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सनातन धर्म में साधू-संतों का काफी महत्व है। साधु-संत भौतिक सुखों को त्यागकर सत्य व धर्म के मार्ग पर चलते हैं। इसके साथ ही उनकी वेशभूषा और खान-पान आम लोगों से बिल्कुल भिन्न होती है। उनको ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। साधू-संत आमतौर पर पीला, केसरिया अथवा लाल रंगों के वस्त्र धारण करते हैं। साधू-संतों में नागा साधुओं की चर्चा जरूर होती है। सबसे खास बात यह है कि नागा साधू कपड़े नहीं धारण करते हैं। तो आइए, इस आलेख में नागा साधु और उनके निर्वस्त्र रहने के कारणों को विस्तार से जानते हैं।
नागा साधु कड़ाके की ठंड में भी नग्न अवस्था में ही रहते हैं। इस दौरान वह शरीर पर धुनी या भस्म लगाकर घूमते हैं। दरअसल, नागा का अर्थ ही होता है 'नग्न’। इस कारण नागा संन्यासी पूरे जीवन नग्न अवस्था में ही रहते हैं। वह अपने आपको भगवान का दूत मानते हैं।
महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज के संगम किनारे किया जा रहा है। इस दौरान अधिक संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि स्नान करने से जातक को सभी तरह के पापों से छुटकारा मिलता है। महाकुंभ में नागा साधु भी शामिल होते हैं और वे वस्त्र धारण नहीं करते हैं। वे अपने शरीर भस्म लगाकर रहते हैं।
नागा साधु मानते हैं कि व्यक्ति निर्वस्त्र ही जन्म लेता है और यह अवस्था प्राकृतिक है। इसलिए, नागा साधु सदैव निर्वस्त्र रहते हैं।
नागा साधु दिन में एक बार ही भोजन करते हैं। ये भोजन भी वे भिक्षा मांग कर ही करते हैं। अगर उन्हें किसी दिन 7 घरों में भिक्षा नहीं मिलती है तो उन्हें भूखा ही रहना पड़ता है।
किसी इंसान को नागा साधु बनने के लिए 12 साल का समय लगता है। नागा पंथ में शामिल होने के लिए इंसान को नागा साधु के बारे में महत्वपूर्ण बातों की जानकारी होना बेहद आवश्यक होता है। कुंभ में अंतिम प्रण लेने के बाद लंगोट का त्याग कर दिया जाता है। जिसके बाद वे जीवन में सदैव निर्वस्त्र ही रहते हैं।
महाकुंभ की शुरुआत पौष पूर्णिमा स्नान के साथ होती है। जो 13 जनवरी 2025 को है। वहीं, महाशिवरात्रि के दिन 26 फरवरी 2025 को अंतिम स्नान के साथ कुंभ पर्व का समापन हो जाएगा।
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