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कुंभ भारतीय वैदिक-पौराणिक मान्यता का महापर्व है। महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी 2025 को प्रयागराज में पौष पूर्णिमा स्नान से होने वाली है और यह 26 फरवरी तक चलेगा। महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। इससे पहले साल 2013 में प्रयागराज इलाहाबाद में महाकुंभ मेला लगा था। वहीं अब 13 जनवरी पौष पूर्णिमा से शुरू होकर यह मेला 26 फरवरी महाशिवरात्रि व्रत तक चलेगा।
कहा जा रहा है कि इस साल लगने वाला महाकुंभ पूर्ण महाकुंभ होगा जो 144 साल बाद लग रहा है। संगम स्नान करने के लिए देशभर से श्रद्धालु महाकुंभ पहुंचते हैं। कुंभ मेला हमें अपनी जड़ों, परंपराओं और धर्म की गहराई से जोड़ता है। यह आयोजन एक संदेश देता है कि धर्म और संस्कृति केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने का माध्यम भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाकुंभ में स्नान करने मात्र से व्यक्ति के समस्त पाप धुल जाते हैं।
महाकुंभ का इतिहास वर्षों पुराना है। महाकुंभ का आयोजन अमृत की खोज का परिणाम है। इसके लिए सदियों पहले सागर के मंथन का उपक्रम रचा गया था। हिंदू पौराणिक कथा में बताया गया है कि कैसे देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन किया। अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला। अमृत कलश के लिए 12 दिनों तक देवताओं ने युद्ध किया था। देवताओं के यह 12 दिन पृथ्वी पर 12 साल के बराबर होते हैं।
यही कारण है कि हर 12 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है। युद्ध के दौरान अमृत की कुछ बुंदे प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिरा। खास बात यह है कि हर जगह यह मेला किसी नदी के तट पर लगता है। हरिद्वार में गंगा के तट पर, प्रयागराज में संगम तट पर, उज्जैन में शिप्रा के तट पर, नासिक में गोदावरी के तट पर। कहा जाता है कि इस दौरान नदियां अमृत में बदल गई थीं। तब से इन स्थानों को पवित्र माना जाता है, और ऐसा माना जाता है कि कुंभ मेले के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों से छुटकारा मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
समुद्र मंथन से 14 रत्न प्राप्त हुए। जिसमें से विष के प्रभाव को शांत करने के लिए और महादेव को शीतल करने के लिए कई बार उनका जल से अभिषेक किया गया। घड़े भर-भर कर उन्हें स्नान कराया गया। ऐसा कहते हैं कि तबसे शिवजी के जलाभिषेक की परंपरा शुरू हुई। उन्हें हर शीतल औषधियां दी गईं जैसे कि भांग, जिसकी तासीर ठंडी होती है वह पिलाया गया। धतूरा, मदार आदि का लेप किया गया। दूध-दही, घी सभी पदार्थ उन पर लगाए गए। इस तरह महादेव विष के प्रभाव को रोक सके और संसार को नष्ट होने से उन्होंने बचा लिया।
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