नवीनतम लेख
दुर्गा पूजा पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाती है। लेकिन पश्चिम बंगाल में इसका महत्व अलग ही होता है। यहां दुर्गापूजा केवल 09 दिनों का एक त्योहार नहीं, बल्कि पूरे वर्ष भर के उल्लास और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। मां दुर्गा की भव्य मूर्तियां, आकर्षक पंडाल, खास परंपराएं इस उत्सव को और भी अद्भुत बनाते हैं। बंगाल में दुर्गापूजा के दौरान लोगों में समर्पण और भक्ति का भाव दिखता है। जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग यहां आते हैं। लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा कि आखिर बंगाल में दुर्गा पूजा इतनी विशेष क्यों होती है, शायद नहीं तो आइए जानते हैं कुछ प्रमुख कारण जो बंगाल की दुर्गापूजा को सबसे खास और अलग बनाते हैं…..
बता दें कि पश्चिम बंगाल में अधिकतर स्थानों पर मां दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरूप की पूजा की जाती है। इसमें मां दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है। इसके लिए दुर्गा माता की भव्य और विशाल मूर्तियों को कई महीनों की मेहनत से तैयार किया जाता है। इनके साथ मां लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कार्तिकेय भगवान की मूर्तियां भी होती हैं। यहां हर साल मूर्ति निर्माण की कला में नवाचार देखने को मिलता है। बंगला पद्धति की मूर्ति के लिए यहां से देशभर में कारीगर भी बुलाए जाते हैं।
पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान पंडालों की सजावट देखने लायक होती है। दुर्गा पूजा में भव्य और अलग अलग थीम वाला पंडाल ही बंगाल का सबसे बड़ा आकर्षण होता है। हर पंडाल को एक थीम के आधार पर सजाया जाता है जो किसी सामाजिक, ऐतिहासिक या फिर किसी आधुनिक मुद्दे को दिखाती है। यहां की लाइटिंग और सजावट से यह पंडाल वास्तविक हो उठते हैं। लाखों लोग इन भव्य पंडालों को देखने आते हैं।
जान लें कि माता दुर्गा की मूर्ति निर्माण के दौरान मां दुर्गा की आंखें ही सबसे आखिरी में बनती हैं। जिसे चौक्खू दान कहा जाता है। यह प्रक्रिया महालय के दिन पूरी होती है और इसे मां दुर्गा के पृथ्वी पर आगमन का प्रतीक भी माना जाता है।
अष्टमी के दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है। लोग नए कपड़े पहनकर पंडालों में पहुंचते हैं और पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। अष्टमी के दिन यहां का माहौल और उल्लास देखने लायक होता है।
बंगाल में कुमारी पूजन एक प्रमुख परंपरा है जो नवमी के दिन पूर्ण की जाती है। इसमें अविवाहित कन्याओं को मां दुर्गा का रूप मानकर पूजा जाता है। मान्यता है कि इस परंपरा की शुरुआत स्वामी विवेकानंद ने बेलूर मठ में की थी और आज यह हर घर और पंडाल में की जाती है।
यह नृत्य मां दुर्गा की आराधना के समय किया जाता है। इस नृत्य में भक्त (धुनुची) जिसमें नारियल के रेशे और हवन सामग्री जलती रहती है उसे हाथ में लेकर नृत्य करते हैं। यह नृत्य सप्तमी से लेकर नवमी तक हर रोज किया जाता है और इसकी भव्यता देखते ही बनती है।
बंगाल में दुर्गापूजा दो प्रकार से होती है पारा पूजा और बारिर पूजा। पारा पूजा सामुदायिक स्तर पर बड़े पंडालों में होती है। वहीं, बारिर पूजा पारंपरिक रूप से लोग घरों में करते है। बता दें कि बारिर पूजा खासतौर पर कोलकाता के उत्तर और दक्षिण क्षेत्रों में देखने को मिलती है।
दुर्गा पूजा के दौरान पूरे 09 दिनों तक हर रोज़ संध्या आरती होती है। हालांकि, ये कोई आम आरती नहीं होती क्योंकि ये आरती शंख, ढोल, नगाड़ों और घंटियों के साथ होती है। इसमें श्रद्धालु भक्ति भाव से नाचते-गाते हैं और मां दुर्गा की आरती करते हैं। आरती के दौरान का माहौल अत्यंत उत्साहपूर्ण और आध्यात्मिक रहता है।
दुर्गा पूजा के दशमी के दिन सिंदूर खेला बंगाल की एक खास रस्म होती है। इसमें महिलाएं लाल और सफेद साड़ी पहनकर एक-दूसरे को सिंदूर से रंगती हैं और मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। यह रस्म मां दुर्गा को विदा करते समय की जाती है और इसमें शांति और उल्लास का अद्वितीय संगम दिखता है।
विजयदशमी दुर्गापूजा का अंतिम दिन होता है। इस दिन मां दुर्गा का विसर्जन किया जाता है। इस दिन का वातावरण बेहद भावुक होता है और बंगाल की सड़कों पर भक्तों की भारी भीड़ रहती है। विसर्जन के दौरान पूरे शहर में भव्य शोभायात्राएं भी निकलती हैं।
वैसे तो दुर्गापूजा भारत के लगभग हर कोने में बड़े ही धूमधाम से होती है। लेकिन पश्चिम बंगाल में इसका एक अद्वितीय रूप देखने को मिलता है। बंगाल की दुर्गापूजा पूरे साल भर की तैयारियों और उमंगों के उत्सव के रूप में मनाई जाती है। भक्तों के लिए यह एक सांस्कृतिक यात्रा होती है जिसमें प्रदेश का प्रत्येक नागरिक बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है। मां दुर्गा के आगमन से लेकर उनके विसर्जन तक पूरे बंगाल का वातावरण एक विशेष रंग में रंगा होता है। यहां पूजा के दौरान जो दृश्य और परंपराएं देखने को मिलती हैं वे सचमुच अविस्मरणीय होती हैं।
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।