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अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पूरे विश्व में गया एक प्रमुख तीर्थस्थल है. यहां पितृपक्ष के दौरान देश-विदेश से ढेरों लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आते हैं. गया में पिंडदान की प्राचीन परंपरा के तहत लोग एक, तीन, पांच, सात, पंद्रह या सत्रह दिनों तक अपने पितरों के मोक्ष की कामना के लिए कर्मकांड करते हैं.
बता दें कि पितृपक्ष के तीसरे दिन, द्वितीया तिथि को प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान का विशेष महत्व होता है. खासतौर से उन पूर्वजों के लिए जिनकी अकाल मृत्यु हो गई हो. जी हां, दरअसल गया के प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ भी कहा जाता है. यह उन लोगों के लिए खास महत्व रखता है जिनकी असमय मृत्यु हो गई हो। यहां उनके नाम से पिंडदान किया जाता है, जिससे उन्हें कष्टदायक योनियों से मुक्ति मिल जाती है. स्थानीय पंडितों की माने तो यहां पिंडदान करने से अकाल मृत्यु से ग्रस्त आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहीं, प्रेतशिला पर रात के समय भूतों के वास की मान्यता भी है इसलिए कहा जाता है कि पितृपक्ष के दौरान इन आत्माओं को पिंडदान करने से उन्हें अपनी कष्टदायक योनियों से मुक्ती प्राप्त हो जाती है.
पंडित राजनाथ झा की माने तो विष्णु पुराण में उल्लेख है कि गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। प्रेतशिला पर भगवान विष्णु के चरणों के निशान और पत्थरों में दरारें हैं, जहां लोग पिंडदान करते हैं। हालांकि, आपको बता दें कि यहां पर तिल, गुड़ अथवा जौ से पिंडदान नहीं किया जाता बल्कि तिल मिश्रित सत्तु का छिंटा उड़ाया जाता है, जो एक प्राचीन परंपरा का भी हिस्सा है।
प्रेतशिला वेदी बिहार के गया शहर से लगभग 06 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। साथ ही यह एक धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहां पिंडदान की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस पर्वत की चोटी पर यमराज को समर्पित एक मंदिर भी स्थित है, जिसे इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था।
गया गदाधर धामी पंडा समिति के सदस्य शिवा कुमार पांडे ने बताया कि अकाल मृत्यु से पीड़ित आत्माओं की शांति के लिए ही उनके वंशज प्रेतशिला पर पिंडदान की विधियां पूर्ण करते हैं. मालूम हो कि यहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्तियों के दर्शन के साथ आपको चोटी पर स्थित चट्टान की सुंदर छटा भी देखने को मिलती है। यहां पहुंचने वाले यात्री इस विशाल चट्टान की परिक्रमा करते हैं और सत्तू से अकाल मृत्यु प्राप्त अपने पितरों की आत्मा की चीर शांति के लिए पिंडदान करते हैं।
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