नवीनतम लेख
हिंदू धर्म में भगवान शिव ही एक मात्र देवता है जिनकी पूजा लिंग रूप में ज्यादा की जाती है। शिव का लिंग रूप उनका साक्षात आत्म रूप माना जाता है। लिंग पुराण के अनुसार, लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य भाग में त्रिलोकीनाथ विष्ण और ऊपर महादेव स्थित है तो वहीं वेदी में महादेवी विराजित हैं। लिंग पुराण में यह भी बताया गया है कि शिवलिंग के निर्माणकर्ता भगवान श्री विश्वकर्मा है। हालांकि शिव पुराण में लिंग शब्द की व्याख्या कुछ अलग तरह से की गई है -
लिंगमर्थ हि पुरुषं शिवं गमयतीत्यदः ।
शिवशक्त्योश्च चिह्नस्य मेलनं लिंगमुच्यते ।।
अर्थात शिव शक्ति के चिन्ह का सम्मेलन ही लिंग है। लिंग में विश्वप्रसूतिकर्ता की अर्चा करनी चाहिए। यह परमार्थ शिव तत्व का बोधक होने से भी लिंग कहलाता है।
शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग 10 प्रकार के होते हैं, और अलग अलग तरह के शिवलिंग की पूजा करने से व्यक्ति को अलग अलग तरह के फल की प्राप्ति होती है।
पारद शिवलिंग
दरअसल पारद शिवलिंग का निर्माण पारे, चाँदी और जड़ी बूटियों को मिलाकर किया जाता है। इस शिवलिंग के बारे में ब्रह्मपुराण, ब्रह्मवेवर्त पुराण, शिव पुराण और उपनिषद समेत कई जगह ये जानकारी दी है कि पारद शिवलिंग की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से सभी तरह के रोग और कठिनाईंया दूर होती हैं और जीवन सुख एवं समृद्धि के साथ खुशियों से भर जाता है। पारद शिवलिंग तरल धातु से बना हुआ एक शक्तिशाली शिवलिंग है, जिसे एक विशेष प्रकार की प्रक्रिया से तैयार कर ठोस रूप दिया जाता है। इसमें पारा धातु के साथ अनेक धातु का मिश्रण मिलाया जाता है।
चीनी शिवलिंग
चीनी यानी शकर से बने शिवलिंग को चीनी शिवलिंग कहा जाता है। अगर आपके घर में किसी की तबियत खराब है तो आपको रोजाना मिश्री से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। चीनी के शिवलिंग करने से रोगी का रोग दूर होता है और इसकी पूजा करने वाले व्यक्ति को शिव निरोगी रहने का आशीर्वाद देते हैं। चीनी शिवलिंग या "चीनी लिंगम" हिंदू धार्मिक प्रथाओं में बहुत ज्यादा महत्व रखता है।
जौं और चावल के शिवलिंग :
अगर आप चाहते हैं कि आपके घर समृद्धि से भरा रहे तो आपको इसके लिए जौं और चावल से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। साथ ही यदि आप बहुत समय से निसंतान है तो भी आप जौं और चावल से बनें शिवलिंग की पूजा कर सकते हैं। जौ और चावल के शिवलिंग जिसे "यावत-चावल शिवलिंग" के रूप में जाना जाता है। भगवान शिव का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व बनाने के लिए जौ और चावल के दानों का उपयोग करना शामिल है, जो आध्यात्मिक शुद्धता, उर्वरता और प्रचुरता का प्रतीक है।
भस्म शिवलिंग :
यज्ञ की भस्म से बनी शिवलिगं की पूजन करना वास्तव में पवित्रता और परिवर्तन का प्रतीक होता है । यह शिवलिंग अधिकतर अघोरी लोग सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए बनाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि पवित्रता, भौतिक अस्तित्व की नश्वरता और विनाश तथा नवीनीकरण की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। अघोरियों के लिए, राख का उपयोग करके शिवलिंग बनाना भगवान शिव की निराकार, पारलौकिक प्रकृति में सभी रूपों के अंतिम विलय में उनके विश्वास का प्रतीक है। घर में भस्म से बने शिवलिंग की पूजा को शास्त्रो में वर्जित बताया गया है।
गुड़ का शिवलिंग :
चीनी की तरह ही गुड़ और अन्न को मिला कर भी शिवलिंग बनाए जाते हैं। माना जाता है कि, घर में अन्न की कमी न हो या खेत में खूब अन्न उपज की मनोकामना के लिए पुरुषोत्तम सावन मास में गुड़ और अन्न के बने शिवलिंग का अभिषेक व पूजन करना चाहिए। सावन में मिश्री व गुड़ से बने शिवलिंग का पूजन अति शुभ होता है। गुड़ के शिवलिंग को शुद्धता, मिठास और शुभता के साथ इसके जुड़ाव के लिए सम्मानित किया जाता है।
सोने और चांदी के शिवलिंग :
वैसे तो ऐसा कम ही देखा गया है कि कोई सोने के शिवलिंग की पूजा करता हो। मगर आपको अपने घर में वैभव चाहिए तो आपको सोने और चांदी के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। शिव साधना के लिए सोने से बना शिवलिंग मिलना भले ही मुश्किल होता हो लेकिन ऐसे शिवलिंग की पूजा भी साधक के जीवन में धन-धान्य को बढ़ाने वाली मानी गई है। वहीं, चांदी से निर्मित शिवलिंग की साधना करने पर साधक पर शिव संग चंद्र देवता की कृपा बरसती है।
मिट्टी के शिवलिंग :
अगर आप किसी ऐसे स्थान पर रहते हैं या आपकी कुंडली में किसी विषैले जानवर के काटने का दोष है तो आपको मिट्टी के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। इसे पार्थिव शिवलिंग भी कहा जाता है। मिट्टी का शिवलिंग गाय के गोबर, गुड़, मक्खन, भस्म, मिट्टी और गंगा जल मिलाकर बनाया जाता है। कलयुग में मोक्ष प्राप्ति के लिए और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए मिट्टी के शिवलिंग को उत्तम बताया गया है। शिवपुराण में पार्थिव शिवलिंग का विशेष महत्व है। मान्यता है कि भगवान शिव का पार्थिव पूजन सबसे पहले भगवान राम ने किया था जहां उन्होंने लंका पर कूच करने से पहले भगवान शिव की पार्थिव पूजा की थी।
दही से बने शिवलिंग :
दही के शिवलिंग को बनाने के लिए दही को कपड़े में बांध कर आपको रखना होगा और फिर उसके शिवलिंग बनाने होंगे जिससे मान्यता के अनुसार, भक्तों को धन की प्राप्ति होगी। दही से बने शिवलिंग को यक्षलिंग कहते हैं। माना यह जाता है कि यक्षराज कुबेर की पूजा करने के जो लाभ मिलते हैं वही दही के शिवलिंग की पूजा करने का लाभ है।
लहसुनिया शिवलिंग :
अगर आपका कोई शत्रु है और वह आपको परेशान कर रहा है तो उसे नष्ट करने के लिए आप लहसुनिया के शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। इससे आपकी सारी मनोकामना पूरी होती हैं। लहसुनिया के शिवलिंग की पूजा करने से असाध्य रोगों से छुटकारा मिल सकता है। लहसुनिया रत्न को कैट्स आई भी बोला जाता है। इस रत्न का संबंध केतु ग्रह से होता है।
स्फटिक शिवलिंग :
स्फटिक धातु एक अनमोल रत्न है, जो की बर्फ के ग्लेशियर्स में पाया जाता है। तमिल नाडु के रामेश्वरम ज्योतिर्लिगं भी स्फटिक से ही बना हुआ है जिसकी स्थापना भगवान श्री राम द्वारा की गई थी। स्फटिक का शिवलिंग घर में सुख और समृद्धि बनाए रखता है और जीवन में होने वाले बुरे प्रभावों से हमें बचाता है, महाशिवरात्रि के दिन स्फटिक शिवलिंग की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार स्फटिक शिवलिंग को घर में रखने मात्र से सारे वास्तु दोष ख़त्म हो जाते है ।घर में सुख-शांति लाने के लिए ,पति-पत्नी के कलह को दूर के लिए स्फटिक शिवलिंग की घर में नित्य पूजा लाभकारी मानी गई है ।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।