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पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए भारत में 55 स्थान हैं लेकिन फल्गु नदी के तट पर स्थित गया शहर का अपना विशेष महत्व है। गया को हिंदू धर्म में एक बड़ी महत्वपूर्ण जगह माना जाता है। गया बिहार की राजधानी पटना से 100 किलोमीटर दक्षिण में है। शहर तीन तरफ से चट्टानी पहाड़ियों से तथा एक तरफ से फल्गु नदी से घिरा हुआ है। जहां पिंड दान करने का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं ऐसा क्यों है।
गरुड़ पुराण के आधारकाण्ड के अनुसार, भगवान राम और माता सीता ने पिता राजा दशरथ का पिंडदान गया में ही किया था। कथा के अनुसार जब माता सीता को फल्गु नदी के किनारे अकेला छोड़कर श्री राम और लक्ष्मण पिंडदान की सामग्री इकट्ठा करने के लिए चले गए थे तभी राजा दशरथ वहां प्रकट हुए और उन्होंने पिंडदान की मांग की। ऐसे में माता सीता ने तुरंत नदी के किनारे मौगया में यज्ञ, श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान करने से मनुष्य को स्वर्गलोक एवं ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। गया के धर्म पृष्ठ, ब्रह्म सप्त, गया शीर्ष और अक्षय वट के समीप जो कुछ भी पितरों को अर्पण किया जाता है, वह अक्षय होता है। गया के प्रेतशिला में पिंडदान करने से पितरों का उद्धार होता है।
महाभारत के अनुसार, फल्गु तीर्थ में स्नान करके जो मनुष्य श्राद्धपक्ष में भगवान गदाधर यानि भगवान विष्णु के दर्शन करता है। वह पितरों के ऋण से विमुक्त हो जाता है। एक मान्यता के अनुसार, गया को विष्णु का नगर माना गया है। विष्णु पुराण के मुताबिक, गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग में वास करते हैं।
इसकी महत्वता को समझने के लिए एक किवदंती भी सामने आती है जिसके अनुसार, भस्मासुर के वंशज में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं। उसे यह वरदान तो मिला, लेकिन दुष्परिणाम यह हुआ कि स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी और सब कुछ प्राकृतिक नियम के विपरीत होने लगा, क्योंकि लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे।
इससे बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया लेकिन जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस की जगह आगे चलकर गया कहलाई। हालाँकि, यज्ञ के बाद भी गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और उसने देवताओं से फिर वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे। उसने देवताओं से कहा कि जो भी लोग यहां पर पिंडदान करें, उनके पितरों को मुक्ति मिले।
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