पूजा के दौरान क्यों बजाया जाता है शंख, जानिए क्या है शंखनाद था धार्मिक महत्व और कारण
धार्मिक कार्यक्रमों और आयोजनों के दौरान हिंदू धर्म में शंख बजाना एक परंपरा है जो युगों-युगों से चली आ रही है। शंख हमारे लिए सिर्फ एक वाद्ययंत्र नहीं हमारी धार्मिक संस्कृति और प्रथाओं का हिस्सा है। यह हमारे लिए आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक भी है। शंख से निकलने वाली ध्वनि और कंपन का विशेष महत्व है। इसलिए मंदिरों, धार्मिक समारोहों और आयोजनों के दौरान हिंदू धर्म में शंख बजाने की परंपरा है। शंख को पंच महाभूतों में से एक आकाश तत्व का प्रतिनिधि माना जाता है। शंख में चंद्रमा और सूर्य देवता का निवास है। इसके मध्य में वरुण देवता का स्थान होता है।
शंख की पवित्रता, शुद्धता और शंख बजाने से जुड़ी कई कथाएं, मिथक और किंवदंतियां शंख को हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं शंख इतना महत्वपूर्ण क्यों है और शंख बजाने की परंपरा क्यों है? तो चलिए भक्त वत्सल पर जानते हैं शंख बजाने के पीछे की वजह।
शंख का इतिहास पौराणिक कथाओं और प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे कई देवी-देवताओं के हाथ में शंख रहता है जैसे भगवान विष्णु के हाथों में पांचजन्य नामक शंख है। भगवान कृष्ण स्वयं महाभारत युद्ध की शुरुआत से पहले शंख बजाते हैं। युद्धों की शुरुआत में शंख बजाने की परंपरा का उल्लेख भी हमारे धार्मिक ग्रंथों में है।
शंख की उत्पत्ति के बारे में कथा है कि राक्षस शंखासुर ने जब वेदों को गहरे समुद्र में छिपा दिया। तब भगवान शिव ने इस राक्षस का वध किया था और इसके शंकु के आकार के कान की हड्डी को आकाश में उड़ा दिया जिससे शंख की उत्पत्ति हुई और ओम की ध्वनि निकली।
क्यों बजाते हैं शंख
- शंख की ध्वनि कर्तव्य, धार्मिकता और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
- शंख पवित्रता का प्रतीक और सकारात्मकता का संचार करता है।
- शंख से निकलने वाली ध्वनि पर्यावरण को शुद्ध करती है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है।
- धार्मिक अनुष्ठान से पहले या उसके शंख बजाने से वातावरण शुद्ध होता है।
- शंख की ध्वनि ईश्वर को पुकारने के माध्यम के रूप में भी उल्लेखित है।
- यह देवी-देवताओं को आमंत्रण का प्रतीक भी है।
- शंख ध्वनि पूजा की शुरुआत का संकेत, भगवान का आह्वान और भक्त को ईश्वर से जोड़ने का माध्यम है।
- यह ध्वनि उत्सव की शुरुआत, आयोजनों के आध्यात्मिक सार, दैवीय आस्था और सांस्कृतिक परंपराओं का पर्याय है।
- शंख बजाने से एकाग्रता और ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
- शंख बजाने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है।
- शंख बजाने से रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती।
शंख बजाने का सही तरीका और इसके स्वास्थ्य संबंधी लाभ
शंख बजाने में फेफड़ों, पेट की मांसपेशियों और चेहरे की मांसपेशियों पर सबसे अधिक दवाब पड़ता है। ऐसे में गलत तरीके से शंख बजाने से आंख और कान की मांसपेशियों को नुकसान पहुंच सकता है और यह मलाशय की डायाफ्राम को भी खतरा पैदा कर सकता है। आमतौर पर शंख बजाते समय सबसे बड़ी गलती यह होती है कि नाक से सांस लेने के बजाय मुंह से हवा अंदर खींचते हैं। ऐसा करने से हवा पेट में चली जाती है और लंबे समय तक हवा को रोकने की क्षमता को कम करती हैं। साथ ही यह दवाब शरीर के अंदरूनी हिस्सों पर पड़ता है। इसलिए, शंख बजाते समय नाक से ही सांस लेना चाहिए।
कान के पर्दों के मरीजों, हर्निया या उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों को शंख नहीं बजाना चाहिए।
सही तरीके से शंखनाद करने वाले व्यक्ति को कई तरह के लाभ होते हैं। उनकी सांस रोकने की क्षमता बढ़ती है। उनका श्वसन तंत्र ठीक रहता है। मांसपेशियों और फेफड़ों से संबंधित रोगों से लड़ने की उनकी क्षमता बढ़ जाती है।