श्रीमद भगवत गीता में श्री कृष्ण ने कहा है जो पितरों को पूजते है उन्हें पितृ लोक प्राप्त होता है। पितृ लोक से जन्म-मरण से मुक्ति नहीं, बल्कि फिर से जन्म लेकर इस मायालोक के कार्य पूर्ण करने होते है। इसी लिए हर वर्ष 16 दिन ऐसे होते है जिसमें परिवार के मृत सदस्यों की आत्मा की तृप्ति और शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान किए जाते है |
इन 16 दिनों के दौरान किसी भी तरह का मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है| इस 16 दिन कि अवधि को पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। हालाँकि, पितरों के श्राद्ध और पिंडदान के अलावा पितरों की पूजा और उनके लिए हवन करने की भी परंपरा है। आज इस लेख में हम आपको बताएँगे की कैसे पितृ पक्ष के दौरान आप पितरों की पूजा और हवन को कर सकते है?
पितृपक्ष की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री -
पितृपक्ष में पितृकर्म या श्राद्ध कर्म करने के लिए पहले ही जरुरी सामग्री की व्यवस्था कर लेनी चाहिए | पूजा के लिए चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, शहद, पान का पत्ता, जौ, छोटी सुपारी, गुड़, तिल, गंगाजल, खजूर, दही, उड़द, गाय का दूध, हवन सामग्री, घी,दही, उड़द, खजूर, मुंग, गन्ना, रोली, जनेऊ, रुई, रक्षा सूत्र की जरूरत होती है। सामान्य पूजा के लिए ब्रह्ममुहूर्त का समय अच्छा समझा जाता है | इसके अलावा आपको कुछ बातों का खास ख्याल रखना होगा जैसे कि आपके घर में पितरों की तस्वीर है तो उनको घर के देवी-देवताओं की तस्वीर के साथ नहीं लगाना चाहिए और देवी-देवताओं की पूजा के बिना पितृपक्ष में श्राद्ध, पिंडदान इत्यादि नहीं करना चाहिए।
पितृपक्ष पूजन विधि :
सबसे पहले जिस जगह पर आप पितृकर्म करना चाहते है उस जगह को अच्छे से धोकर, उस स्थान पर गंगाजल के छीटें डालने चाहिए |
घर की महिलाओं को पितरों की पसंद के व्यजन और पकवान बनाने चाहिए |
भोजन करवाने के लिए एक थाली भगवान की और एक थाली पितरों की लगाए।
अब गोबर के कंडे को जलाकर उस पर पितरों को भोग लगाना चाहिए |
पितरो की थाली के अलावा 4 रोटियां अलग से निकालनी चाहिए | एक गाय के लिए, एक अतिथि के लिए, एक कुत्ते के लिए और एक कौवे के लिए भी रोटी या जो भी भोजन बनाया हो अलग निकालकर उन्हें खिलाना चाहिए |
पितरों का हवन करने की विधि
सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार प्रत्येक गृहस्थ पितृगण की तृप्ति के लिए तथा अपने कल्याण के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं लेकिन ये कर्म तभी पूर्ण होता है जब विधान से अग्नि में वैदिक मंत्रों के साथ आहुतियां भी दी जाएं। वैदिक परम्परा के अनुसार विधिवत् स्थापित अग्नि में वैदिक मन्त्रों की दी गयी आहुतियां धूम्र और वायु की सहायता से आदित्य मण्डल में जाती हैं। वहां उसके दो भाग हो जाते हैं। पहला भाग सूर्य रश्मियों के द्वारा पितरों के पास पितर लोकों में चला जाता है। इसी को समझते हुए पहले अपने माता-पिता, दादा-दादी या परदादा-परदादी के श्राद्ध के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर मार्जन, आचमन, प्राणायाम कर कुश को धारण कर संकल्प करना चाहिए। उसके बाद संस्कारपूर्वक अग्नि स्थापित कर विधि- विधान सहित अग्नि प्रज्ज्वलित कर, अग्नि का ध्यान करना चाहिए। पंचोपचार से अग्नि का पूजन कर उसमें चावल, जल, तिल, घी बूरा या चीनी व सुगन्धित द्रव्यों से शाकल्य की 14 आहुतियां देनी चाहिए। इसके बाद हवन करने वाली सुरभी या सुर्वा से हवन की भस्म ग्रहण कर, मस्तक आदि पर लगा कर, गन्ध, अक्षत, पुष्प आदि से अग्नि का पूजन और विसर्जन करें। अन्त में आत्मा की शान्ति के मंत्रों का जाप करे ।
ॐ यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या
तपोश्राद्ध क्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णताम् याति
सद्यो वंदेतमच्युतम।।