नवीनतम लेख

Dec 13 2024

MahaKumbh 2025:  राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका, अंग्रेजों-मुगलों का किया सामना, जानें निर्मोही अखाड़े का वैभवशाली इतिहास 


निर्मोही अखाड़ा वैष्णव संप्रदाय का एक प्रमुख अखाड़ा है।इसकी स्थापना 14वीं शताब्दी में वैष्णव संत और कवि रामानंद ने की थी।  यहां के साधु-संत भगवान राम की पूजा करते हैं और अपना जीवन उन्हीं को समर्पित करते हैं। अखाड़े का केंद्र भी अयोध्या में ही स्थित है। निर्मोही अखाड़ा भारतीय संस्कृति के संरक्षण के लिए जाना जाता है। इसके साधु संत शस्त्र और शास्त्र दोनों विद्याओं में निपुण होते हैं। इनका उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा करना और उसका प्रचार प्रसार करना है। इस समय 12 हजार से ज्यादा साधु संत  निर्मोही अखाड़े का हिस्सा है। वहीं देश के कई पवित्र स्थानों पर अखाड़े के मठ और संस्थान मौजूद हैं। 



ऐसे बने निर्मोही अखाड़े के साधु 


1. पहला चरण 

सबसे पहले व्यक्ति को अखाड़े के पास जाकर साधु बनने की इच्छा जतानी होती है। इसके बाद उसकी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं का परीक्षण किया जाता है। अगर व्यक्ति इसमें सफल हो जाता है तो उसे अखाड़े में शामिल किया जाता है और उसे एक गुरु नियुक्त किए जाते हैं।


2. दूसरा चरण 

इस चरण में व्यक्ति को गुरु के सानिध्य में वेद, उपनिषद, और अन्य धर्म ग्रंथों का अध्ययन करना होता है। इसके साथ ही योग और ध्यान भी करना होता है, जिससे वो अपने मन को नियंत्रित कर सके। इसके अलावा साधुओं की सेवा भी करना होती है।


3. दीक्षा चरण 

आखिरी चरण दीक्षा का होता है। प्रशिक्षण खत्म होने के बाद व्यक्ति को  संन्यास की दीक्षा दी जाती है। उन्हें नया नाम दिया जाता है और इसके बाद वो पूर्ण जीवन का त्याग कर देता हैं।



राम जन्मभूमि आंदोलन में अहम भूमिका


निर्मोही अखाड़ा ने राम जन्मभूमि आंदोलन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अखाड़े ने सबसे पहले राम जन्मभूमि की जमीन पर स्वामित्व के लिए दावा ठोका था। वहीं अखाड़े ने लगभग 100 सालों तक कानूनी लड़ाई लड़ी। इसके साथ ही राम जन्मभूमि आंदोलन में अखाड़े के साधु संत बड़ी संख्या में शामिल हुए। उन्होंने कई प्रदर्शनों में भाग लिया और राम मंदिर के लिए जागरूकता फैलाई। इसी का फल है कि आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर है।



आजादी के कई नायकों का अखाड़े से जुड़ा नाम 


निर्मोही अखाड़े के साधु- संत शस्त्र विद्या में निपुण थे। उन्होंने आजादी की कई लड़ाईयों में हिस्सा भी लिया। इसी कारण से कई नायकों जैसे शिवाजी, बंदा बैरागी और रानी लक्ष्मीबाई का नाम उनसे जुड़ा। हालांकि इसे लेकर कोई खास तथ्य मौजूद नहीं है। ये बातें सिर्फ कहानियों के लिए कहीं जाती है।


डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।