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शिव का शक्ति पुंज है शिवलिंग, सिंधु घाटी में भी मिला है इसकी पूजा के प्रमाण, इससे जुड़ी इन भ्रातियों से बचें (Shiv ka Shakti Punj hai Shivaling, Sindhu Ghaatee mein Bhee mila Hai isakee Pooja ke Pramaan, isase judee in bhraatiyon se bachen)

Jul 29 2024

देवाधिदेव महादेव की पूजा दो स्वरूप में होती है। एक जो आपने देखा होगा कि वे कैलाश पर्वत पर समाधि की मुद्रा में या माता पार्वती के साथ बैठे हुए हैं और दूसरा शिवलिंग के रूप में जिसकी पूजा हम सभी करते है। भगवान के पहले स्वरूप को लेकर इतनी बातें शायद ना हो लेकिन शिवलिंग को लेकर तरह-तरह की बातें की जाती है। सनातन धर्म को न मानने वाले इसे लेकर कई तरह के अनर्गल प्रलाप भी करते रहें। शिवलिंग को लेकर कहीं तरह के कु-प्रचार भी किए जाते हैं। इसके चलते कई शिव भक्त असमंजस में है कि आखिर शिवलिंग है क्या? तो हर प्रकार के भ्रम और भ्रांति से छुटकारा पाने के लिए, साथ ही शास्त्रों के अनुसार सही जानकारी के लिए जानिए शिवलिंग के सभी रहस्य, उसकी उत्पत्ति और उसका सही अर्थ ।


पहले जानते हैं शिवलिंग का अर्थ क्या है -

शिवलिंग शब्द दो शब्दों से मिलकर मिला बना हुआ है जिसमें शिव का अर्थ आप भली बातें समझते होंगे। लिंग शब्द का मतलब होता है आकार। यहां लिंग का आशय आकार इसलिए बताया गया है यह अप्रकट और सृष्टि की उत्पत्ति के समय बनने वाली सबसे पहली संरचना है। इसी दीर्घवृताकार या इक्लिप्स को हम लिंग कहते है। शिवलिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका न कोई अन्त न ही आरंभ। ब्रह्माण्ड ऊर्जा और पदार्थ से बना है। शरीर पदार्थ से और आत्मा ऊर्जा से निर्मित है। इसके आगे समझा जाए तो शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक है और दोनों सामूहिक रूप से शिवलिंग कहलाते है। असल में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति का प्रतीक भी है। 


ब्रह्मा और विष्णु के झगड़े से उत्पन्न हुआ शिवलिंग -

शिव पुराण के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया तभी उनके सामने एक विशाल अग्नि पुंज प्रकट हुआ जिसमें से एक तीव्र प्रकाश के साथ ॐ स्वर गुंजा। इस प्रकाश पुंज का न ओर था न छोर। तभी आकाशवाणी हुई कि जो इस प्रकाश स्तम्भ के छोर का पता पहले लगाएगा वहीं श्रेष्ठ कहलाएगा। इसी बात का पता लगाने के लिए ब्रह्मा जी इस प्रकाश स्तम्भ के शिखर की ओर चल पड़े और विष्णु इस स्तम्भ की नींव की तरफ़ बढ़ गए। 


अथक प्रयासों के बाद भी इस पुंज की शुरुआत और अंत का पता दोनों देवता नहीं लगा सके। दोनों लौट कर वापस आए और जब एक दूसरे से मिले उस समय ब्रह्मा जी के हाथ में एक सफेद केतकी पुष्प था जिसे दिखाकर ब्रह्मा जी ने कहा यह मैं प्रकाश पुंज के शिखर से उठाकर लाया हूं और मैंने इस दिव्य स्तम्भ का शिखर खोज लिया है। ब्रह्मा जी का झूठ सुनते ही आदियोगी के रूप में भगवान शिव प्रकट हो गये। ब्रह्मा जी के झूठ के कारण शिव ने उन्हें पूजा से और केतकी पुष्प को भी शिव सेवा और सम्मान से वंचित रहने का श्राप दिया। लेकिन भगवान ने उसे साल में सिर्फ एक बार महाशिवरात्रि की रात में स्वीकार करने की बात भी कही।

इसके बाद शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष के प्रतीक स्वरूप इस पुंज ने स्वयं को शिव बताया और इसे ही पुराणों में प्रथम लिंग भी कहा गया है। स्कन्द पुराण में इसका प्रमाण के साथ वर्णन है। अथर्व वेद में भी लिंग का अर्थ स्तम्भ ही बताया गया है। अथर्व वेद के दसवें काण्ड के सातवें मंत्र में इसका जिक्र है और इसी को संसार का मूल भी माना गया है। 


संपूर्ण सृष्टि के साथ साथ 8 वसु, 12 रूद्र, 11 आदित्य, इंद्र और प्रजापति सभी इसी से उत्पन्न हुए हैं। अमृत, मृत्यु और समुद्र सहित संपूर्ण ब्रह्मांड इसी में निहित है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने शिव आराधना और शिवलिंग को लेकर कहा है कि निराकार की आराधना को सरल करने हेतु शिवलिंग के माध्यम से पूजा करना श्रेष्ठ है। लिंग पुराण में शिवलिंग की महत्ता को बहुत ही विस्तार से उल्लेखित किया गया है।


शिवलिंग को लेकर एक कथा यह भी है कि विक्रम संवत से कुछ सहस्राब्दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात के दौरान रुद्र का यह रूप उत्पन्न हुआ। जहां-जहां पिंड गिरे, वहां-वहां मंदिर बना दिए गए और पृथ्वी पर हजारों शिव मंदिर निर्मित हो गए। उसी समय 108 ज्योतिर्लिंग मंदिर भी बनाएं गए थे जिनमें से 12 आज भी धरती पर मौजूद हैं।


शिवलिंग को लेकर गलत जानकारी से भ्रमित न हों


शिवलिंग से जुड़े भ्रम को दूर करने को लेकर हम आपको यहां यह बता देना चाहते हैं कि शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनि से कतई नहीं होता है। ये गलतफहमी भाषा के रूपांतरण, अंग्रेजों की गलत व्याख्या और सनातन विरोधी लोगों के द्वारा प्रायोजित कुप्रचार के कारण है।

 

4000 साल से ज्यादा पुराना है शिवलिंग का इतिहास 

दुनिया भर में हजारों वर्षों से शिवलिंग की पूजा होती है। खुदाई के दौरान मिलने वाले प्राचीन शिवलिंग इसका प्रमाण है। शिवलिंग का इतिहास कितना पुराना है कहना असंभव है लेकिन हाल ही में वाराणसी के पास एक गाँव में मिले एक शिवलिंग को 4000 साल पुराना बताया गया। इसके अलावा सिंधु घाटी सभ्यता में भी भगवान शिव और शिवलिंग के प्रमाण मिले हैं। रोम में भी खुदाई के दौरान कई ऐसे शिवलिंग मिले जिन्हें हजारों साल पुराना बताया गया है। इसी तरह वियतनाम में मिला एक शिवलिंग नौवीं सदी का बताया गया। यहूदियों, मेसोपोटामिया और कजाकिस्तान के इतिहास में भी शिवलिंग की पूजा के प्रमाण मिले हैं। शिवलिंग का इतिहास बेबीलोन और मोहन-जो-दड़ो संस्कृति में भी मिलता है। खुदाई में मिले पुरातात्विक अवशेष के साक्ष्य हैं। सैंधव सभ्यता में पशुओं के संरक्षक देवता के रूप पशुपति की पूजा का वर्णन है। ऐतिहासिक प्रमाणों में स्पष्ट है कि लिंग पत्थर, लकड़ी या और भी कीमती धातुओं से भी बनाए जाते रहे हैं। प्राचीन काल से ही इन प्रतिष्ठित लिंग को धातु की परत से भी ढका जाता है और इन पर चेहरे की आकृति भी बनाई जाती है। यह लिंग की खूबसूरती बढ़ाने और भक्तों के जुड़ाव से संबंधित है। इससे लिंग क्षरण से भी सुरक्षित रहता है। इन्हें मुखलिंग कहते हैं।


शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाया जाता है 

शिवलिंग पर जल चढ़ाने का अपना महत्व है। कहते हैं कि शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन आखिर शिवलिंग पर जल चढ़ाने का कारण क्या है यह ज्यादातर लोग नहीं जानते? दरअसल, समुद्र मंथन से उत्पन्न विष का पान करने वाले भगवान शिव ने ब्रह्मांड की रक्षा की। इस दौरान कुछ जहर उनके कंठ में अटक गया इस कारण उनका नाम नीलकंठ हुआ़। इस जहर के असर से भगवान शिव के शरीर का दाह यानी तापमान बहुत अधिक बढ़ गया जिसे सभी देवताओं ने जलाभिषेक कर शीतल करने का प्रयास किया। तभी से शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत हुई जो अनवरत जारी है।


शिवलिंग दो प्रकार के होते हैं 

शिवलिंग 2 प्रकार के होते हैं। पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग जो उल्कापिंड की तरह काला और आकार में अंडाकार होता है। भारत में सभी ज्योतिर्लिंग इसी आकर के हैं। दूसरा मानव द्वारा निर्मित पारे से बना पारद शिवलिंग। पारद विज्ञान प्राचीन वैदिक विज्ञान है। इसके अलावा पुराणों में देवलिंग, असुरलिंग, अर्श लिंग, पुराण लिंग, मनुष्य लिंग और स्वयंभू लिंग नामक छः अन्य शिवलिंग का उल्लेख भी है।


देव लिंग

ऐसे शिवलिंग देवताओं या अन्य प्राणियों द्वारा स्थापित किए गए हैं।


असुर लिंग

ऐसे लिंग जिनकी पूजा असुर और दानव करते थे उन्हें असुर लिंग कहा जाता है। रावण द्वारा लंका में स्थापित शिवलिंग असुर लिंग था।


अर्श लिंग

इस लिंग की स्थापना अगस्त्य मुनि ने की थी।


पुराण लिंग 

पौराणिक काल के ऋषि मुनियों द्वारा स्थापित शिवलिंग को पुराण शिवलिंग कहा गया है।


मनुष्य लिंग 

प्राचीनकाल या मध्यकाल में ऐतिहासिक महापुरुषों, अमीरों, राजा-महाराजाओं द्वारा स्थापित किए गए लिंग को मनुष्य शिवलिंग के तौर पर जाना जाता है। इंदौर की महारानी देवी अहिल्या बाई होलकर एक परम शिवभक्त थी जिन्होंने अपने शासनकाल में देशभर में हजारों शिवलिंग स्थापित करवाएं थे जो आज भी मौजूद है।


स्वयंभू लिंग 

जो स्वयं प्रकट हुए हैं या जिनके बारे में किसी को कुछ पता नहीं है ऐसे शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग कहलाते हैं। कदावुल मंदिर में लगभग 320 किलोग्राम वजनी और 3 फुट ऊंचा स्वयंभू स्फटिक शिवलिंग अब तक का सबसे बड़ा ज्ञात स्वयंभू शिवलिंग कहा जाता है। अमरनाथ की गुफा, आंध्र प्रदेश की बोरा गुफाओं में विराजमान शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग है।


बाणलिंग 

ये नर्मदा नदी के किनारों पर पाए जाते हैं।


शिवलिंग के बारे में अद्भुत सत्य -

शिवलिंग ब्रह्मांड का प्रतीक है। संपूर्ण ब्रह्मांड का आकार शिवलिंग जैसा है। 

शिव ही आदि और अनादि है। स्कंद पुराण में तो सर्व व्याप्त अनंत आकाश को स्वयं लिंग की उपमा दी गई है।

निराकार ज्योति के प्रतीक शिवलिंग को प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ लिंग, ज्योतिर्लिंग आदि नामों से उल्लेखित किया गया है। 

ज्योतिर्लिंग शिवलिंग के 12 खंड हैं। इसे लेकर शिव पुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी ज्योतिर्लिंग के खंड है।

शिवलिंग के मुख्य 3 भाग है। पहला हिस्सा जो भूमि पर रहता है। मध्य भाग को जलाधारी कहते हैं जहां से जल का आचमन करते हैं। शीर्ष भाग, जो कि अंडाकार या मुख्य लिंग होता है जिसकी पूजा हम सभी करते हैं। यह 3 भाग ब्रह्मा (नीचे), विष्णु (मध्य) और शिव (शीर्ष) के प्रतीक हैं। 

शिवलिंग सोने, चांदी या तांबे से निर्मित होना चाहिए।

यदि शिवलिंग घर में है तो ध्यान रहे की शिवलिंग के नीचे सदैव जलधारा रहे।

शिवलिंग के पास पूरा शिव-परिवार मतलब गौरी, गणेश और कार्तिकेय की मूर्ति होना अनिवार्य है।


देश के प्रसिद्ध शिवलिंग -  

सोमनाथ (गुजरात), मल्लिकार्जुन (आंध्रप्रदेश), महाकाल (मध्यप्रदेश), ममलेश्वर (मध्यप्रदेश), बैद्यनाथ (झारखंड), भीमाशंकर (महाराष्ट्र), केदारनाथ (उत्तराखंड), विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश), त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र), नागेश्वर (गुजरात), रामेश्वरम् (तमिलनाडु), घृश्णेश्वर (महाराष्ट्र), अमरनाथ (जम्मू-कश्मीर), पशुपतिनाथ (नेपाल), कालेश्वर (तेलंगाना), श्रीकालाहस्ती (आंध्र प्रदेश), एकम्बरेश्वर (तमिलनाडु), अरुणाचल (तमिलनाडु), तिलई नटराज मंदिर (तमिलनाडु), लिंगराज (ओडिशा), मुरुदेश्वर शिव मंदिर (कर्नाटक), शोर मंदिर, महाबलीपुरम (तमिलनाडु), कैलाश मंदिर एलोरा (महाराष्ट्र), कुंभेश्वर मंदिर (तमिलनाडु), बादामी मंदिर (कर्नाटक) आदि सैकड़ों प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर हैं।


शिवलिंग प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ - 

सत्य सनातन धर्म की मान्यता अनुसार किसी भी लिंग की स्थापना से पहले उसकी प्रार्थना प्रतिष्ठा आवश्यकहै। मंत्र अनुष्ठानों और पूजन विधि के द्वारा किसी लिंग में ईश्वरत्व स्थापित करना ही प्राण प्रतिष्ठा कहलाती है। 

डिसक्लेमर

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