ी के नीचे गुफा में स्थित शिव मंदिर के साथ साथ यहां ऊपर एक राम मंदिर भी है।

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