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उदासीन संप्रदाय का निर्मल पंचायती अखाड़ा देश के प्रमुख अखाड़े में गिना जाता है। यह इकलौता अखाड़ा है , जहां हिंदू और सिख समुदाय का समागम देखने को मिलता है। अखाड़े की स्थापना 1862 में बाबा महताब सिंह जी में ने की थी। वहीं इसकी शुरुआत की कहानी गुरु नानक देव जी से जुड़ती है। अखाड़े का मुख्य केंद्र हरिद्वार में स्थित है। यहां संगत-पंगत को एक समान भावना का अधिकार है। अखाड़े के नाम से जुड़ा निर्मल शब्द शुद्धता, पवित्रता और आध्यात्मिक बुद्धि को दर्शाता है। इसके साधु संत भी इन्हीं आदर्शों को जीने का प्रयास करते हैं।
निर्मल अखाड़े की स्थापना सिख धर्म के 10वें गुरु गोबिंद सिंह की शिक्षाओं से प्रेरित थी। उन्होंने अपने शिष्यों को आध्यात्मिक ज्ञान, बल्कि समाज और रक्षा और सेवा का भी निर्देश दिया। इसी कारण से अखाड़े में सभी के साथ समान व्यवहार किया जाता है और कोई भेदभाव नहीं होता है। निर्मल अखाड़े के संत प्राचीन संस्कृत ग्रंथों जैसे वेद, उपनिषद, और पुराणों के विद्वान होते हैं। यहां सुबह 4 बजे से गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है, जो इसे बाकी अखाड़ों से अलग बनाता है। इसके साधु सदस्य भारत के विभिन्न हिस्सों में धर्म के प्रचार प्रसार के लिए यात्रा करते हैं।
देश के सभी प्रमुख अखाड़े परंपरागत रूप से शस्त्र रखते हैं या शस्त्रों विद्या में निपुण होते हैं। लेकिन निर्मल अखाड़ा साधारण वस्त्र और शांतिपूर्ण जीवनशैली को प्राथमिकता देता है। यहां के साधु संत साधारण जीवन जीते हैं और गुरु गोबिंद जी के शिक्षा का पालन करते हैं। लेकिन नैतिक और आत्मिक बल को महत्व देते हैं। अखाड़ा सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है। इससे जुड़े संस्थान नशा-मुक्ति और नैतिकता के प्रचार-प्रसार में विशेष भूमिका निभाते हैं। वे युवाओं को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
निर्मल पंचायती अखाड़े की व्यवस्था विस्तृत है। यहां के कुछ पद परंपरा और योग्यता के आधार पर भरे जाते हैं, तो वहीं कई पद चुनाव व्यवस्था से तय होते हैं।
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